रविवार, जून 27, 2010

अनहद में दस तरह के शब्द ..?

सहज योग में दस तरह के शब्द सुनाई देते हैं । ये शब्द हमारे घट में हर समय हो रहें हैं । जरूरत इन को अभ्यास के द्वारा सुनने की है । ये शब्द सुन लेने का अर्थ मामूली नहीं है । यह योग की ऊँची स्थिति है ।
पहला शब्द " चिङियों की बोली " है । इस शब्द को सुनने से शरीर के सारे रोम खङे हो जाते हैं । ऐसा प्रतीत होता है । कि हरे भरे बाग में रंग बिरंगे फ़ूलों से लदे पेङ फ़लों से लदे पङे हैं । वहाँ चिङिया चहचहा रही हैं । यह शब्द सहस्त्रदल कमल के नीचे से सुनाई देता है ।
दूसरा शब्द " झींगुर की झंकार " जैसा है । इसको सुनने से शरीर में एक विचित्र तरह का आलस्य और सुस्ती पैदा हो जाती है ।
तीसरा शब्द " घन्टा घङियाल की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से दिल में भक्ति और प्रेम बङता है । अभ्यासी को ऐसा महसूस होता है । कि किसी मन्दिर के अन्दर कोई विशाल घन्टा बज रहा हो । यह शब्द सहस्त्रदल कमल से सुनाई देता है ।
चौथा शब्द " शंख का शब्द है । इसके सुनने से मष्तिष्क से सुगन्ध आती है । और नशे के कारण आनन्द में सिर घूमने लगता है । ऐसा महसूस होता है । कि लक्ष्मी नारायण मन्दिर में शंख बज रहा हो । यह शब्द भी सहस्त्रदल कमल से सुनाई देता है ।
पाँचवा शब्द " वीणा और सितार की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से " अमृतरस " मष्तिष्क से नीचे उतरता है । और बहुत आनन्द आता है । यह शब्द गगन मण्डल अथवा त्रिकुटी से सुनाई देता है ।
छठवाँ शब्द " ताल की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से अमृत मष्तिष्क से हलक में नीचे गिरता है । यह शब्द दसवें द्वार से सुनाई देता है ।
सातवाँ शब्द " बाँसुरी की आवाज " है । इस शब्द को सुनने वाला अन्तर्यामी हो जाता है । और छिपे हुये भेदों को जान लेता है । जिससे उसको सिद्धि प्राप्त हो जाती है । यही वो बाँसुरी है । जो भगवान कृष्ण बजाते थे । यह शब्द भी दसवें द्वार से सुनाई देता है ।
आँठवा " मृदंग और पखावज का शब्द " है । इसको सुनने से अभ्यासी गुप्त वस्तु को देखता है । सुनने वाला हर समय शब्द में मग्न रहता है । क्योंकि यह शब्द बाहर भीतर निरंतर सुनाई पङता है । इससे दिव्य दृष्टि हो जाती है । यह शब्द सतलोक की सीमा भंवर गुफ़ा से सुनाई देता है ।
नौंवा शब्द " नफ़ीरी की आवाज " है । इस आवाज को सुनने से वह शक्ति मिलती है । जो देवताओं को प्राप्त है । इस शब्द को सुनने से शरीर हल्का और सूक्ष्म हो जाता है । और अभ्यासी साधक पक्षी के समान जहाँ चाहे वहाँ उङकर जा सकता है । और लोगों की दृष्टि से ओझल हो सकता है । वह तो सबको देख सकता है । परन्तु उसे कोई नहीं देख सकता । अर्थात उसकी दृष्टि पर जो पर्दा पङा था । वह उठ जाता है । यह संतो की गति है । जो बहुत मुश्किल से मिलती है । यह शब्द सतलोक से सुनाई देता है ।
दसवाँ शब्द " बादल की गरज " है । यही अनहद शब्द है । इसके सुनने से अच्छे बुरे सभी विचारों का नाश हो जाता है । अभ्यासी सिद्धि शक्ति और चमत्कार को बच्चों का खेल समझता है । क्योंकि सुनने वाला अपने वास्तविक स्वरूप से मिल जाता है । यह शब्द सतलोक से सुनाई देता है ।
यह दस प्रकार के शब्द हर समय अनहद में महसूस होते हैं । चित्त में भांति भांति के संकल्पों के कारण ये शब्द सुनाई नहीं देते । ये विना " गुरुकृपा " के सुनाई नहीं देते । इन आवाजों को सुनने में अन्तर हो सकता है । अर्थात कोई आवाज पहले या बाद में सुनाई दे सकती है । परन्तु इस पर ध्यान न दें और इसका कोई विचार न करें । और बांये कान से जो आवाज सुनाई दे उस पर तो बिलकुल ध्यान न दें । और " ज्योति स्थान " जहाँ पर सिद्धि की प्राप्ति होती है । वहाँ से साबधानी पूर्वक बचकर निकल जाना चाहिये । फ़िर मंजिल आसान है।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

मन और शरीर के दस वायु..

