गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

तुम लोग अन्धे हो । जो चींटी और हाथी में फ़र्क करते हो ।

राजीव कुमार जी ! मैं आपको तकरीबन रात को 12 बजे के बाद ही ई-मेल करता हूँ । मेरी मजबूरी है । क्युँ कि मेरा काम ही ऐसा है । मेरे घर से मेरे काम की जगह बहुत दूर है । आते आते रात हो जाती है ।
लेकिन मैं आपका ब्लाग रोज पढता हूँ । चाहे रात के 12 बजे के बाद ही सही । मैंने पहले आपको 3 या 4 बार ई-मेल से प्रश्न भी किये । जिनका आपने अपने लेखों के रूप में उत्तर भी दिया ।
 आपके ब्लाग के बारे में जब तक पता नहीं था । उससे पहले मैं टीवी वाले बाबाओं को सुनता था ( समय मिलने पर )  लेकिन जबसे आपके ब्लाग पर आया हूँ । तबसे टीवी वाले बाबाओं को सुनना कम कर दिया । आजकल तो सिर्फ़ आपका ब्लाग ही पढता हूँ । टीवी वाले बाबाओं को सुनना अब न के बराबर ही है ।
कल शाम किसी वजह से किसी के कहने पर मुझे किसी टीवी वाले बाबा का सतसंग सुनना पड गया । वो बाबा कौन था ? या किस जगह का था ? ये बताना या लिखना जरूरी नहीं । उस बाबा की बातें मेरे को पूरी तरह ठीक नहीं लगी ।
अब मैं सीधे बात पर ही आता हूँ । उस बाबा ने कहा कि - ये सब कुछ जो दिख रहा है । ये सब कुछ मैं ही हूँ । ये सब मेरा ही विस्तार है । मैं ही मैं हूँ । और कोई दूसरा नहीं है ।
फ़िर उसने कहा कि - ये आसमान भी मैं हूँ । और धरती भी मैं हूँ । जो कुछ भी दिखता है ( सृष्टि ) वो सब मैं ही हूँ । और मैं तो सदा ही हूँ ।

अब राजीव जी ! उसने यहाँ पर प्रकृति को भी अपना रुप बताया । और आत्मा को भी । और ये भी कहा कि - मैं तो सदा हूँ । ये कैसे सम्भव है ? क्युँ कि प्रकृति परिवर्तनशील और नश्वर है । आत्मा अजन्मा और अविनाशी है । उसने चेतन और जड को 1 ही बताया ।
 उसने कहा कि - चींटी और हाथी में भी मैं हूँ । तुम लोग अन्धे हो । जो चींटी और हाथी में फ़र्क करते हो । तुम लोग जिसे चींटी या हाथी समझते हो । वो मैं ही तो हूँ ।
लेकिन राजीव जी हकीकत ये है कि - इस वकत दोनों ही हैं । क्युँ कि इस वकत जो शरीर द्वारा हम सब सुख दुख भोगते हैं । उसको भी तो नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता । उसने आत्मा को " अरुप " बताया । और प्रकृति को रुप बताया ।
उसने कहा कि - आत्मदर्शन होते ही तुम्हें पता चल जायेगा कि सब कुछ मैं ही हूँ । महावीर ने इसको आत्मा बोल दिया । बुद्ध ने इसको केवल्य ग्यान द्वारा शून्य 0 बोल दिया । सन्तों ने इसको ही निराकार बोला है । नानक साहेब और कबीर जी ने इसको ओमकार.. ॐकार और सतनाम कहा है ।

राजीव जी देखिये । उस बाबा ने ओमकार  ॐकार  और सतनाम को 1 ही बात बोला है । आत्मग्यान और केवल्य ग्यान को 1 ही बात बोला है । उसने आत्मा को शून्य 0 निराकार और अरुप बोला है ।
राजीव जी ! आपके लेखों में जो आपने सिर्फ़ 1 उदाहरण के तौर पर बात समझाई थी । वो मुझे ठीक लगी थी । आपने लिखा था कि - ये आत्मा * उस परमात्मा रुपी समन्दर की बूँद 0 है । इसलिये आत्मा और परमात्मा के प्रमुख गुण बिल्कुल एक जैसे हैं । लेकिन स्थिति के अनुसार ताकत का बहुत ज्यादा अन्तर हो जाता है । लेकिन उस बाबा ने कहा कि - ये सब कुछ बूँद का ही विस्तार है ( सागर बूँद का विस्तार है )  पूरा पेड 1 पत्ते का ही विस्तार है । घास का ही विस्तार पूरा मैदान है ।
राजीव जी ! कभी तो उसने कहा कि जब आत्मदर्शन होते हैं । तब पता चलता है कि सब कुछ तू ( परमात्मा  ) ही तू है । फ़िर उसने कहा कि आगे जाने पर पता चलता है कि सब कुछ मैं ही मैं हूँ । उसके बाद उसने कहा कि और आगे जाने पर पता चलता है कि सब कुछ स्वयँ ही स्वयँ हूँ ।

राजीव जी ! मैंने 2 बार उसका सतसंग टीवी पर पहले भी देखा था । पहले वाले सतसंग में वो सतलोक से उपर के लोकों की बात कर रहा था ( अलख लोक । अगम लोक और अनामी लोक ) उस वकत ( पहले वाले सतसंग में ) उसने कहा कि - जब हम सतलोक से यहाँ ( इस दुनिया में ) आते हैं । तो वादा करके आते है कि नाम जपेंगे । लेकिन यहाँ आकर मौजमस्ती में डूब जाते हैं । फ़िर मौत के बाद जब हम सतलोक जाते हैं । तो हमें शरमिन्दा होना पडता है ।

