रविवार, नवंबर 20, 2011

जमीन पर कोई 300 धर्म हैं

वास्तविक धर्म को । ईश्वर और शैतान । स्वर्ग और नरक से । कुछ लेना देना नहीं है । धर्म के लिए अंग्रेज़ी में जो शब्द है । रिलीजन । वह महत्वपूर्ण है । उसे समझो । उसका मतलब है खंडों को । हिस्सों को संयुक्त करना । ताकि खंड खंड न रह जाएं । वरन पूर्ण हो जाएं । रिलीजन  का मूल अर्थ है । एक ऐसा संयोजन बिठाना कि अंश अंश न रहे । बल्कि पूर्ण हो जाए । जुड़कर प्रत्येक अंश स्वयं में संपूर्ण हो जाता है । पृथक रहते हुए प्रत्येक भाग निष्प्राण है । संयुक्त होते ही अभिन्न होते ही एक नई गुणवत्ता प्रकट होती है । पूर्णता की गुणवत्ता । और जीवन में उस गुणवत्ता को जन्माना ही धर्म का लक्ष्य है । ईश्वर या शैतान से धर्म का कोई संबंध नहीं है । लेकिन धर्मों ने जिस तरह से जगत में कार्य किया । उन्होंने उसका पूरा गुण धर्म । उसकी पूरी संरचना ही बदल डाली । बजाय इसके कि उसे बनाते । अंतस की एकता का विज्ञान । ताकि मनुष्य विखंडित न रहे । एक हो जाए । सामान्यतः तुम एक नहीं । अनेक हो । पूरी भीड़ हो । धर्म का कार्य है । इस भीड़भाड़ को । अनेकता को एक समग्रता में ढालना । ताकि तुम्हारे भीतर का प्रत्येक अंग  अन्य अंगों के साथ एक स्वर में काम करने लगे । न कोई विभाजन हो । न संघर्ष । न कोई श्रेष्ठ हो । न निकृष्ट ।  न किसी प्रकार का द्वंद्व बचे । तुम बस एक लय बद्ध अखंडता हो जाओ । दुनिया के इन सारे धर्मों की वजह से मनुष्यता धर्म शब्द का अर्थ तक भूल गई है । वे अखंडित मनुष्य के खिलाफ हैं । क्योंकि अखंडित मनुष्य को न ईश्वर की जरूरत है । न पादरी । पुरोहितों की । न मंदिर । मस्जिदों । और चर्चों की ।
अखंडित मनुष्य आप्तकाम होता है । स्वयं में पर्याप्त । वह अपने आप में पूर्ण है । और मेरी दृष्टि में उसकी पूर्णता ही उसकी पवित्रता है । वह इतना परितृप्त है कि फिर उसे परम पिता के रूप में दूर कहीं स्वर्ग में बैठे  उसकी देखभाल करने वाले किसी ईश्वर की कोई मानसिक जरूरत नहीं रह जाती । वह इस क्षण में इतना आनंदित है कि तुम उसे भावी कल के लिए भयभीत नहीं कर सकते । परिपूर्ण व्यक्ति के लिए कल का आस्तित्व ही नहीं होता । वर्तमान पल ही सब कुछ है । न तो वहां बीते हुए कल हैं । और न ही आने वाले कल । तुम एक अखंडित व्यक्ति को इन मूढ़तापूर्ण और बचकानी चालबाजियों से बहका नहीं सकते । अपनी इच्छानुसार नचा नहीं सकते कि ऐसा करने पर स्वर्ग एवं उसके सारे सुख उपलब्ध होंगे । और यदि वैसा काम किया । तो नरक में गिरकर अनंत काल तक दुख भोगोगे । इन सभी धर्मों ने तुम्हें कल्पनाएं दी हैं ।  क्योंकि तुम्हारी कुछ मनोवैज्ञानिक जरूरतें हैं । या तो तुम मन के पार उठो । जो कि सही मायने में धर्म है ।  या फिर कोरी कल्पनाओं में उलझे रहो । ताकि तुम्हारा मन रिक्त । अर्थहीन और अकेलेपन का अनुभव न करे । नदी में बहते तिनके की भांति । न पीछे जिसके स्रोत का पता है । न आगे किसी गंतव्य का । मानव मन की सबसे बड़ी जरूरतों में से 1 जरूरत है । दूसरों के लिए स्वयं के जरूरी होने का अहसास । सामान्यतः प्रतीत तो यही होता है । कि यह अस्तित्व तुम्हारे प्रति पूर्णरूपेण उपेक्षा से भरा है । यह नहीं कहा जा सकता कि उसे तुम्हारी कोई जरूरत है । या कि कह सकते हो ? तुम्हारे बिना भी सब कुछ बिलकुल ठीक ठाक चलता था । रोज सूर्योदय होता था । फूल खिलते थे । मौसम आ जा रहे थे । यदि तुम नहीं होते । तो कुछ भी तो फर्क न पड़ता । 1 दिन फिर तुम यहां नहीं होओगे । और उससे रंचमात्र भी अंतर न आएगा । अस्तित्व जैसा चलता रहा है । चलता रहेगा । यह बात तुम्हें तृप्ति नहीं देती कि तुम्हारा होना न होना । कोई अर्थ नहीं रखता । आवश्यक होना । तुम्हारी सबसे बड़ी आवश्यकता है । ठीक इसके विपरीत अस्तित्व तुम्हें यह अहसास देता है कि जैसे उसे तुमसे कोई सरोकार नहीं है । उसे तुम्हारी परवाह नहीं है । शायद उसे यह तक पता नहीं कि तुम हो भी । यह स्थिति मन को बहुत झकझोरने वाली है । इसी कमजोरी का फायदा उठाया है तथाकथित धर्मों ने । प्रामाणिक धर्म तुम्हारी इस आवश्यकता को गिराने की हर संभव कोशिश करेगा । ताकि तुम स्पष्ट देख लो कि यह कतई आवश्यक नहीं है । कि किसी को तुम्हारी आवश्यकता हो । और जब भी तुम स्वयं के आवश्यक होने की कामना करते हो । तुम थोथी कल्पनाओं की मांग करते हो । ये तथाकथित धर्म जो पृथ्वी पर कई रूपों में मौजूद हैं । हिंदू । मुसलमान । ईसाई । यहूदी । जैन । बौद्ध  और न जाने कितने धर्म । जमीन पर कोई 300 धर्म हैं । और वे सबके सब एक ही काम में संलग्न हैं । वे ठीक उसी आवश्यकता की पूर्ति कर रहे हैं । तुम्हें झूठी तृप्ति दे रहे हैं । वे कहते हैं कि ईश्वर है । जो तुम्हारी फ़िक्र लेता है । तुम्हारी देखभाल करता है । जो तुम्हारा इतना अधिक शुभचिंतक है कि तुम्हारे जीवन को मार्ग दर्शन देने के लिए 1 पवित्र ग्रंथ भेजता है । कि तुम्हारी सहायता के लिए  तुम्हें सही राह पर लाने के लिए अपना इकलौता बेटा भेजता है । वह पैगंबर और मसीहा भेजता है । ताकि तुम कहीं भटक न जाओ । और यदि तुम भटक जाओ । तो वे तुम्हारी दूसरी कमजोरी का शोषण करते हैं । शैतान का भय । जो हर संभव ढंग से तुम्हें गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश में लगा है ।
साधारणतः जैसी मनुष्यता इस समय है । एक तरफ तो इसे ईश्वर की । संरक्षक की । पथ प्रदर्शक की । और सहयोग की जरूरत है । और दूसरी तरफ । 1 नरक की । ताकि आदमी उन सभी रास्तों पर चलने से डरा रहे । जिन्हें पादरी पुरोहित गलत समझते हैं । पर क्या गलत है । और क्या सही है । हर समाज में यह भिन्न भिन्न है । इसलिए सही और गलत समाज द्वारा निर्णीत होते हैं । उनका कोई अस्तित्वगत मूल्य नहीं है । हां एक सजगता की स्थिति है । जब तुम मन के पार चले जाते हो । और बिना किसी पूर्वाग्रह के चीजों को सीधे साफ देख सकते हो । आंखों पर मढ़े किसी सिद्धांत के बगैर । जब तुम सीधे देखते हो । तो तत्क्षण सही और गलत का ज्ञान हो जाता है । किसी को बताने की जरूरत नहीं रह जाती । न किन्हीं आदेशों की आवश्यकता ।
प्रत्येक समाज की अपनी धारणा है कि क्या सही है । और क्या गलत है ? पर जिसे वे गलत कहते हैं । उसे करने से तुम्हें कैसे रोकें ? मुश्किल यह है कि जिसे वे अशुभ और पाप कहते हैं । अधिकांशतः वह प्राकृतिक है । और वह तुम्हें आकर्षित करता है । वह गलत है । मगर स्वाभाविक है । और स्वाभाविक के प्रति एक गहन आकर्षण है । उन्हें इतना ज्यादा भय पैदा करना पड़ता है कि वह स्वाभाविक आकर्षण की अपेक्षा अधिक बलशाली सिद्ध हो । इसीलिए नरक का आविष्कार करना पड़ा । कई धर्म हैं । जो एक नरक से संतुष्ट नहीं हैं । और मैं समझ सकता हूं कि क्यों वे एक नरक से संतुष्ट नहीं हैं । ईसाइयत एक नरक से संतुष्ट है । उसका सीधा कारण है कि ईसाई नरक शाश्वत है । उसमें लंबाई का विस्तार बहुत है । अंत ही नहीं आता । चूंकि हिंदुओं । जैनों  और बौद्धों के नरक शाश्वत नहीं हैं । इसलिए उन्हें ऊंचाइयां निर्मित करनी पड़ीं । सात नरक । एक के ऊपर एक ! और हर नरक अधिक से अधिक पीड़ादायी होता जाता है । ज्यादा से ज्यादा अमानवीय ।
और मुझे आश्चर्य होता है । वे लोग । जिन्होंने इन नरकों का पूरे घोर विस्तार से वर्णन किया है । संत कहलाते थे । वे लोग  यदि उन्हें मौका मिलता । तो बड़ी आसानी से एडोल्फ हिटलर । जोसेफ स्टैलिन और माओत्से तुंग हो गए होते । उनको सब खयाल था कि कैसे सताया जाए । सिर्फ उनके पास शक्ति नहीं थी । लेकिन 1 सूक्ष्म अर्थ में । उनके पास भी शक्ति थी । पर वर्तमान में नहीं । यहां नहीं । उनकी ताकत थी उनके शंकराचार्य होने में । पोप और प्रमुख पादरी होने में । उस शक्ति के सहारे उन्होंने तुम्हें नरक में फिंकवाने का इंतजाम कर दिया । अभी न सही । तो भविष्य में कभी मृत्यु के बाद । वैसे तो मृत्यु स्वयं ही इतनी भयावह है । किंतु वह उनके लिए काफी नहीं थी । क्योंकि स्वाभाविक प्रवृत्तियां वास्तव में अत्यधिक प्रबल हैं । और वे लोग क्यों इन नैसर्गिक आकर्षणों के इतने खिलाफ थे ? क्योंकि सहज प्रवृत्तियां उनके न्यस्त स्वार्थों के विरुद्ध पड़ती हैं । सभी धर्मों ने सिखाया है कि गरीब धन्यभागी हैं । यह केवल जीसस की ही शिक्षा नहीं है । हां वे उसे जरा ठीक ढंग से । एक वचन में । उक्ति के रूप में कह देते हैं कि धन्यभागी  हैं । वे जो दरिद्र हैं । क्योंकि वे ही प्रभु के राज्य में प्रवेश के अधिकारी होंगे । लेकिन मूलतः यह समस्त धर्मों की शिक्षा है । तुम्हें गरीबी को एक वरदान के रूप में । परमात्मा के द्वारा दी गई भेंट समझकर अंगीकार करना चाहिए । यह सिर्फ तुम्हारी श्रद्धा की परीक्षा है । यदि तुम गरीबी की इस अग्निपरीक्षा में बिना शिकायत के  चुपचाप  बगैर यह सोचे कि यह अन्याय है । यदि तुम ईश्वर की देन मानकर इससे गुजर जाते हो । तो प्रभु का राज्य तुम्हारा है । यह लजारस के लिए बड़ी सांत्वना देने वाली बात है । जब जीसस उससे कहते हैं । ऐसा हुआ कि लजारस अत्यंत दरिद्र था । और गांव का सर्वाधिक संपन्न व्यक्ति अपने जन्म दिन पर शानदार दावत दे रहा था । भूखा प्यासा लजारस उस गांव से गुजरता था । उसने थोड़ा सा पानी मांगा । तो नौकरों चाकरों ने उसे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया । और बोले क्या तुझे दिखाई नहीं देता कि हमारा मालिक एक भोज दे रहा है । और बड़े बड़े अतिथि इकट्ठे हुए हैं ? और तू ठहरा एक मामूली भिखारी । तेरी भीतर घुसने की और पानी मांगने की हिम्मत कैसे पड़ी ? चल  हट । भाग यहां से । जितनी जल्दी हो सके । यहां से रफा दफा हो जा । जीसस लजारस से कहते हैं । परेशान मत होओ । स्वर्ग में तुम सभी सुखों का उपभोग करोगे । और इस आदमी को नरक की आग में जलते हुए देखोगे । वह प्यास से तड़फ रहा होगा । और तुमसे विनती करेगा कि लजारस मुझे थोड़ा सा पानी दे दो ।  कितनी भारी सांत्वना ! लेकिन यह चालाकी है । गरीबों के क्रोध और ईर्ष्या से धनवानों को बचाने की साजिश है । धनी तो थोड़े हैं । निर्धन बहुत हैं । एक बार उन्हें यह खयाल आ जाए कि हमारी दरिद्रता वरदान नहीं । बल्कि अभिशाप है । शोषण का परिणाम है । तो वे इन सारे धनवानों को मार ही डालेंगे । यह तरकीब दोनों प्रकार से बढ़िया है । दीन हीन के लिए सांत्वना कि निर्धनता वरदान है । और समृद्ध के लिए सुरक्षा । क्योंकि अब गरीब विद्रोह नहीं कर सकते । दुनिया में धर्मों के कारण गरीबी बनी हुई है । अन्यथा इसकी कोई और वजह नहीं । खासतौर से अब । जबकि विज्ञान और तकनीक इस पूरी पृथ्वी को स्वर्ग में बदल सकते हैं । ये धार्मिक लोग इस पृथ्वी का स्वर्ग में रूपांतरण पंसद नहीं करेंगे । क्योंकि तब उनके स्वर्ग का क्या होगा ? वे इस पृथ्वी को दरिद्र । भूखी । बीमार जैसी दुर्दशा में वह है । वैसी ही रखना चाहते हैं । क्योंकि इसी पर उनका सारा व्यवसाय निर्भर है । अमीर चर्चों को दान देते हैं । क्योंकि चर्च उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है । बेचारे गरीब तक दान देते हैं । जिनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं है । वे इसलिए दान देते हैं । क्योंकि चर्च उन्हें सांत्वना देता है । और उनका मार्गदर्शन करता है । यह जीवन बहुत छोटा है । कुछ ज्यादा तो है नहीं । और इसका भी अधिक हिस्सा तो गुजर चुका । अब थोड़ा सा शेष है । वह भी गुजर जाएगा । और फिर उसके बाद स्वर्ग में अनंत सुखों वाला शाश्वत जीवन है । चर्च उसका रास्ता बताता है । जीसस तुम्हें राह दिखाते हैं । प्राकृतिक जरूरतें । जैसे कामवासना । भूख । ये धार्मिक लोग तुम्हें उपवास करना सिखाते हैं । अब  यह प्रकृति के विरुद्ध है । उपवास करना उतना ही हानिप्रद है । जितना आवश्यकता से अधिक भोजन करना । यदि तुम बहुत ज्यादा खाते हो । पेट में ठूंसते ही जाते हो । तो वह भी अस्वाभाविक है । तुम्हारे अंदर मनोवैज्ञानिक रूप से कुछ गड़बड़ है । शायद भीतर तुम इतना खालीपन अनुभव कर रहे हो ।कि उस आंतरिक रिक्तता को भरने के लिए । जो भी खाने की चीज तुम्हारे हाथ लग जाए । उसे ही अपने पेट में डाल लेते हो । धर्मों ने तुम्हें तुम्हारी स्वाभाविक इच्छाओं और प्रवृत्तियों के विरोध में क्यों रखा ? कारण सीधा साफ है । तुम्हें अपराध भाव महसूस कराने के लिए । इस शब्द को मैं दोहराना चाहता हूं । अपराध भाव ।  यह उनका खास मुद्दा रहा है । केंद्र बिंदु रहा है । तुम्हें मिटाने में । तुम्हारे शोषण में ।  तुम्हें उनकी इच्छानुसार ढालने में ।  तुम्हें निकृष्ट सिद्ध करने में । और तुम्हारा आत्मसम्मान नष्ट करने में । एक बार अपराध भाव उत्पन्न कर दिया । एक बार तुमने यह सोचना शुरू कर दिया कि मैं पतित आदमी हूं । एक पापी हूं । बस । उनका काम हो गया । तब कौन तुम्हें उबारेगा ? निश्चित ही किसी उद्धार करने वाले की जरूरत पड़ेगी । लेकिन पहले बीमारी पैदा करो । ओशो । दि रजनीश बाइबल ।