हमारे शरीर में दस प्रकार की वायु होती है । जिनमें पाँच प्रमुख होती हैं ।
1--प्राण वायु--इसका कार्य स्वांस को गति देना है । इसका स्थान दिल है । इसका देवता सूर्य है ।
इसकी गति बारह अंगुल बाहर तक है ।इसका स्वभाव गर्म है । और इसका स्वरूप लाल है ।
2--अपान वायु--इसका कार्य मल त्याग करना है । इसका स्थान गुदा है ।इसका देवता गणपति है ।
इसकी गति बाहर से अन्दर है । इसका स्वभाव ठंडा है । और इसका स्वरूप शीतल है ।
3--समान वायु--इसका कार्य शरीर में रस पहुँचाना है । इसका स्थान नाभि है । इसका देवता सम्पति है ।
4--उदान वायु--इसके द्वारा ब्रह्मकुन्ड से अमृत प्राप्त करके । समान वायु तक पहुँचाता है ।इसका स्थान गले से चोटी तक है । और इसका देवता इन्द्र है ।
5--व्यान वायु--इसका काम रस को निर्मल करके पहुँचाना और हरकत करना है ।पूरा शरीर इसका स्थान है ।और दिग्पाल इसका देवता है ।
6--करकल वायु--इसका काम भोजन को हजम करना है ।शरीर में इसका स्थान पेट है । और इसका देवता मन्द या जठराग्नि होता है ।
7--कूरम वायु--इसके द्वारा आँख की पलकें खुलती और बन्द होती हैं । शरीर में इसका स्थान आँख है। और इसका देवता ज्योति अथवा प्रकाश है ।
8---नाग वायु--इसका कार्य डकार लाना है । इसका स्थान गला है । तथा इसका देवता शेष है ।
9---देवदत्त वायु--इसके द्वारा जम्हाई आती है । स्तन में दूध पैदा होता है । शरीर में इसका स्थान छाती के नीचे है । और इसका देवता कामदेव है ।
10---धनंजय वायु--मृत्यु के पश्चात शरीर को फ़ुलाना इसका कार्य है । और शरीर की शोभा आदि इसके अन्य कार्य है ।
इस प्रकार ये दस वायु होते हैं । जिनके बारे में संक्षेप में लिखा गया है । आईये थोङा सा मन के बारे में भी जानें । मन इस शरीर का राजा और सामान्य जीव अवस्था में नियंत्रणकर्ता है । यह अष्टदल कमल पर चक्कर काटता रहता है । और विषय विकारों में फ़ँसा होने के कारण एकाग्र नहीं होता । विकारों में प्रवृति होने के कारण यह जीव को भक्ति मार्ग की और मुङने नहीं देता । और नाना प्रकार के पाप कर्मों में उलझाये रखता है । अष्टदल कमल की जिस पत्ती पर ये होता है । जीव को उसी के अनुसार कर्म में प्रवृत्त करता है । अष्टदल कमल की ये आठ पत्तिंया कृमशः1- काम 2- क्रोध 3- लोभ 4-मोह 5- मद (घमंड ) 6-मत्सर (जलन) 7-ग्यान 8- वैराग हैं ।
मन की शेप लगभग इतनी बङी o बिंदी जैसी होती है । इसमें मन , बुद्धि , चित्त , अहम चार छिद्र होते हैं । जिनसे हम संसार को जानते और कार्य करते हैं । मन शब्द प्रचलन में अवश्य है । पर इसका वास्तविक नाम " अंतकरण " है । ये चारों छिद्र कुन्डलिनी क्रिया द्वारा जब एक हो जाते हैं तब उसको सुरती कहते है । इसी " एकीकरण " द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है । अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं । मन को बिना चीर फ़ाङ के ध्यान अवस्था में देखा जा सकता है । नियन्त्रित किया जा सकता है । इसका स्थान भोंहों के मध्य एक डेढ इंच पीछे है । जीवात्मा का वास इससे " एक इंच " दूर बांयी तरफ़ है ।