 राजीव जी ! अब जब उसके अनुसार सब कुछ 1 ही है । तो फ़िर हम कौन हैं ? किसको वादा करके आते हैं ? और फ़िर किसके सामने जाने पर हमें शर्मिन्दा होना पढता है । वो बाबा कहता है कि - ये द्वैत । तन्त्र । मन्त्र सब झूठ है । सिर्फ़ मन का वहम है । ये सब कल्पना है । कर्मकान्ड है ।

राजीव जी ! ये सब उसने इतनी आसानी से कहा । जैसे उसके अनुसार इस दिखाई देने वाले आसमान के थोडा सा उपर ही सतलोक आदि है । जहाँ पर सिर्फ़ निराकार ही है । वो बाबा तो इस नीले आसमान को भी परमात्मा ही बताता है । वो बाबा " निराकार " शब्द पर इतना अधिक जोर देता है कि कभी कभी तो लगता है कि परमात्मा और आत्मा का अस्तित्व है ही नहीं । वो बाबा प्रकृति या जड या स्थूल दुनिया को परमात्मा का स्थूल शरीर या पिंड मानता है । उसके अनुसार ये पन्छी । ये पेड । ये हवा । ये घास । सब कुछ अच्छा या बुरा आदि सब परमात्मा के शरीर के अंग है । उसके अनुसार ये ही परमात्मा है ।
राजीव जी ! मेरे अनुसार प्रकृति जड है । परिवर्तनशील और नश्वर है । ये तो परमात्मा की रचना है । उस ( परमात्मा ) की बे-अन्त कला का नमूना है । अब मुझे 1 बात और याद आयी कि उसका 1 सतसंग मैंने शिवरात्री के आसपास भी सुना था । तब उसने कहा था कि - आप सब लोग जो यहाँ बैठे हो । आपको किसी को पता नही लगा होगा । लेकिन मैंने देख लिया । शिवजी खुद यहाँ आकर अपनी हाजिरी लगाकर गये हैं ।
राजीव जी ! वो कभी तो शिव को ही परमात्मा बोलता है । और सतलोक को वो शिवलोक कहकर भी बुलाता है । कभी कभी उसका इशारा शिव के रुप मे शंकर भगवान की तरफ़ होता है ।

राजीव जी ! वो कभी तो कहता है कि बस अद्वैत ही है । और द्वैत का तो अस्तित्व ही नहीं । लेकिन कभी कभी उसकी बातें द्वैत की तरफ़ इशारा करती हैं । उसकी अपनी कही हुई बातें ही आपस में टकराती हैं । किसी पुराने सतसंग में कही हुई बात उसके किसी और सतसंग में कही हुई बात से मेल नही खाती । वो अपने सतसंग में दुनिया जहान के गिने चुने सब धार्मिक लोगों की मिसाल देता है ( नानक साहेब । कबीर जी । मीरा जी । जीसस । मुहम्मद । महावीर । बुद्ध । चीनी और जापानी सन्तों की भी बात करता है । और तमाम भारतीय सन्तों की भी )
मुझे 1 बात और याद आयी कि इस संस्था का इससे पहले वाला बाबा जो था । मैंने उसकी लिखी पुस्तक पढी थी । वो अपनी 1 पुस्तक में 1 जगह लिखता है कि - मुझे बडा दुख और अश्च्चर्य होता है । जब मैं लोगों को अपने खुद के हाथों ही प्रेत बनते देखता हूँ । उन लोगों के अन्दर 1 आग धधक रही होती है । वो आग ही जीवन है । और उसको ही तो जानना है  ( आप उस पुराने वाले बाबा की इस बात को स्पष्ट करें )
मुझे शक है कि ये बाबा ( नया वाला ) सिर्फ़ किताबी बातें ही करता है । लेकिन अगर किताबी बातों ( महात्माओं का अनुभव ) को ठीक तरह से समझने में भूल हो जाये । तो बात का कुछ और ही मतलब निकल आता है । और बात सुलझने की बजाय और उलझ जाती है ।
तब फ़िर आपकी कही बात सच साबित होती है कि अधुरा ग्यान खतरनाक होता है । साथ ही साथ मेरे मन में 1 बात और आयी है कि हर महात्मा को सम्पूर्ण सत्य पता नही होता । हर कोई अपनी अपनी पहुँच और सीमा के अन्दर तक के ग्यान की बात बता सकता है । शायद कभी कभी या ज्यादातर लोग जहाँ तक जिस तरीके से भी अपनी पहुँच कर पाते है । वो लोग वहाँ तक की बात को ही सम्पूर्ण सत्य समझ लेते हैं ।
राजीव जी ! आप मेरे इस ई-मेल को बहुत ध्यान से पढकर बिल्कुल सच सच बात समझा दे । अगर मेरी समझ में या लेखन में कोई गलती या नासमझी है । तो खुलकर बता दें । मैं आपकी बात का बिल्कुल बुरा नही मानूँगा । आपके जवाब और लोगों की आखें भी खोल देंगे । दिल्ली से ।

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धन्यवाद भाई जी । आपके उत्तर यथाशीघ्र प्रकाशित करने की कोशिश करूँगा । यदि आपके मन में भी कोई प्रश्न है । या आपका ऐसा कोई अनुभव है । तो हमें लिख भेजिये । आपका अनुभव हमारे तमाम पाठकों के लिये बेहद कीमती हो सकता है । यदि आप अपना चित्र भी प्रकाशित कराना चाहते हैं । तो अवश्य भेजिये । हमारे ब्लाग पर आपका सदैव स्वागत है । अन्त में आप सबका बेहद आभार । धन्यवाद ।
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