कामवासना यह शब्द ही अत्यंत निंदित हो गया है

काम जीवन के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से 1 है । क्योंकि यह मूल जीवन ऊर्जा से संबंधित है । कामवासना । यह शब्द ही अत्यंत निंदित हो गया है । क्योंकि समस्त धर्म उन सब चीजों के दुश्मन हैं  । जिनसे मनुष्य आनंदित हो सकता है । इसलिए काम इतना निंदित किया गया है । उनका न्यस्त स्वार्थ इसमें था कि लोग दुखी रहें । उन्हें किसी तरह की शांति । थोड़ी सी भी सांत्वना । और इस रूखे सूखे मरुस्थल में क्षण भर को भी मरूद्यान की हरियाली पाने की संभावना शेष न रहे । धर्मों के लिए यह परम आवश्यक था कि मनुष्य के सुखी होने की पूरी संभावना नष्ट कर दी जाए । यह उनके लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों था ? यह महत्वपूर्ण था । क्योंकि वे तुम्हें तुम्हारे मन को किसी और दिशा में मोड़ना चाहते थे । परलोक की ओर । यदि तुम सच में ही यहां आनंदित हो । इसी लोक में । तो भला तुम क्यों किसी परलोक की चिंता करोगे ? परलोक के अस्तित्व के लिए तुम्हारा दुखी होना अत्यंत आवश्यक है । उसका स्वयं अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं है । उसका अस्तित्व है । तुम्हारे दुख में । तुम्हारी पीड़ा में  । तुम्हारे विषाद में । दुनिया के सारे धर्म तुम्हारे अहित करते रहे हैं । वे god के नाम पर सुंदर और अच्छे शब्दों की आड़ में तुममें और अधिक पीड़ा और अधिक संताप और अधिक घृणा और अधिक क्रोध और अधिक घाव पैदा करते रहे हैं । वे प्रेम की बातचीत करते है । मगर तुम्हारे प्रेम पूर्ण हो सकने की सारी संभावनाओं को मिटा देते हैं । मैं काम का शत्रु नहीं हूं । मेरी दृष्टि में काम उतना ही पवित्र है । जितना जीवन में शेष सब पवित्र है । असल में न कुछ पवित्र है । न कुछ अपवित्र है । जीवन एक है । सब विभाजन झूठे हैं । और काम जीवन का केंद्र बिंदु है । इसलिए तुम्हें समझना पड़ेगा कि सदियों सदियों से क्या होता आ रहा है । जैसे ही तुम काम को दबाते हो । तुम्हारी ऊर्जा स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए नये नये मार्ग खोजना प्रारंभ कर देती है । ऊर्जा स्थिर नहीं रह सकती । जीवन के आधारभूत नियमों में से 1 है कि ऊर्जा सदैव गत्यात्मक होती है । गतिशीलता का नाम ही ऊर्जा है । वह रुक नहीं सकती । ठहर नहीं सकती । यदि उसके साथ जबरदस्ती की गई । 1 द्वार बंद किया गया । तो वह दूसरे द्वारों को खोल लेगी । लेकिन उसे बांधकर नहीं रखा जा सकता । यदि ऊर्जा का स्वाभाविक प्रवाह अवरुद्ध किया गया । तो वह किसी अप्राकृतिक मार्ग से बहने लगेगी । यही कारण है कि जिन समाजों ने काम का दमन किया । वे अधिक संपन्न और समृद्ध हो गए । जब तुम काम का दमन करते हो । तो तुम्हें अपने प्रेम पात्र को बदलना होगा । अब स्त्री से प्रेम करना तो खतरनाक है । वह तो नरक का द्वार है । चूंकि सारे शास्त्र पुरुषों ने लिखे हैं । इसलिए सिर्फ स्त्री ही नरक का मार्ग है । पुरुषों के बारे में क्या खयाल है ? मैं हिंदुओं । मुसलमानों । ईसाइयों से कहता रहा हूं कि अगर स्त्री नरक का मार्ग है । तब तो फिर केवल पुरुष ही नरक जा सकते हैं । स्त्री तो जा ही नहीं सकती । मार्ग तो सदा अपनी जगह रहता है । वह तो कहीं आवागमन नहीं करता । लोग ही उस पर आवागमन करते हैं । यूं कहने को तो हम कहते हैं कि यह रास्ता फलां जगह जाता है । लेकिन इसमें भाषा की भूल है । रास्ता तो कहीं आता जाता नहीं । अपनी जगह आराम से पड़ा रहता है । लोग ही उस पर आते जाते हैं । यदि स्त्रियां नरक का मार्ग हैं । तब तो निश्चित ही नरक में केवल पुरुष ही पुरुष भरे होंगे । नरक सिर्फ पुरुषों का क्लब  होगा । स्त्री नरक का मार्ग नहीं है । लेकिन 1 बार तुम्हारे दिमाग में यह गलत संस्कार बैठ जाए । तो तुम किसी और वस्तु में स्त्री को प्रक्षेपित करने लगोगे । फिर तुम्हें कोई और प्रेम पात्र चाहिए । धन तुम्हारा प्रेम पात्र बन सकता है । लोग पागलों की तरह धन दौलत से चिपके हैं । जोरों से पकड़े हैं । क्यों ? इतना लोभ और लालच क्यों है ? क्योंकि दौलत ही उनकी प्रेमिका बन गई । उन्होंने अपनी सारी जीवन ऊर्जा धन की ओर मोड़ ली । अब यदि कोई उनसे धन त्यागने को कहे । तो वे बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगे । फिर राजनीति से उनका प्रेम संबंध जुड़ जाएगा । राजनीति में सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़ते जाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाएगा । प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद की ओर । राजनीतिज्ञ ठीक उसी लालसा से देखता है । जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका की ओर देखता है । यह विकृति है । कोई व्यक्ति किन्हीं और दिशाओं में जा सकता है । जैसे शिक्षा । तब पुस्तकें उसकी प्रेम की वस्तुएं हो जाती हैं । कोई आदमी धार्मिक बन सकता है । तब परमात्मा उसका प्रेम पात्र बन जाता है । तुम अपने प्रेम को किसी भी काल्पनिक चीज पर प्रक्षेपित कर सकते हो । लेकिन स्मरण रहे  । उससे तुम्हें परितृप्ति नहीं मिल सकती । ओशो । फ्रॉम डार्कनेस टु लाइट ।