हमारे शरीर के अंदर पाँच तत्वों की पच्चीस प्रकृतियाँ ( एक तत्व की पाँच ) हैं । तो 25 प्रकृति + 5 ग्यानेन्द्रिया + 5 कर्मेंन्द्रियां + 5 तत्वों के शरीर का नियंत्रणकर्ता और राजा मन है । इसी आधार पर 40 kg weight को एक मन कहने का रिवाज हुआ था ।

ब्रह्माण्डी चक्रों को जानें ..?

पिंडी चक्रों का वर्णन आप पूर्व में पढ ही चुके हैं । इससे आगे के क्रम में " ब्रह्माण्डी चक्रों " के बारे में बात करते हैं । इसमें त्रिकुटि दसंवा द्वार आदि से ऊपर की ओर आगे बङते हैं ।
1--त्रिकुटि--- यह तीन दल का कमल है । यहाँ ॐ का निवास है । यह त्रिकुटि संतो के लिये है । योगेश्वरों के लिये नहीं है । इसको हँसमुखी भी कहते हैं । वास्तव में यह सब ग्यान सच्चे संत और सदगुरु की कृपा
से ही संभव है । अन्यथा ये किताबी ग्यान से अधिक नहीं है । कोई भी संत तीन महीने से लेकर एक साल तक आपको ऐसे अनुभवों से रूबरू कराता है । तो वह सच्चा संत है । वरना पाखंडियों की संसार में भरमार है । यहाँ ये भी महत्वपूर्ण है । कि आप गुरु की बतायी बात पर अमल कितना कर रहे हैं ?
2--सुन्न या दसवाँ द्वार--- यह एक दल का कमल है। यहाँ पारब्रह्मा का निवास है । जिसे सर्व साधारण लोग कुल मालिक आदि करके मानते हैं । यहीं से मृत्य उपरान्त आत्मा यदि निकले तो मनुष्य फ़िर से मनुष्य जन्म का अधिकारी हो जाता है । इस द्वार को सहज योग द्वारा कुछ ही समय में देखा और जाना जा सकता है । शर्त वही पुरानी है । यदि आपका गुरु सिर्फ़ बातूनी ही नहीं है । बल्कि यहाँ तक पहुँचने का मार्ग युक्ति आदि जानता है । यह इस पर निर्भर है । इसलिये गुरु के चयन में विशेष खोजबीन की आवश्यकता होती है ।
कहा भी है " पानी पियो छान के । गुरु करो जान के । "
3-- महासुन्न-- यहाँ अन्धेरा मैदान है । यहाँ से " चार शब्द " तथा पाँच स्थान अति गुप्त है । जिनका पता कोई भेदी । कोई पहुँचा हुआ संत । अथवा सतगुरु की कृपा से ही लगता है । यह मनुष्य जीवन बेहद अनमोल है । और लाखों साल भटकने और अनेक कष्टों के बाद प्राप्त हुआ है । इसे यूँ ही वासनाओं के मकङजाल में फ़ँसकर व्यर्थ न जाने दें ।
4--भंवर गुफ़ा--- यहाँ " सोहं " पुरुष का निवास है । यह दो स्थान यानी " महासुन्न " और " भंवर गुफ़ा "
दयाल देश की सीमा में हैं ।
5--सतलोक-- यहाँ " सतपुरुष " का निवास है । इसके ऊपर तीन स्थान और भी हैं । जिन्हें संतो ने गुप्त रखा है । जीव यहाँ तक जान ले । वही बहुत बङी बात है । और यह सीना ब सीना ग्यान है । अधिक और स्पष्ट सच्चे संतो की सेवा में जाने से उनकी कृपा से प्राप्त होता है ।