जो काबा का पत्‍थर है यह जमीन का पत्‍थर नहीं है

मुसलमानों का तीर्थ है । काबा । काबा में मुहम्‍मद के वक्‍त तक 365 मूर्तियां थी । और हर दिन की 1 अलग मूर्ति थी । वह 365 मूर्तियां हटा दी गयी । फेंक दी गई । लेकिन जो केंद्रीय पत्‍थर था । मूर्तियों का । जो मंदिर को केंद्र था । वह नहीं हटाया गया । तो काबा मुसलमानों से बहुत ज्‍यादा पुरानी जगह है । मुसलमानों की तो उम्र बहुत लंबी नहीं है । 1400 वर्ष ।
लेकिन काबा लाखों वर्ष पुराना पत्‍थर है । और भी दूसरे 1 मजे की बात है कि वह पत्‍थर जमीन का नहीं है । अब तक तो वैज्ञानिक । क्‍योंकि इसके सिवाय कोई उपाय नहीं था । वह जमीन का पत्‍थर नहीं है । यह तो तय है । 1 ही उपाय था । हमारे पास कि वह उल्‍कापात में गिरा हुआ पत्‍थर है । जो पत्‍थर जमीन पर गिरते है । थोड़े पत्‍थर नहीं गिरते । रोज 10 हजार पत्‍थर जमीन पर गिरते है । 24 घंटे में । जो आपको रात तारे गिरते हुए दिखाई पड़ते है । वह तारे नहीं होते । वह उल्का है । पत्‍थर है । जो जमीन पर गिरते है । लेकिन जोर से घर्षण खाकर हवा का । वे जल उठते है । अधिकतर तो बीच में ही राख हो जाते है । कोई कोई जमीन तक पहुंच जाते है । कभी कभी जमीन पर बहुत बड़े पत्‍थर पहुंच जाते है । उन पत्‍थरों की बनावट और निर्मित सारी भिन्‍न होती है । यह जो काबा का पत्‍थर है । यह जमीन का पत्‍थर नहीं है । तो सीधा व्‍याख्‍या तो यह है कि यह उल्‍कापात में गिरा होगा । लेकिन जो और गहरे जानते है । उनका मानना है  वह उल्‍कापात में गिरा पत्‍थर नहीं है । जैसे हम आज जाकर चाँद पर जमीन के चिन्‍ह छोड़ आए है । समझ लें कि 1 लाख साल बाद यह पृथ्‍वी नष्‍ट हो चुकी हो । इसकी आबादी खो चुकी हो । कोई आश्चर्य नहीं है । कल अगर तीसरा महायुद्ध हो जाए । तो यह पृथ्‍वी सूनी हो जाए ।  पर चाँद पर जो हम चिन्‍ह छोड़ आए है ।  हमारे अंतरिक्ष यात्री चाँद पर जो वस्तुएँ छोड़ आए है । वे वहीं बनी रहेंगी । सुरक्षित रहेंगी । उन्‍हें बनाया भी इस ढंग से गया है कि लाखों वर्षो तक सुरक्षित रह सकें ।
अगर कभी कोई चाँद पर कोई भी जीवन विकसित हुआ । या किसी और ग्रह से चाँद पर पहुंचा । और वह चीजें मिलेंगी । तो उनके लिए भी कठिनाई होगी कि वे कहां से आयी है ? उनके लिए भी कठिनाई होगी । काबा का जो पत्‍थर है । वह सिर्फ उल्‍कापात में गिरा हुआ पत्‍थर नहीं है । वह पत्‍थर पृथ्‍वी पर किन्‍हीं और ग्रहों के यात्रियों द्वारा छोड़ा गया पत्‍थर है । और उस पत्‍थर के माध्‍यम से उस ग्रह के यात्रियों से संबंध स्‍थापित किए जा सकते थे । लेकिन पीछे सिर्फ उसकी पूजा रह गयी । उसका पूरा science खो गया  क्‍योंकि उससे संबंध के सब सूत्र खो गए । वह अगर किसी ग्रह पर गिर जाए । तो उस planet के यात्री भी क्‍या करेंगें ? अगर उनके पास इतनी वैज्ञानिक उपलब्‍धि हो कि उसके रेडियो को ठीक कर सकें । तो हमसे संबंध स्‍थापित हो सकता है । अन्‍यथा उसको तोड़ फोड़ करके वह उनके पास अगर कोई म्यूजियम होगा । तो उसमें रख लेंगे । और किसी तरह की व्‍याख्‍या करेंगे कि वह क्‍या है । और रेडियो तक उनका विकास न हुआ हो । तो वह भयभीत हो सकते है । उससे डर सकते है । अभिभूत हो सकते है । आश्चर्यचकित हो सकते है । पूजा कर सकते है ।
काबा का पत्‍थर उन छोटे से उपकरणों में से 1 है । जो कभी दूसरे अंतरिक्ष के यात्रियों ने छोड़ा । और जिनसे कभी संबंध स्थापित हो सकते थे । ये मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूं आपको । क्‍योंकि तीर्थ हमारी ऐसी व्‍यवस्‍थाएं है । जिससे हम अंतरिक्ष के जीवन से संबंध स्‍थापित नहीं करते । बल्‍कि इस पृथ्‍वी पर ही जो चेतनाएं विकसित होकर विदा हो गयीं ।  उनसे  पुन: संबंध स्‍थापित कर सकते है ।
और इस संभावनाओं को बढ़ाने के लिए जैसे कि सम्‍मेत शिखर पर बहुत गहरा प्रयोग हुआ । 22 तीर्थकरों का । सम्‍मेत शिखर पर जाकर समाधि लेना । गहरा प्रयोग था । वह इस चेष्‍टा में था कि उस स्‍थल पर इतनी सघनता हो जाए कि संबंध स्‍थापित करने आसान हो जाएं । उस स्‍थान से इतनी चेतनाएं यात्रा करें । दूसरे लोक में कि उस स्‍थान और दूसरे लोक के बीच सुनिश्चित मार्ग बन जाएं । वह सुनिश्चित मार्ग रहा है । और जैसे जमीन पर सब जगह 1 सी वर्षा नहीं होती । घनी वर्षा के स्‍थल है । विरल वर्षा के स्‍थल है । रेगिस्‍तान है । जहां कोई वर्षा नहीं होती । और ऐसे स्‍थान है । जहां 500 इंच वर्षा होती है । ऐसी जगह है । जहां ठंडा है । सब और ice के सिवाए कुछ भी नहीं है । और ऐसे स्‍थान है । जहां सब गर्म है । और बर्फ भी नहीं बन सकती । ठीक वैसे ही पृथ्‍वी पर चेतना की Density और non density के स्‍थल है । और उनको बनाने की कोशिश की गई है । उनको निर्मित करने की कोशिश कि गई है । क्‍योंकि वह अपने आप निर्मित नहीं होंगे । वह मनुष्‍य की चेतना से निर्मित होंगे । जैसे सम्‍मेत शिखर पर 22 तीर्थकरों का यात्रा करके  समाधि में प्रवेश करना । और उसी 1 जगह से शरीर को छोड़ना । उस जगह पर इतनी घनी चेतना को प्रयोग है कि वह जगह चार्जड हो जाएगी । विशेष अर्थों में । और वहां कोई भी बैठे उस जगह पर । और उन विशेष मंत्रों का प्रयोग करें । जिन मंत्रों को उन 22 लोगों ने किया है । तो तत्‍काल उसकी चेतना शरीर को छोड़कर यात्रा करनी शुरू कर देगी । वह प्रक्रिया वैसी ही science की है । जैसी कि और विज्ञान की सारी प्रक्रियाएं है ।
आज से साढ़े 1400 वर्ष पूर्व । अन्तिम अवतार मुहम्मद  ने कहा था कि हज्रे अस्वद black stone स्वर्ग से उतरा है ( तिर्मिज़ी ) और आज science ने भी खोज करके सिद्ध कर दिया कि वास्तव में यह पत्थर जन्नती पत्थर है । इस खोज का सेहरा ब्रिटेन के 1 वैज्ञानिक रिचर्ड डिबर्टन के सर जाता है । जो स्वयं को मुस्लिम सिद्ध करते हुए kaba का दर्शन करने के लिए मक्का आया । वह अरबी भाषा जानता था । जब मक्का पहुंचा । तो काबा में दाखिल हुआ । और हज्रे अस्वद से एक टुकड़ा प्राप्त करने में सफल हो गया । उसे अपने साथ लंदन लाया । और ज्यूलोजी की लिबार्ट्री में उस पर तजर्बा शुरू कर दिया । खोज के बाद इस परिणाम पर पहुंचा कि हज्रे अस्वद धरती के पत्थरों में से कोई पत्थर नहीं । बल्कि आसमान से उतरा हुआ पत्थर है । और उसने अपनी पुस्तक ( मक्का और मदीना की यात्रा) में इस तथ्य को स्पष्ट किया । यह पुस्तक 1956 में अंग्रेजी भाषा में लंदन से प्रकाशित हुई । ओशो ।