आईये पिंड देश में सहस्त्र दल कमल के नीचे के छह स्थान जिनको षटचक्र भी कहते हैं । पिंड में उनके प्रतिबिम्ब हैं । आईये उनके कुछ और कार्यों के बारे में जानते हैं ।
1--पहला चक्र--दोनों आँखों के पीछे है । जहाँ सुरति अथवा रूह का ठहराव है ।
2--दूसरा चक्र--कंठ अर्थात गले में है । इस स्थान से स्वप्न की रचना होती है । जिसे जीवात्मा लिंग शरीर की सहायता से करता है । देह के प्राण का स्थान यहीं है ।
3---तीसराचक्र-- ह्रदय में है । दिल अर्थात पिंडी मन का यही स्थान है । संकल्प विकल्प यहीं से शुरु होते हैं । सुख -दुख ,आशा-निराशा , भय-निर्भय इत्यादि का प्रभाव इसी स्थान पर होता है ।
4--चौथा चक्र-- नाभि कमल में है । और स्थूल पवन का भन्डार है ।
5--पाँचवा चक्र-- इन्द्रिय चक्र है । स्थूल शरीर की उत्पत्ति यहीं से होती है ।
6---छठा चक्र--गुदा चक्र है । नाभि की और से प्राणों को खींचकर नीचे के शरीर अर्थात पैरों और टांगो को शक्ति देता है।
विशेष--मन , इन्द्रियाँ ,शरीर , सांसारिक पदार्थ और स्वर्ग आदि जङ हैं । परन्तु सुर्ति चेतन रूप है । त्रिकुटि स्थान में इसका मिलाप शुरु होता है । इसी स्थान तक माया का प्रभाव है । इसी स्थान से जङ चेतन की गांठ शुरु हुयी अर्थात बंधी है । सुर्ति के इस स्थान को जिनसे होकर वह नीचे उतरी है । उन्ही स्थानों से श्रेणी के हिसाब से ऊपर ले जाते हैं । अभ्यास के द्वारा उसे ऊपर की ओर खींचकर ले जाने से त्रिकुटी में जङ चेतन की गांठ खुल जायेगी । अर्थात जङ पदार्थ यहीं तक रह जाते हैं । आगे नहीं जा सकते । ब्रह्माण्ड के स्थान अत्यन्त बङे बङे और काफ़ी दूरी पर स्थित हैं । तथापि वायरलैस के समान उनकी डोरियाँ हमारे अंतर में लगी हुयी हैं । जब " सुरती शब्द योग " अभ्यास करने से " रूह " हमारे शरीर से सिमटकर ऊपर के स्थानों पर चङ जायेगी । तो जब और जितनी देर तक चङेगी । इन स्थानों पर तार लगा हुआ है । और वहाँ से जो धारायें आती हैं । वे दूरबीन के समान हैं । जिनके द्वारा हम अति दूरवर्ती स्थानों को आराम से देख सकते हैं । इसी तरह आँख के स्थान से समस्त बाहर की रचना के साथ
सूर्य चन्द्रमा तारों के समान जो बङे बङे स्थान हैं । उनसे किरणो की डोरियाँ लगी हुयी हैं । जिन्हें आराम से देख सकते हैं ।
वास्तव में " सहज योग " या सुरती शब्द योग अत्यन्त सरल है । यदि आपको प्रभु कृपा से कोई पहुँचे हुये संत की कृपा प्राप्त हो जाय तो । अन्यथा और ऊपर लिखी बातें आपके लिये " परी कथा " से अधिक नहीं हैं ।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता
है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । निज अनुभव तोहे कहूँ खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।

पिंडी चक्रों को जानें ..?

आईये पिंडी चक्रों के बारे में भी कुछ जानें । पिंड हमारे शरीर को कहते हैं । और आँखो के नीचे से पैर तक के शरीर को पिंड कहा गया है । इनमें स्थिति चक्रों को जाने । कुन्डलिनी आदि साधनाओं में हमारा वास्ता इन चक्रों से पङता है ।
1-- मूलाधार या गुदा चक्र-- इसका स्थान गुदा और लिंग के मध्य है । इसकी आकृति चार दल के कमल की
है । इसका रंग लाल है । इसका देवता गणेश है । इसका जाप शब्द " कलिंग " है । यहाँ स्वांसो की गिनती
1600 है ।
2--स्वाधिष्ठान या इन्द्रिय चक्र--इसका स्थान लिंग है । इसकी आकृति छह दल का कमल है ।इसका रंगसोने जैसा पीला है । इसका देवता ब्रह्मा तथा सावित्री है । इसका जाप शब्द " हरिंग " है । स्वांस की गिनती 6000 है ।
3-- मणिपूरक या नाभि चक्र --इसका स्थान नाभि है । इसकी आकृति दस दल का कमल है । इसका रंग नीला है । इसका देवता विष्णु तथा लक्ष्मी है । इसका जाप शब्द " शरिंग " है । स्वांस 6000 है ।
4--- अनाहत या ह्रदय चक्र---इसका स्थान ह्रदय है । इसकी आकृति बारह दल का कमल है । इसका रंग सफ़ेद है । इसके देवता शिव पार्वती हैं ।इसका जाप शब्द " ॐ " है । स्वांस 6000 है ।
5-- विशुद्ध या कंठ चक्र-- इसका स्थान कंठ है । इसकी आकृति सोलह दल का कमल है । इसका रंग चन्द्रमा
के समान सफ़ेद है । इसका देवता दुर्गा देवी या इच्छा शक्ति है । इसका जाप शब्द " सोहंग " है । स्वांस 1000 है ।
6--आग्या चक्र या दिव्य नेत्र या तीसरा नेत्र या शिव नेत्र इसी को कहते है---इसका स्थान आँखो के मध्य है ।इसकी आकृति दो दल का कमल है । इसका रंग ज्योति के समान है । इसका देवता परमात्मा है । इसका जाप शब्द " शिवोsहं " है । स्वांस 1000 है ।
7--सहस्त्र दल कमल-- इसका स्थान भृकटि के मध्य है । इसकी आकृति हजार दल का कमल है । इसका रंग सफ़ेद है । इसका देवता ज्योति निरंजन है । इसका शब्द जाप ( ? ) है । स्वांसो की गिनती 21600 है । यानी छह चक्रों की कुल संख्या का योग है । यहाँ तक पिंडी चक्रों का वर्णन पूरा हुआ ।
इसके ऊपर ब्रह्माण्ड देश की सीमा शुरु होती है ।
विशेष चेतावनी-- ऊपर दिये गये मन्त्र आदि वर्णन से किसी प्रकार का ध्यान या जाप आदि करने की चेष्टा न करें । ये कुन्डलिनी आदि ग्यान मजाक नहीं है । बिना सच्चे संत की शरण में जाय । इस प्रकार की चेष्टा से कोई लाभ तो नहीं होगा । हानि बहुत होगी । ये वर्णन मात्र भारत की अदभुत और आत्मग्यान रूपी धरोहर के प्रति जन सामान्य की रुचि जाग्रत करने हेतु है । और ये वर्णन न सिर्फ़ संक्षिप्त है । बल्कि कुछ गूढ बातों का खुलासा यहाँ नहीं हैं । इसलिये " मनमुखी " प्रक्टीकल से बचें । ऐसा आग्रह किया जाता है ।
शब्द----इसके ऊपर यानी यहाँ से " ब्रह्माण्ड देश " की सीमा शुरु होती है । यहाँ से दो आवाजें आसमानी निकलती हैं । अर्थात यहीं से " शब्द " प्रकट होता है । जिसको सुरती शब्द साधना में " शब्द " कहा गया है ।
सुरती किसे कहते हैं ----अंतकरण में मन , बुद्धि , चित्त , अहम चार छिद्र होते हैं । जिनसे हम संसार को जानते और कार्य करते हैं । मन शब्द प्रचलन में अवश्य है । पर इसका वास्तविक नाम " अंतकरण " है । ये चारों छिद्र कुन्डलिनी क्रिया द्वारा जब एक हो जाते हैं तब उसको सुरती कहते है । इसी " एकीकरण " द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है । अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं । यही सुरती प्रकट हुये शब्द को पकङकर ऊपर चङती है ।इस तरह हमने पिंड के चक्रों के बारे में जाना । इसके आगे ब्रह्माण्ड देश और चक्रों आदि का वर्णन किया जायेगा । कृपया इस जानकारी का उपयोग सिर्फ़ अपनी पुरातन परम्परा को जानने हेतु ही करें । और यदि ?