जब जहां भी ऊब आ जाए वहीं turning point होता है

नसरुद्दीन के जीवन में 1 कहानी है । नसरुद्दीन का गधा खो गया है । वह उसकी प्रापर्टी है । सब कुछ । सारा गांव खोज डाला । सारे गाँव के लोग खोज खोजकर परेशान हो गए ।  कहीं कोई पता नहीं चला । फिर लोगों ने कहा । ऐसा मालूम होता है कि किसी तीर्थ यात्रियों के साथ निकल रहे है । तीर्थ का महीना है । और गधा दिखता है कि कहीं तीर्थ यात्रियों के साथ निकल गया । गाँव में तो नहीं है । गांव के आसपास भी नहीं है । सब जगह खोज डाला गया । नसरुद्दीन से लोगों ने कहा । अब तुम माफ करो । समझो कि खो गया । अब वह मिलेगा नहीं ।
नसुरुद्दीन ने कहा कि मैं लास्ट उपाय और कर लूँ । वह खड़ा हो गया । आँख उसने बंद कर ली । थोड़ी देर में वह झुक गया । चारों हाथ पैर से । और उसने चलना शुरू कर दिया । और वह उस मकान का चक्‍कर लगाकर । और उस बग़ीचे का चक्‍कर लगाकर । उस जगह पहुंच गया । जहां 1 खड्डे में उसका गधा गिर पडा था । लोगों ने कहा । नसरुद्दीन हद कर दी । तुम्‍हारी खोज ने । यह आयडिया क्‍या है । उसने कहा । मैंने सोचा कि जब आदमी नहीं खोज सका । तो मतलब यह है कि गधे की की आदमी के पास नहीं है ।
मैंने सोचा कि मैं गधा बन जाऊँ । तो मैंने अपने मन में सिर्फ यह भावना की कि मैं गधा हो गया । अगर मैं गधा होता । तो कहाँ जाता खोजने । गधे को खोजने कहां जाता । फिर कब मेरे हाथ झुककर जमीन पर लग गए । और कब मैं गधे की तरह चलने लगा । मुझे पता ही नहीं चला । कैसे मैं चलकर वहां पहुंच गया । वह मुझे पता नहीं । जब मैंने आँख खोली । तो मैंने देखा । मेरा गधा खड्डे में पडा हुआ है ।
नसरुद्दीन तो 1 सूफी फकीर है । यह कहानी तो कोई भी पढ़ लेगा । और मजाक समझकर छोड़ देगा । लेकिन इसमें 1 की है । इस छोटी सी कहानी में । इसमें कुंजी है । खोज की । खोजने का 1 ढंग वह भी है । और आत्‍मिक अर्थों में तो ढंग वही है । तो प्रत्‍येक तीर्थ की कुंजियां है । यंत्र है । और तीर्थों का पहला प्रयोजन तो यह है कि आपको उस आविष्‍ठ धारा में खड़ा कर दें । जहां धारा वह रही हो । और आप उसमें बह जाएं । इसलिए सदा बहुत सी चीजें गुप्‍त रखी गयी है । गुप्‍त रखने का और कोई कारण नहीं था । किसी से छिपाने का कोई और कारण नहीं था । जिसको हम लाभ पहुंचाना चाहते है । उनको नुकसान पहुंच जाए । तो कोई अर्थ नहीं । तो वास्‍तविक तीर्थ छिपे हुए और गुप्‍त है । तीर्थ छिपे हुए और गुप्‍त है । तीर्थ जरूर है । पर वास्‍तविक तीर्थ छिपे हुए । गुप्‍त है । करीब करीब निकट है । उन्हीं तीर्थों के । जहां आपके झूठे तीर्थ खड़े हुए है । और जो झूठे तीर्थ है । वह जो झूठे तीर्थ है । धोखा देने के लिए खड़े किए गए है । वह इसलिए खड़े किए गए है । कि गलत आदमी ने पहुंच जाए । ठीक आदमी तो ठीक पहुंच ही जाता है । और हरेक तीर्थ की अपनी कुंजियों है ।
इसलिए अगर सूफियों का तीर्थ खोजना हो । तो जैनियों के तीर्थ की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता । अगर सूफियो का तीर्थ खोजना है । तो सूफियों की कुंजिया है । और उन कुंजियों का उपयोग करके तत्‍काल खोजा जा सकता है । तत्‍काल ।
1 विशेष यंत्र जैसे कि तिब्‍बतियों के होते है । जिसमें खास तरह की आकृतियां बनी होती है । वे यंत्र कुंजिया है । जैसे हिंदुओं के पास भी यंत्र है । और हजार यंत्र है । आप घरों में भी शुभ लाभ बनाकर आंकडे लिखकर और यंत्र बनाते है । बिना जाने कि किसलिए बना रहे है । क्‍यों लिख रहे है यह । आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में 1 ऐसा यंत्र बनाए हुए है । जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है । मगर बाप दादे आपके बनाते रहते है । और आप बनाए चले जा रहे है ।
1 विशेष आकृति पर ध्‍यान करने से आपकी चेतना विशेष आकृति लेती है । हर आकृति आपके भीतर चेतना को आकृति देती है । जैसे कि अगर आप बहुत देर तक खिड़की पर आँख लगाकर देखते रहें । फिर आँख बंद करें । तो खिड़की का निगेटिव चौखटा आपकी आँख के भीतर बन जाता है । वह निगेटिव है । अगर किसी यंत्र पर आप ध्‍यान के बाद आपको भीतर निर्मित होते है । वह विशेष ध्‍यान के बाद । आपको भीतर दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है । और जब वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए । तब विशेष आह्वान करने से तत्‍काल आपकी यात्रा शुरू हो जाती है ।
दूसरी बात  मनुष्‍य के life में जो भी है । वह सब matter से निर्मित है । सिर्फ पदार्थ से निर्मित है । मनुष्‍य के life में जो है । सिर्फ उसकी आंतरिक चेतना को छोड़कर । लेकिन आंतरिक चेतना का तो आपको कोई पता नहीं है । पता तो आपको सिर्फ body का है । और शरीर के सारे संबंध पदार्थ से है । थोड़ी सी अल्‍केमी समझ लें । तो दूसरा तीर्थ का अर्थ ख्‍याल में आ जाए ।
अल्क मिस्ट की प्रक्रियाएं है । वह सब गहरी religion की प्रक्रियाएं हैं । अब अल्क मिस्ट कहते है कि अगर पानी को 1 बार बनाया जाए । और फिर पानी बनाया जाए । फिर भाप बनाया जाए । उसको फिर पानी बनाया जाए । ऐसा 1000 बार किया जाए । तो उस पानी में विशेष गुण आ जाते है । जो साधारण पानी में नहीं है । इस बात को पहले मजाक समझा जाता था । क्‍योंकि इससे क्‍या फर्क पड़ेगा । आप 1 दफा पानी को डिस्टिल कर लें । फिर दोबारा उस पानी को भाप बनाकर डिस्‍टिल्‍ड़ कर लें । फिर तीसरी बार । फिर चौथी बार । क्‍या फर्क पड़ेगा । लेकिन पानी डिस्‍टिल्‍ड़ ही रहेगा । लेकिन अब science ने स्‍वीकार किया है कि इसमें quality बदलती है ।
अब science ने स्‍वीकार किया कि वह 1000 बार experiment करने पर उस पानी में विशिष्‍टता आ जाती है । अब वह कहां से आती है । अब तक साफ नहीं है । लेकिन वह water विशेष हो जाता है । लाख बार भी उसको करने के प्रयोग है । और तब वह और विशेष हो जाता है । अब आदमी के body में हैरान होंगे । जानकर आप  कि 75% पानी है । थोड़ा बहुत नहीं 75% । और जो पानी है । उस पानी को chemical ढंग वहीं है । जो समुद्र के पानी का है । इसलिए salt के बिना आप मुश्‍किल में पड़ जाते है ।
आपके body के भीतर जो water है । उसमें salt की मात्रा उतनी ही होनी चाहिए । जितनी समुद्र के पानी में है । अगर इस पानी की व्‍यवस्‍था को भीतर बदला जा सके । तो आपकी चेतना की व्‍यवस्‍था को बदलने में सुविधा होती है । तो लाख बार डिस्टिल्ड़ किया हुआ water अगर पिलाया जा सके । तो आपके भीतर बहुत सी वृतियों में एकदम परिर्वतन होगा । अब यह अल्क मिस्ट हजारों experiment ऐसे कर रहे थे । अब 1 लाख दफा पानी को डिस्टिल्ड़ करने में सालों लग जाते है । और 1 आदमी 24 घंटे यही काम कर रहा था । इसके दोहरे परिणाम होते है । 1 तो उस आदमी का चंचल मन ठहर जाता था । क्‍योंकि यह ऐसा काम था । जिसमें चंचल होने का उपाय नहीं था । रोज सुबह से सांझ तक वह यही कर रहा था।  थक कर मर जाता था । और दिन भर उसने किया क्‍या । हाथ में कुल इतना है कि पानी को उसने 25 दफा डिस्टिल्ड़ कर लिया ।
वर्षों बीत जाते । वह आदमी पानी ही डिस्टिल्ड़ करता रहता । हमें सोचने में कठिनाई होगी । पहले थोड़े दिन में हम ऊब जाएंगे । ऊबेंगे । तो हम बंद कर देंगे । यह मजे की बात है । जब जहां भी ऊब आ जाए । वहीं turning point होता है । अगर आपने बंद कर दिया । तो आप अपनी पुरानी स्‍थिति में लौट जाते है । और अगर जारी रखा । तो आप नयी चेतना को जनम दे लेते है । ओशो ।

आप सदा आनंद से कैसे भरे रहते हैं ?