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी। सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "

शनिवार, जून 26, 2010

मन्त्र का रहस्य..


मैंने अपने साधु जीवन में इस बात को बखूबी अनुभव किया । कि लोग मन्त्र तन्त्र को या तो अत्यन्तश्रद्धा की नजर से देखते हैं । या फ़िर दूसरे द्रष्टिकोण में इस तरह की बातों से एक अनजाने से भय से भयभीत भी रहते हैं । एक और नजरिये से कुछ लोग जो मन्त्र तन्त्र विग्यान में कुछ जानकार हो जाते
हैं । वो व्यर्थ के अहम का शिकार होते भी देखे गये हैं । थोङी बारीकी से विचार किया जाय तो ईश्वरीय ग्यान या ईश्वरीय सीमा क्या इतनी सीमित है । जो इतनी आसानी से समझ में आ जाय । फ़िर " विराट "
और अनन्त शब्दों के मायने क्या होंगे ? यह तो एक अलग बात है । पर मैंने देखा है । कि मन्त्र को लोग जाने कितना बङा " हौवा " समझते हैं । मेरा आज का चर्चा का विषय यही है । इसको समझने के लिये हम
किसी भी एक सरल मन्त्र को ले सकते हैं । कठिन में इसलिये नहीं ले रहा । क्योंकि मैं तो समझ जाऊँगा ।पर आम लोग जो मन्त्र आदि को करीब से नहीं जानते । उन्हें समझने में कठिनाई हो सकती है ।
अब जरा इस मन्त्र पर नजर डालें । " ॐ सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य समन्विते । मनुष्यो मत्प्रसादेनभविष्य्ति न संशयिते । " लग रहा है । न डरावना सा । पता नहीं क्या लिखा है। और इसका क्या मतलब है । कहाँ और किसलिये और किस तरह कार्य करता है । आईये विचार करते हैं । यह मन्त्र के अन्दाज में एक बेहद साधारण बात लिखी है । जिसको तमाम तरह के अहंकार पाले नकली बाबा बेहद सेवा सुश्रूषा के बाद धन आदि लेकर आपको बङे अहसान से देते हैं । और धर्म के क्षेत्र में आपकी अग्यानता और भय कोभुनाते हैं ।
मात्र संस्कृत भाषा में होने से आप मन्त्र से भयभीत हो जाते हैं । मेरे पास क्योंकि इस बात को लेकर बेहद शंकाए और प्रश्न आते हैं । इसलिये आज मैं इस विषय पर जो भी मैं जानता हूँ । आप तकपहुँचा रहा हूँ । ॐ जैसा कि मैंने कई लेखों में लिखा है । शरीर का प्रतीक है । वास्तव में हमारे शरीर की रचना ॐ से हुयी है । तत्व ग्यान की दृष्टि से शरीर ही ॐ है । क्योंकि शरीर हमारे लिये एक वाहन की तरह कार्य करता है । इसके द्वारा ही हम उन्नति या अवनति का मार्ग बना सकते हैं । चाहे वो इहलौकिक हो अथवा पारलौकिक । शरीर के विना किसी भी सांसारिक पदार्थ या परिवार या वासना का कोई महत्व नहीं है । क्योंकि फ़िर उसका उपयोग क्या ? शरीर से ही हम स्वर्ग और अन्य उच्च लोकों को प्राप्त कर सकते हैं । शरीर का दुरुपयोग करने पर नरक के भी भागी बनते हैं । इसलिये क्योंकि ॐ शरीर है । और सारा प्रयोजन इसी हेतु किया जा रहा है । ॐ को प्रत्येक मन्त्र के आगे जोङने का विधान वेद बतलाता है ।