मेष mar 21 – apr 20
जीवन में दुख आते हैं । यदि सीखने की क्षमता हो । तो दुख बहुत कुछ सिखाते हैं । यह कि क्या गलतियां कीं । और यह भी कि कैसे गलतियों से बचा जाए । यदि इस समय आप इस बात को गहरे दिल में बैठाकर वर्तमान में हो रहे घटनाक्रम को देखेंगे । तो निश्चित मानिये कि आने वाले दिन बहुत ही शुभ और सुखों से भरे होंगे । ऐसा नहीं होने पर जीवन पुनरावृत्ति करता रहेगा । और ऐसे में कोई ज्योतिषी या कुछ और सुख या शांति नहीं ला सकता । यह बात ग्रहों या जन्मकुंडलियों की उतनी नहीं है । जितनी कि समझ और जागकर जीने की । समय है । जब ओशो की देशना को व्यावहारिक रूप से जीवन में उतारें । और ऐसा होता है । तो सुख और प्रसन्नता ज्यादा दूर नहीं हैं ।
वृषभ apr 21 –may 21
भले होना और भोला होना शुभ है । और अपनी गुणवत्ताओं को खयाल में रखकर हर किसी से यह उम्मीद करना कि वे वैसा ही व्यवहार करें । जैसे कि आप हैं । तो कई बार ऐसा संभव नहीं होता है । क्योंकि हरेक का अपना जीवन और अपनी समझ है । न तो आप उनकी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए हैं । न ही वे आपकी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए । आंख खोलकर इस तथ्य को देखें कि सिर्फ अपने भोले होने की दुहाई देकर दूसरों का भावनात्मक शोषण नहीं किया जा सकता है । समय है । जब आप अपनी भूलों को ठीक से देखें । और उन्हें अपने मन के अर्थ न दें । अधिक व्यावहारिक होना आपको जीवन में 1 नई ही दिशा दे सकता है । यह माह आपके लिए ऐसा ही अवसर लेकर आया है । और यह जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य सिद्ध हो सकता है ।
मिथुन may 22 –june 21
जीवन में समस्याएं आती रहती हैं । हर समस्या के लिए इधर उधर हल ढूंढने से न तो आज तक हल मिला । न ही समस्याओं में कमी आई । ओशो कई बार स्मरण दिलाते हैं कि समस्याओं के निदान कोई और नहीं दे सकता है । हमें अपने भीतर ही ढूंढ़ने होंगे । और आप ऐसा कर सकते हैं । लेकिन सम्यक प्रयास इस दिशा में कभी किया ही नहीं । ओशो की देशना और उनके बताए ध्यान प्रयोग भीतर ले जाने के लिए बहुत ही कारगर उपाय हैं । इतने सरल । सहज और उपलब्ध निदान के होते । यदि आप अब भी बाहर ही देखते हैं । और परेशान रहते हैं । तो यह आपका चुनाव है । थोड़ा सा जागें । थोड़ा सा सही दिशा में प्रयास करें । और आप देखेंगे कि जिसे बाहर ढूंढने में इतना समय दिया । वह काम चुटकियों में हो जाता है ।
कर्क june 22 – july 22
ऐसे अवसर आते हैं । जब सुखों और शुभ समाचारों की एक लड़ी सी लग जाती है । जो भी इस समय आपके साथ हो रहा है । उसके कारण आप स्वयं को अति सौभाग्यशाली मान रहे हैं । और ऐसा मानना भी चाहिए । अस्तित्व ने इतने उपहारों से आपको एक तरह से लाद दिया है । अनुग्रह का आना । और अहोभाव से भरना अभी बहुत ही आसान है । और ये ऐसी बातें हैं । जो जीवन को हमेशा ही उच्च से उच्चतर दिशा में ले जाती हैं । यदि अभी आप इसको गहरे से गहरा उतार पाते हैं । तो आने वाले दिनों में यह भाव आपके जीवन को अधिक स्वस्थ और आनंददायी रखेंगे । इससे पहले कि 4 दिन की चांदनी मिट जाए । और अंधेरी रात की शुरुआत हो,। दीया जला लेना विवेकपूर्ण होगा । और दीया है । अहोभाव । अनुग्रह । कृतज्ञता । ओशो के साथ तो यह और अधिक आसान है ।
सिंह july 23-aug 23
जबसे आपके जीवन से कोई विशेष व्यक्ति गया है । आप बेचैन व दुखी रहते हैं । बुनियादी भूल यह हो गई कि आप यह मानकर चल रहे थे कि जीवन में जो कुछ भी हो रहा था । वह उस व्यक्ति की वजह से हो रहा था । ऐसा सत्य नहीं है । यह आप और आपका प्रेम है । जिसने इतना आनंद दिया था । दूसरे की सन्निधि में स्वयं को न भूलें । स्मरण करें कि यह आप ही हैं । जो प्रसन्न थे । और आप आज भी प्रसन्न हो सकते हैं । बाह्य बातें आपकी प्रसन्नता को न तो ला सकती है । न ही ले जा सकती है । निश्चित ही अभी आप कुछ अपने दिन की शुरुआत ओशो सक्रिय ध्यान से करें । यह आपको पूरी तरह से झकझोर देगा । और नई ऊर्जा से भर देगा । और आप एक दिन सहज ही हंस पड़ेंगे कि आनंद तो आपका अपना ही है । न तो कोई ले जा सकता है । न ही कोई दे सकता है ।
कन्या aug 24 - sept 23
जीवन के प्रवाह में अटक जाना बुनियादी भूल है । ओशो कई बार कहते हैं कि जीवन एक प्रवाह है । इसे रोककर डबरा न बनाओ । और जैसे ही हम डबरे बनने लगते हैं । दुर्गंध का आना तय है । और फिर हम दुखी होते हैं कि दुर्गध क्यों हो रही है । जितना आप प्रवाहित रहेंगे । और जीवन में हो रहे बदलावों के साथ सहज ही बहते चले जाएंगे । उतनी ही प्रसन्नता और आनंद आता जाएगा । कृपया अपनी पकड़ को थोड़ा ढीला छोड़ें । ओशो प्रवचन इस दिशा में तरल करने के लिए बहुत सहायक होते हैं । एक प्रवचन हर सुबह हृदयंगम करें । और फिर अपने दैनंदिनी में जुट जाएं । यह माह आपको इतना बड़ा पाठ दे सकता है कि आप स्वयं पर तो मुस्कराएंगे ही । आप अपने आसपास आने वाले लोगों को भी मुस्कुराने का अवसर देंगे ।
तुला ( सितंबर 24 - अक्टूबर 23 )
यह तय है कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं । और करते रहे हैं । जीवन की हर दिशा में सफलता और सृजन आपके लिए बहुत ही आसान रहा है । ऐसे अधिक महत्वाकांक्षी होना स्वाभाविक होता है । लेकिन यही बात आपके सृजन के लिए अवरोध बन जाती है । जितना इस बात को अपने दिल में गहरे से उतार सकें । उतना ही बेहतर । पहले ही आपका जीवन कुछ कदम उस दिशा में चला गया है । जहां प्रसन्नता की जगह तनाव आ रहा है । और इसके पहले कि यह तनाव आपके लिए बहुत भारी हो जाए । एक भरपूर हंसी हंस कर महत्वाकांक्षा को एक तरफ कर दें । जो है । उसका आनंद लें । अपने सृजन को प्राथमिकता दें । और यदि ऐसा कर पाते हैं । तो महत्वाकांक्षा ने जितना अहित किया है । उतना हित संभव हो सकता है । जो आप पाना चाहते हैं । वह आपके पास है ही ।
वृश्चिक ( अक्टूबर 24 - नवंबर 22 )
जो हुआ । हुआ । उसे अब जाने दो । उसे पकड़े रख कर दुखी रहना । निरी मूर्खता होगी । और यह इसलिए भी कि आने वाले दिन खुशियों और सुखों के बहुत सारे तोहफे लेकर आ रहे हैं । यदि पुराने को पकड़ कर रोते ही रहे । तो इन उपहारों से भी चूक जाएंगे । और तब अभाव की एक श़ृंखला बन सकती है । जो भारी से भारी होती चली जाएगी । समय है । आप जागें । और वर्तमान के लिए उपलब्ध हो जाएं । ऐसा करने पर बीते दुख तो बीती बात हो ही जाएगी । आने वाले सुख आपको अधिक स्वस्थ और मजबूत करेंगे । और यही बात इस माह आपको ठीक से सीखनी है । और इस समझ के लिए अपनी आंखें खोलनी हैं । खुली आंखों से जब जीवन इतना सुख देने वाला है । तो आंखें बंद करके दुखों से चिपके रहना शुभ नहीं है ।
धनु ( नवंबर 23 - दिसंबर 23 )
संवेदनशीलता और समझ में आपका कोई मुकाबला नहीं है । और इन्हीं गुणों की वजह से आप कई बार ऐसी परिस्थितियों में स्वयं को पाते हैं । जब यह पता नहीं चलता कि बात गलत हो कहां जाती है । कैसे कोई दूसरा व्यक्ति आपको आहत कर देता है । और आप ठगे से रह जाते हैं । संवेदनशील होने के साथ सुलझी समझ का होना जरूरी है । क्योंकि आपके आसपास लोग इतने संवदेनशील नहीं हैं । उनके अपने गुण और अवगुण हैं । जहां से जब वे जीवन को देखते हैं । तो वे भी वैसे ही स्वयं को ठगा हुआ पाते हैं । जैसे कि आप । और यह समझ आपको तो सहज करेगी ही । आपको यह भी समझ देगी कि दूसरों के गुणों का सम्मान कैसे किया जाए । और यह बदलाव इतना बड़ा हो सकता है कि आप स्वयं भी आनंदित होंगे । और दूसरे भी आनंद से भर जाएंगे । तब कोई भी ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा ।
मकर ( दिसंबर 24 - जनवरी 20 )
दर्द और गम में होना कोई आश्चर्य नहीं है । जब जीवन बहुत अधिक बेहोशी से जीया जाए । आपकी बेहोशी ही आपके लिए हर कदम दुख ले आती है । आप यह देख कर हमेशा ही आश्चर्यचकित होते हैं कि दूसरे कैसे मुस्कुरा रहे हैं । आनंदित हो रहे हैं । जरा अपनी आंखों को खोलें । अपनी बेहोश प्रवृत्तियों के प्रति जागें । जो आदतें पड़ गईं । जिनकी वजह से बार बार आपको दुख देखना पड़ता है । उसके प्रति होश से भरें । होश और जागरण ही आपके जीवन में शुभ के लिए निदान हैं । ओशो की देशना इसी बात पर पूरी मानवता को अग्रसर करती है । आप सौभाग्यशाली हैं कि ओशो दर्शन से परिचित हैं । अब थोड़ा ध्यान करें । कम से कम तीन माह पूरे मन से ओशो सक्रिय ध्यान करें । ओशो हमेशा ही कहते हैं कि ध्यान में पूरा जोर लगा दें । इस बात को आप स्वर्ण सूत्र की तरह दिल में रखें । और अपनी सारी ऊर्जा ध्यान में डाल दें । ऐसा होता है । तो दर्द और गम तो परायी बात होगी ही । दूसरे लोग आपको देख कर आश्चर्य से भरेंगे कि आप सदा आनंद से कैसे भरे रहते हैं ।
कुंभ ( जनवरी 21 - फरवरी 19 )
सफलता और असफलता दोनों ही जीवन में कदम मिला कर चलते हैं । यदि यहां रात है । तो दिन भी है । समग्र स्वीकार भाव इन सबसे ऊपर उठा देता है । जितना आप सफलता का आनंद लेते हैं । उतना ही असफलता पर भी आनंदित हों । उसे भी अस्तित्व से आया । एक उपहार मान कर स्वीकारें । और यही स्वीकार भाव आपको यह दृष्टि देगा कि न तो सफलता सफलता होती है । न ही असफलता असफलता । यह तो बस मन के मानने की बातें हैं । और तब रात हो । या दिन । आप अपने भीतर हमेशा प्रकाश से भरे रहेंगे । ऐसा इसलिए भी जरूरी है । क्योंकि वर्तमान में असफलता ने आपको बहुत आहत किया हुआ है । स्वयं को आहत कर अपने आपको अधिक सजा न दें । स्वीकार भाव से भर जाएं । और असफलता का भी उत्सव मनाएं । ओशो तो हमें हर बात का उत्सव मनाना सिखाते हैं न । तो फिर देर किस बात की ।
मीन ( फरवरी 20 - मार्च 20 )
हो सकता है कि थोड़े समय के लिए आपको ऐसा लगे कि जीवन जैसा चल रहा है । वो आपको समझ ही नहीं आ रहा है । आप बहुत ही बेबूझ से भरे जीवन को लेकर उलझ गए हैं । ओशो कहते हैं कि जीवन कोई समस्या नहीं है । जिसे सुलझाना है । कोई उलझन नहीं कि उसका हल ढूंढ़ लें । जीवन बस रहस्य है । जिसका आनंद लेना है । आपके जीवन में सहज ही यह रहस्य सारी दिशाओं से आ रहा है । अब इसे पहेली बनाकर सुलझाने का प्रयास न करें । यदि ऐसा करते हैं । तो आप और भी अधिक उलझ जाएंगे । तब इस उलझन की एक अंतहीन सी श़ृंखला चल जाएगी । इस समय ओशो को सुनना आपको बहुत ही आनंदित करेगा । क्योंकि ओशो इस रहस्य का भरपूर आनंद लेना सिखाते हैं । सच मानिए,। समय तो आपके जीवन का ऐसा है कि जितना उत्सव मनाएं । उतना ही कम ।