संत मत क्योंकि अपनी शुरुआत ही " आत्मा " से करता है । और शरीर को साधन के रूप में देखता है । इसलिये आत्म ग्यान या संत मत में ॐ को कोई महत्व नहीं दिया गया है । अब ऊपर जो मन्त्र दिया है । वो अगर हिंदी में होता । तो इस तरह होता ।" मैं सभी बाधाओं से मुक्त होऊँ । धन धान ( अनाज ) से भरा पूरा रहूँ । इस प्रकार में मनुष्य के रूप में अपने घर में रहता हुआ । भविष्य की किसी भी चिंता से मुक्त रहूँ । " तो देखा आपने कितनी साधारण बात संस्कृत में होने के कारण कितनी डरावनी लग रही थी । वेद हों या अन्य धार्मिक ग्रन्थ । सभी इस तरह की ही बात कहते हैं । पर क्योंकि जिस समय इनकी रचना हुयी । और देवताओं की भाषा संस्कृत है । इसलिये इनको संस्कृत में कहा गया है । ऊपर दिये गये मन्त्र को मैंने इसलिये चुना । क्योंकि एक आम आदमी की सुख शान्ति के लिये ये बेहद प्रभावशाली मन्त्र है । और " द्वैत " की साधना के समय ये मन्त्र मैंने कई लोगों को दिया था । किसी भी मन्त्र में दो बातों का होना महत्वपूर्ण है । एक तो उसका सही उच्चारण । और दूसरी उससे भी महत्वपूर्ण बात है । कि मन्त्र दाता द्वारा मन्त्र को एक्टिव करना । अब मान लो ये मन्त्र पङकर कोई प्रक्टीकल के तौर पर इसका जाप करने लगे । तो सालों बाद भी उसे कोई लाभ नहीं होगा । क्योंकि अभी ये बेजान है । जिस तरह आप किसी मोबाइल की सिम ले आओ । और ये चाहो । कि बिना एक्टिव किये ये काम करने लगे । तो वो नहीं करेगी । यही बात मन्त्र पर लागू होती है । ये बात मैं खास इसलिये कह रहा हूँ । कि पिछले तीन महीने में
इंटरनेट के माध्यम से जुङने वाले कुछ साधकों को मैंने मन्त्र बेहद सरल और हिंदी या इंगलिश भाषा में दिये तो उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ । कि मन्त्र इस प्रकार के भी हो सकते है ? जैसे " हे प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ । मुझे सत्य ग्यान दो । " प्रभु में आपके दर्शन करना चाहता हूँ । आदि । इंगलिश में भी इसी तरह साधारण और सरल वाक्य स्थिति के अनुसार चुन लिये । और मन्त्र कार्य करने लगे । मुख्य बात क्या थी ।
मन्त्र को एक्टिव करने का गुप्त विधान ? ये विधान गुप्त होता है । और साधारण पाठक क्या । सालों से जुङे साधकों या अन्य बाबाओं तक को मैं नहीं बताता । क्योंकि ये बता दिया तो फ़िर बचेगा ही क्या ? कोई भी नहीं बताता । तो कहने का आशय ये है । कि जो लोग स्थायी सुख शान्ति की तलाश में हैं । या किसी भी अद्रश्य या अग्यात की तलाश में हैं । दैहिक दैविक भौतिक सुख की तलाश में है । मन्त्र उनके लिये कारगर औषधि की तरह कार्य करता है । इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी हेतु आप बात कर सकते हैं ।
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