उससे यह मत कहो कि हम जो कहते हैं वही सत्य है

तेन त्यक्तेन भुज्जीथा । यह सूत्र । यह कहता है । इतना ही कहता है । सीधी सीधी बात कि जो छोड़ता है । वह भोगता है । यह । यह नहीं कहता कि तुम्हें भोगना हो । तो तुम छोड़ना । यह । यह कहता है कि अगर तुम छोड़ सके । तो तुम भोग सकोगे । लेकिन तुम भोगने का खयाल अगर रखे । तो तुम छोड़ ही नहीं सकोगे ।
अदभुत है सूत्र । पहले कहा । सब god का है । उसमें ही छोड़ना आ गया । जिसने जाना । सब परमात्मा का है । फिर पकड़ने को क्या रहा ? पकड़ने को कुछ भी न बचा । छूट गया । और जिसने जाना कि सब परमात्मा का है । और जिसका सब छूट गया । और जिसका मैं गिर गया । वह परमात्मा हो गया । और जो परमात्मा हो गया । वह भोगने लगा । वह रसलीन होने लगा । वह आनंद में डूबने लगा । उसको पल पल रस का बोध होने लगा । उसके प्राण का रोआं रोआं नाचने लगा । जो god हो गया । उसको भोगने को क्या बचा ? सब भोगने लगा वह । आकाश उसका भोग्य हो गया । फूल खिले । तो उसने भोगे । सूरज निकला । तो उसने भोगा । रात तारे आए । तो उसने भोगे । कोई मुस्कुराया । तो उसने भोगा । सब तरफ उसके लिए । भोग फैल गया । कुछ नहीं है उसका अब । लेकिन चारों तरफ भोग का विस्तार है । वह चारों तरफ से रस को पीने लगा ।
धर्म भोग है । और जब मैं ऐसा कहता हूं । धर्म भोग है । तो अनेकों को बड़ी घबराहट होती है । क्योंकि उनको खयाल है कि धर्म त्याग है । ध्यान रहे । जिसने सोचा कि धर्म त्याग है । वह उसी गलती में पड़ेगा । वह इनवेस्टमेंट की गलती में पड़ जाएगा । त्याग जीवन का तथ्य है । इस जीवन में पकड़ना नासमझी है । पकड़ रहा है । वह गलती कर रहा है । सिर्फ गलती कर रहा है । जो उसे मिल सकता था । वह खो रहा है । पकड़कर खो रहा है । जो उसका ही था । उसने घोषणा करके कि - मेरा है । छोड दिया । लेकिन जिसने जाना कि सब परमात्मा का है । सब छूट गया । फिर त्याग करने को भी नहीं बचता कुछ । ध्यान रखना । त्याग करने को भी उसी के लिए बचता है । जो कहता है - मेरा है ।
1 आदमी कहता है कि - मैं यह त्याग कर रहा हूं । तो उसका मतलब हुआ कि वह मानता था कि मेरा है । सच में जो कहता है - मैं त्याग कर रहा हूं । उससे त्याग नहीं हो सकता है । क्योंकि उसे मेरे का खयाल है । त्याग तो उसी से हो सकता है । जो कहता है - मेरा कुछ है नहीं । मैं त्याग भी क्या करूं । त्याग करने के लिए पहले मेरा होना चाहिए । अगर मैं कुछ कह दूं कि यह मैंने आपको त्याग किया । कह दूं कि यह आकाश मैंने आपको दिया ।  तो आप हंसेंगे । आप कहेंगे । कम से कम पहले यह पक्का तो हो जाए कि आकाश आपका है । आप दिए दे रहे हैं । मैं कह दूं कि दे दिया मंगलग्रह आपको । दान कर दिया । तो पहले मेरा होना चाहिए । त्याग का भृम उसी को होता है । जिसे ममत्व का खयाल है ।
नहीं । त्याग छोड़ने से नहीं होता । त्याग इस सत्य के अनुभव से होता है कि सब परमात्मा का है । त्याग हो गया । अब करना नहीं पड़ेगा । घटित हो गया । इस तथ्य की प्रतीति है कि सब परमात्मा का है । अब त्याग को कुछ बचा नहीं । अब आप ही नहीं बचे । जो त्याग करे । अब कोई दावा नहीं बचा । जिसका त्याग किया जा सके । और जो ऐसे त्याग की घड़ी में आ जाता है । सारा भोग उसका है । सारा भोग उसका है । जीवन के सब रस । जीवन का सब सौंदर्य । जीवन का सब आनंद । जीवन का सब अमृत उसका है ।
इसलिए यह सूत्र कहता है । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा । जिसने छोड़ा । उसने पाया । जिसने खोल दी मुट्ठी । भर गई । जो बन गया झील की तरह । वह भर गया । जो हो गया खाली । वह अनंत संपदा का मालिक है ।
शिक्षकों के सम्मेलन होते हैं । तो वे विचार करते हैं । student बड़े अनुशासन हीन हो गए । इनको डिसिप्लिन में कैसे लाया जाए । कृपा करें । इनको पूरा अनुशासन हीन हो जाने दें । क्योंकि आपके डिसिप्लिन का परिणाम क्या हुआ है । 5000 साल से । डिसिप्लिन में तो थे । क्या हुआ ? और डिसिप्लिन सिखाने का मतलब क्या है ? डिसिप्लिन सिखाने का मतलब है कि हम जो कहें । उसको ठीक मानो । हम ऊपर बैठें । तुम नीचे बैठो । हम जब निकलें । तो दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करो । या और ज्यादा डिसिप्लिन हो । तो पैर छुओ । और हम जो कहें । उस पर शक मत करो । हम जिधर कहें । उधर जाओ । हम कहें बैठो । तो बैठो । हम कहें उठो । तो उठो । यह डिसिप्लिन है ? डिसिप्लिन के नाम पर आदमी को मारने की करतूतें हैं । उसके भीतर कोई चैतन्य न रह जाए । उसके भीतर कोई होश न रह जाए । उसके भीतर कोई विवेक और विचार न रह जाए ।
मिलिटरी में क्या करते हैं ? 1 आदमी को 3-4 साल तक कवायद करवाते हैं । लेफ्ट टर्न । राइट टर्न । कितनी बेवकूफी की बातें हैं कि आदमी से कहो कि बाएं घूमो । दाएं घूमो । घुमाते रहो 3-4 साल तक । उसकी बुद्धि नष्ट हो जाएगी । 1 आदमी को बाएं दाएं घुमाओगे । क्या होगा ? कितनी देर तक उसकी बुद्धि स्थिर रहेगी । उससे कहो बैठो । उससे कहो खड़े होओ । उससे कहो दौड़ो । और जरा इनकार करे । तो मारो । 3-4 वर्ष में उसकी बुद्धि क्षीण हो जाएगी । उसकी मनुष्यता मर जाएगी । फिर उससे कहो । राइट टर्न । तो वह मशीन की तरह घूमता है । फिर उससे कहो । बंदूक चलाओ । तो वह मशीन की तरह बंदूक चलाता है । आदमी को मारो । तो वह आदमी को मारता है । वह मशीन हो गया । वह आदमी नहीं रह गया । यह डिसिप्लिन है ? और यह है डिसिप्लिन । हम चाहते हैं कि बच्चों में भी हो । बच्चों में मिलिट्राइजेशन हो । उनको भी NCC सिखाओ । मार डालो दुनिया को । NCC सिखाओ । सैनिक शिक्षा दो । बंदूक पकड़वाओ । लेफ्ट राइट टर्न करवाओ । मारो दुनिया को । 5000 साल में आदमी को । मैं नहीं समझता कि कोई समझ भी आई हो कि चीजों के क्या मतलब है ? डिसिप्लिनड आदमी डेड होता है । जितना अनुशासित आदमी होगा । उतना मुर्दा होगा ।
तो क्या मैं यह कह रहा हूं कि लड़कों को कहो कि विद्रोह करो । भागो । दौड़ो । कूदो क्लास में । पढ़ने मत दो । यह नहीं कह रहा हूं । यह कह रहा हूं कि आप प्रेम करो बच्चों को । बच्चों के हित । भविष्य की मंगलकामना करो । उस प्रेम और मंगलकामना से 1 डिसिप्लिन आनी शुरू होती है । जो थोपी हुई नहीं है । जो बच्चे के विवेक से पैदा होती है । 1 बच्चे को प्रेम करो । और देखो कि वह प्रेम उसमें 1 अनुशासन लाता है । वह अनुशासन लेफ्ट राइट टर्न करने वाला अनुशासन नहीं है । वह उसकी आत्मा से जगता है । प्रेम की ध्वनि से जगता है । थोपा नहीं जाता है । उसके भीतर से आता है । उसके विवेक को जगाओ । उसके विचार को जगाओ । उसको बुद्धिहीन मत बनाओ । उससे यह मत कहो कि हम जो कहते हैं । वही सत्य है ।
सत्य का पता है आपको ? लेकिन दंभ कहता है कि मैं जो कहता हूं । वही सत्य है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप 30 साल पैदा पहले हो गए । वह 30 साल पीछे हो गया । तो आप सत्य के जानकार हो गए । और वह सत्य का जानकार नहीं रहा । जितने अज्ञान में आप हो । उससे शायद हो सकता है वह कम अज्ञान में हो । क्योंकि अभी वह कुछ भी नहीं जानता है । और आप न मालूम कौन कौन सी नासमझियां । न मालूम क्या क्या नोनसेंस जानते होंगे । लेकिन आप ज्ञानी हैं । क्योंकि आपकी 30 साल उम्र ज्यादा है । क्योंकि आप ज्ञानी हैं । आपके हाथ में डंडा है । इसलिए आप उसको डिसिप्लिनड करना चाहते हैं । नहीं । डिसिप्लिनड कोई किसी को नहीं करना चाहिए । न कोई किसी को करे । तो दुनिया बेहतर हो सकती है । प्रेम करें । प्रेम आपका हक है । आप प्रेमपूर्ण जीवन जीयें । आप मंगल कामना करें उसकी । सोचें उसके हित के लिए कि क्या हो सकता है । वैसा करें । और वह प्रेम । वह मंगलकामना असंभव है कि उसके भीतर अनुशासन न ला दे । आदर न ला दे ।

चोर चोरी से जाये हेरा फेरी से न जाये

एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था । देखा उसने राह में । एक कुम्‍हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है । चकित हुआ । ये देखकर कि ये कितना मुर्ख है । क्‍या इसे पता नहीं है कि ये लाखों का हीरा है । और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है । पूछा उसने कुम्‍हार से । सुनो ये पत्‍थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो । इसके कितने पैसे लोगे ? कुम्‍हार ने कहा - महाराज ! इसके क्‍या दाम । पर चलो । आप इसके आठ आने दे दो । हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था कि गधे का गला सूना न लगे । बच्‍चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की और से ल जाएँगे । बच्‍चे भी खुश हो जायेंगे । और शायद गधा भी कि उसके गले का बोझ कम हो गया है । पर जौहरी तो जौहरी ही था । पक्‍का बनिया । उसे लोभ पकड़ गया । उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्‍यादा है । तू इसके चार आने ले ले ।
कुम्‍हार भी थोड़ा झक्‍की था । वह ज़िद पकड़ गया कि नहीं देने हो । तो आठ आने । नहीं देने है । तो कम से कम छह आने तो दे ही दो । नहीं तो हम नहीं बेचेंगे । जौहरी ने कहा - पत्‍थर ही तो है । चार आने कोई कम तो नहीं । और सोचा । थोड़ी दूर चलने पर आवाज दे देगा । आगे चला गया । लेकिन आधा फरलांग चलने के बाद भी कुम्हार ने उसे आवाज न दी । तब उसे लगा । बात बिगड़ गई । नाहक छोड़ा । छह आने में ही ले लेता । तो ठीक था । जौहरी वापस लौटकर आया । लेकिन तब तक बाजी हाथ से जा चुकी थी । गधा खड़ा आराम कर रहा था । और कुम्हार अपने काम में लगा था । जौहरी ने पूछा - क्‍या हुआ । पत्‍थर कहां है ? कुम्‍हार ने हंसते हुए कहा - महाराज एक रूपया मिला है । उस पत्‍थर का । पूरा आठ आने का फायदा हुआ है । आपको छह आने में बेच देता । तो कितना घाटा होता । और अपने काम में लग गया ।
पर जौहरी के तो माथे पर पसीना आ गया । उसका तो दिल बैठा जा रहा था । सोच सोच कर । हाय । लाखों का हीरा । यूं मेरी नादानी की वजह से हाथ से चला गया । उसने कहा - मूर्ख ! तू बिलकुल गधे का गधा ही रहा । जानता है । उसकी कीमत कितनी है । वह लाखों का था । और तूने एक रूपये में बेच दिया । मानो बहुत बड़ा खजाना तेरे हाथ लग गया ।
उस कुम्‍हार ने कहा - हुजूर मैं अगर गधा न होता । तो क्‍या इतना कीमती पत्‍थर गधे के गले में बाँध कर घूमता । लेकिन आपके लिए क्‍या कहूं ? आप तो गधे के भी गधे निकले । आपको तो पता ही था कि लाखों का हीरा है । और आप उस के छह आने देने को तैयार नहीं थे । आप पत्‍थर की कीमत पर भी लेने को तैयार नहीं हुए ।
यदि इन्सान को कोई वस्तु आधे दाम में भी मिले । तो भी वो उसके लिए मोल भाव जरुर करेगा । क्योकि लालच हर इन्सान के दिल में होता है । कहते है न । चोर चोरी से जाये । हेरा फेरी से न जाये । जौहरी ने अपने लालच के कारण अच्छा सौदा गवा दिया ।
धर्म का जिसे पता है । उसका जीवन अगर रूपांतरित न हो । तो उस जौहरी की भांति गधा है । जिन्‍हें पता नहीं है । वे क्षमा के योग्‍य है । लेकिन जिन्‍हें पता है । उनको क्‍या कहें ?

सारा जगत ओवर फ्लोइंग है आदमी को छोड़कर

अकबर ने एक दिन तानसेन को कहा - तुम्‍हारे संगीत को सुनता हूं । तो मन में ऐसा ख्‍याल उठता है कि तुम जैसा गाने वाला शायद ही इस पृथ्‍वी पर कभी हुआ हो । और न हो सकेगा । क्‍योंकि इससे ऊंचाई और क्‍या हो सकेगी । इसकी धारणा भी नहीं बनती । तुम शिखर हो । लेकिन कल रात जब तुम्‍हें विदा किया था । और सोने लगा । तब अचानक ख्‍याल आया । हो सकता है । तुमने भी किसी से सीखा है । तुम्‍हारा भी कोई गुरू होगा । तो मैं आज तुमसे पूछता हूं । कि तुम्‍हारा कोई गुरू है ? तुमने किसी से सीखा है ?
तो तानसेन ने कहा - मैं कुछ भी नहीं हूं । गुरु के सामने । जिससे सीखा है । उसके चरणों की धूल भी नहीं हूं । इसलिए वह ख्‍याल मन से छोड़ दो । शिखर ? भूमि पर भी नहीं हूं । लेकिन आपने मुझ ही जाना है । इसलिए आपको शिखर मालूम पड़ता हूं । ऊँट जब पहाड़ के करीब आता है । तब उसे पता चलता है । अन्यथा वह पहाड़ होता ही है । पर तानसेन ने कहां कि - मैं गुरु के चरणों में बैठा हूं । मैं कुछ भी नहीं हूं । कभी उनके चरणों में बैठने की योग्‍यता भी हो जाए । तो समझूंगा । बहुत कुछ पा लिया ।
तो अकबर ने कहा - तुम्‍हारे गुरु जीवित हों । तो तत्‍क्षण । अभी और आज उन्‍हें ले आओ । मैं सुनना चाहूंगा । पर तानसेन ने कहा - यही तो कठिनाई है । जीवित वे हैं । लेकिन उन्‍हें लाया नहीं जा सकता है ।
अकबर ने कहा - जो भी भेंट करना हो । तैयारी है । जो भी । जो भी इच्‍छा हो । देंगे । तुम जो कहो । वहीं देंगे । तानसेन ने कहा - वही कठिनाई है । क्‍योंकि उन्‍हें कुछ लेने को राज़ी नहीं किया जा सकता । क्‍योंकि वह कुछ लेने का प्रश्‍न ही नहीं है ।
अकबर ने कहा - कुछ लेने का प्रश्‍न नहीं है । तो क्‍या उपाय किया जाए ? तानसेन ने कहा - कोई उपाय नहीं । आपको ही चलना पड़े । तो उन्‍होंने कहा - मैं अभी चलने को तैयार हूं ।
तानसेन ने कहा - अभी चलने से तो कोई सार नहीं है । क्‍योंकि कहने से वह गायेंगे नहीं । ऐसा नहीं है वे गाते बजाते नहीं है । तब कोई सुन ले । बात और है । तो मैं पता लगाता हूं कि वह कब गाते बजाते है । तब हम चलेंगे ।
पता चला । हरिदास फकीर । उसके गुरू थे । यमुना के किनारे रहते थे । पता चला । रात तीन बजे उठकर वह गाते है । नाचते हैं । तो शायद ही दुनिया के किसी अकबर की हैसियत के सम्राट ने तीन बजे रात चोरी से किसी संगीतज्ञ को सुना हो । अकबर और तानसेन चोरी से झोपड़ी के बाहर ठंडी रात में छिपकर बैठ गये । पूरी रात इंतजार करेने के बाद । सुबह जब बाबा हरिदास ने भक्ति भाव में गीत गाया । और मस्‍त होकर डोलने लगे । तब अकबर की आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे । वह केवल मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे । एक शब्‍द भी नहीं बोले ।
संगीत बंद हुआ । वापस घर जाने लगे । सुबह की लाली आसमान पर फैल रही थी । अकबर शांत मौन चलते रहे । रास्‍ते भर तानसेन से भी नहीं बोले । महल के द्वार पर जाकर तानसेन से केवल इतना कहां - अब तक सोचता था कि तुम जैसा कोई भी नहीं गा बजा सकता है । यह मेरा भृम आज टुट गया । अब सोचता हूं कि तुम हो कहां । लेकिन क्‍या बात है ? तुम अपने गुरु जैसा क्‍यों नहीं गा सकते हो ?
तानसेन न कहा - बात तो बहुत साफ है । मैं कुछ पाने की लिए बजाता हूं । और मेरे गुरु ने कुछ पा लिया है । इसलिए बजाते गाते है । मेरे बजाने के आगे कुछ लक्ष्‍य है । जो मुझे मिला । उसमें मेरे प्राण है । इसलिए बजाने में मेरे प्राण पूरे कभी नहीं हो पाते । बजाते गाते समय में सदा अधूरा रहता हूं । अंश हूं । अगर बिना गाए बजाएं भी मुझे वह मिल जाए । जो गाने से मिलता है । तो गाने बजाने को फेंककर उसे पा लूँगा । गाने मेरे लिए साधन है । साध्‍य नहीं । साध्‍य कहीं और है । भविष्‍य में । धन में । यश में । प्रतिष्‍ठा में । साध्‍य कहीं और है । संगीत सिर्फ साधन है । साधन कभी आत्‍मा नहीं बन सकता । साध्‍य में ही आत्‍मा का वास होता है । अगर साध्य बिना साधन के मिल जाए । तो साध को छोड़ दूँ अभी । लेकिन नहीं मिलता । साधन के बिना । इसलिए साधन को खींचता हूं । लेकिन दृष्‍टि और प्राण और आकांशा ओर सब घूमता है । साध्य के निकट । लेकिन जिनको आप सुनकर आ रहे है । संगीत उनके लिए कुछ पाने का साधन नहीं है । आगे कुछ भी है । जिसे पाने को वह गा बजा रहे हैं । बल्‍कि पीछे कुछ है । वह बह रहा है । जिससे उनका संगीत फूट रहा है । और बज रहा है । कुछ पा लिया है । कुछ भर गया है । वह बह रहा है । कोई अनुभूति । कोई सत्‍य । कोई परमात्‍मा । प्राणों में भर गया है । अब वह बह रहा है । पैमाना छलक रहा है । आनंद का । उत्‍सव का ।
अकबर बारबार पूछने लगा - किस लिये ? किस लिये ?
स्‍वभावत: हम भी पूछते है । किस लिये ? पर तानसेन ने कहा - नदिया किस लिये बह रही है ? फूल किस लिये खिल रहे है? चाँद सूरज किस लिये चमक रहे हैं ? जीवन किस लिये बह रहा है ?
किस लिये मनुष्‍य की बुद्धि ने पैदा किया है । सारा जगत ओवर फ्लोइंग है । आदमी को छोड़कर । सारा जगत आगे के लिए नहीं जी रहा है । सारा जगत भीतर से जी रहा है । फूल खिल रहे । खिलने का आनंद है । सूर्य निकलता है । निकलने में आनंद है । पक्षी गीत गा रहे है । गाने में आनंद है । हवाएँ बह रही है । चाँद । तारे । आकाश गंगाए चमक रही है । चारों तरफ एक उत्सव का माहौल है । पर आदमी इसके बीच कैसा पत्थर और बेजान सा हो गया है । आनंद अभी है । यही है । स्‍वय में विराजने में है । अपने होने में है । अभी और यही । ऐसे थे । फकीर संत । हरीदास । ओशो ।

पुराना व्यक्ति दमनकारी था

आनंदित हों कि पुराना मर रहा है । नया मनुष्य कोई युद्ध क्षेत्र नहीं है । विभाजित व्यक्तित्व नहीं है । बल्कि 1 अविभाज्य मानव की प्रतिमा है । अद्वितीय । जीवन के साथ समग्रता से सह क्रियाशील । नया मनुष्य मूर्तरूप है । अधिक सक्षम । रूपांतरित व्यक्तित्व का । बृह्मांड में नये ढंग से होने का । सत्य को 1 गुणात्मक भेद से देखने और अनुभव करने का । तो कृपा करें । और अतीत के बीत जाने का शोक न मनाएं । आनंदित हों कि पुराना मर रहा है । रात विदा हो रही है । और क्षितिज पर पौ फटने लगी है । मैं प्रसन्न हूं । अत्यंत प्रसन्न हूं कि पारंपरिक मनुष्य विदा हो रहा है कि पुराने church खंडहर बन रहे हैं ।  कि पुराने मंदिर सूने पड़े हैं । मुझे असीम प्रसन्नता है कि पुरानी नैतिकता धरती पर चारों खाने चित्त पड़ी है । यह 1 महान संकट की घड़ी है । यदि हम चुनौती स्वीकार कर लें । तो यह 1 अवसर है । नये को निर्मित करने का । अतीत में इतना उपयुक्त समय कभी भी नहीं था । तुम अत्यंत सुंदरतम युग में रह रहे हो । क्योंकि पुराना विदा हो रहा है । या विदा हो गया है । और 1 अराजकता पैदा हो गयी है । और अराजकता में से ही महान सितारों का जन्म होता है । तुम्हारे पास 1 सुअवसर है । पुनः नये बृह्मांड को निर्मित करने का । यह 1 अवसर है । जो दुर्लभ है । कभी कभी आता है । तुम सौभाग्यशाली हो कि ऐसे संकट के समय मौजूद हो । इस अवसर को नये मनुष्य के निर्माण करने में प्रयोग कर लो । और अभिनव मनुष्य को निर्मित करने के लिए तुम्हें स्वयं से शुरू करना होगा । नया मनुष्य सब कुछ 1 साथ होगा । रहस्यदर्शी । कवि और वैज्ञानिक । वह जीवन को पुराने । सड़े गले विभाजनों से नहीं देखेगा । वह 1 रहस्यदर्शी होगा । क्योंकि उसे god की उपस्थिति महसूस होगी । वह 1 कवि होगा । क्योंकि वह परमात्मा की उपस्थिति का महोत्सव मनाएगा । और वह वैज्ञानिक होगा । क्योंकि इस उपस्थिति की जांच वह वैज्ञानिक कार्यप्रणाली से करेगा । जब मनुष्य 1 साथ यह तीनों है । तो वह पूर्ण है । पुण्यात्मा की मेरी यही धारणा है । पुराना व्यक्ति दमनकारी था ।  आक्रामक था । पुराने व्यक्ति का आक्रामक होना स्वाभाविक था । क्योंकि दमन हमेशा आक्रमण लाता है । अभिनव मनुष्य सहज होगा । सृजनात्मक होगा । पुराना व्यक्ति सिद्धांतों में जीया । नया मनुष्य सिद्धांतों में नहीं जीएगा । नैतिकताओं में नहीं जीएगा । वह सचेतनता से जीएगा । अभिनव मनुष्य बोधपूर्वक जीएगा । नया मनुष्य उत्तरदायी होगा । उत्तरदायी स्वयं को । और अस्तित्व को । अभिनव मनुष्य पुराने अर्थों में नैतिक नहीं होगा । वह नीति निरपेक्ष होगा । नया मनुष्य अपने साथ 1 नया जगत लेकर आएगा । अभी नया मनुष्य 1 अल्पसंख्यक रूपांतरित वर्ग ही है । लेकिन वह नयी सभ्यता का संवाहक है । बीज है । उसे सहयोग दो । छत पर चढ़कर उसके आगमन की घोषणा करो । यही मेरा संदेश है तुम्हें । नया मनुष्य मुक्त है । और ईमानदार है । उसका सत्य दर्पण जैसा है । प्रामाणिक है । स्वयं को प्रकट करने वाला है । वह पाखंडी नहीं होगा । वह उद्देश्यों के लिए नहीं जीएगा । वह जीएगा । अभी । यहीं । वह केवल 1 ही समय से परिचित होगा । अभी । और 1 ही स्थान । यहां । और उस उपस्थिति में जान पाएगा कि god क्या है । आनंदित होओ । अभिनव मानव आ रहा है । पुराना विदा हो रहा है । पुराना पहले ही सलीब पर लटका है ।  और नये का क्षितिज पर पदार्पण हो चुका है । आनंदित होओ । मैं बारबार कहता हूं । ओशो ।

मैं कहता हूं ईश्वर नहीं है

संपूर्ण अस्तित्व 1 जीवंत देह की भांति काम करता है । प्रत्येक चीज अन्य हर चीज से संबंधित है । घास का छोटे से छोटा तिनका हजारों लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित बड़े से बड़े तारे के साथ जुड़ा हुआ है । कोई order देने वाला कहीं नहीं बैठा है । और सारा काम चल रहा है । अस्तित्व स्वशासित है । जो भी हो रहा है  । स्वतः स्फूर्त है । न कोई आज्ञा देता । न कोई अनुकरण करता । यह महानतम रहस्य है । चूंकि यह रहस्य नहीं समझा जा सका । लोगों ने बहुत प्रारंभ से ही 1 ईश्वर की कल्पना करनी शुरू कर दी । उनकी god की कल्पना का कारण है । उनकी मनोवैज्ञानिक कठिनाई । यह स्वीकारना मुश्किल पड़ता है कि यह विशाल बृह्मांड । अपने आप । स्वतः स्फूर्त चल रहा है । बिना किसी दुर्घटना के । कोई ट्रेफिक पुलिस वाला तक नहीं है । और अरबों खरबों तारे हैं । world की करीब करीब समस्त जातियों ने god की कल्पना पैदा की । यह सिर्फ 1 मनोवैज्ञानिक समस्या है । न इसका religion से कोई नाता है । और न ही दर्शन शास्त्र से कोई रिश्ता है ।  यह बिलकुल समझ से परे है । अकल्पनीय है कि बिना स्रष्टा के यह विश्व कैसे अस्तित्व में आया । और इतना बड़ा बृह्मांड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है ? लोग अपनी तर्क क्षमता और कल्पना शक्ति को इतनी दूर तक न खींच सके । तो उन्होंने ईजाद कर ली । केवल अपने को सांत्वना देने के लिए कि चिंता की कोई बात नहीं है । वरना रात की नींद तक हराम हो जाती । करोड़ों आकाशगंगाएं और ग्रह नक्षत्र घूम रहे हैं । कौन जाने रात बिरात कहां वे आपस में टकरा जाएं । कोई उनकी देखभाल नहीं कर रहा । कोई police वाला नहीं है । न कोई court है । न कानून । लेकिन आश्चर्य कि सभी चीजें इतने बढ़िया ढंग से चल रही हैं । मौसम बदलता है । और बादल वर्षा करने आ जाते हैं । ऋतु बदलती है । और नई कोंपलें । और नई कलियां । और यह अनादिकाल से चला आ रहा है । न कोई हिसाब किताब रखता है ।  न कोई सूरज से कहता है कि समय हो गया । कोई अलार्म घड़ी नहीं है । जो ठीक सुबह बज उठे । और सूर्य से कहे कि चलो बाहर निकलो । अपने कंबल के । अब उदय हो जाओ । सब बिलकुल ठीक ठाक चल रहा है ।
वस्तुतः मेरा ईश्वर को इंकार करना भी उसी तर्क पर आधारित है । मैं कहता हूं ईश्वर नहीं है । क्योंकि कोई ईश्वर इस विशाल बृह्मांड का संचालन नहीं कर सकता । या तो यह आंतरिक रूप से स्वस्फूर्त है । बाहर से इसकी व्यवस्था नहीं हो सकती । जब तक कोई आंतरिक तारतम्य । कोई अंतर्संगति । 1 जीवंत देह की तरह स्वसंचालित भीतरी एकता न हो । कोई बाह्य नियंता अनादि काल से अनंतकाल तक इसकी व्यवस्था नहीं सम्हाल सकता । वह बोर हो जाएगा । और ऊबकर अपने को गोली मार लेगा । आखिर इस सारे झमेले का मतलब क्या है ? कोई उसे तख्वाह तो देता नहीं है । किसी को उसका पता तक तो मालूम नहीं है । मेरी अपनी समझ यह है कि इस अस्तित्व की व्यवस्था बाहर से नहीं की जा सकती । यह ज्यादा अकल्पनीय है । क्यों कोई ईश्वर यह कष्ट उठाएगा । और कब तक यह व्यवस्था करता रहेगा ? कभी वह थक जाएगा । और कभी छुट्टी भी मनाएगा । अवकाश के दिनों में क्या होगा ? और जब वह थक गया है । या सो रहा है । तब क्या होगा ? गुलाब खिलने बंद हो जाएंगे । सितारे गलत मार्गों पर भमण करने लगेंगे । हो सकता है । सूर्य west से उगने लगे । सिर्फ बदलाव के लिए । 1 दिन के लिए ही सही । कौन उसे रोकेगा ? नहीं  बाहर से यह असंभव है । ईश्वर की धारणा पूर्णतः असंगत और व्यर्थ है । कोई बाहर से अस्तित्व की संचालन व्यवस्था नहीं कर सकता । केवल एकमात्र संभावना है भीतर से । अस्तित्व 1 जीवंत समग्रता है । ओशो । द इनविटेशन । ओशो । उद्धरण । फ़िलॉसफिया पैरेनिस ।

97% सांपों में कोई जहर ही नहीं होता

मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है । यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है । अभिशाप है । जो मनुष्य के साथ हुआ है कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है । और कौन सिखा रहा है यह ? यह षडयंत्र कौन कर रहा है ? यह हजार हजार साल से शिक्षा कर रही है । वह कह रही । राम जैसे बनो । बुद्ध जैसे बनो । या अगर पुरानी तस्वीरें जरा फीकी पड़ गईं । तो गांधी जैसे बनो । विनोबा जैसे बनो । किसी न किसी जैसे बनो । लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी मत करना । किसी जैसे बनना । किसी दूसरे जैसे बनो । क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो । असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए । तुम्हारा तो बिलकुल बेकार है । भगवान ने भूल की । जो आपको पैदा किया । क्योंकि अगर भगवान समझदार होता । तो राम और गांधी और बुद्ध ऐसे कोई 10-15 आदमी के टाइप पैदा कर देता । दुनिया में । या अगर बहुत ही समझदार होता । जैसा कि सभी धर्मों के लोग बहुत समझदार हैं । तो फिर 1 ही तरह के  टाइप  पैदा कर देता । फिर क्या होता ?
अगर दुनिया में समझ लें कि 3 अरब राम ही राम हों । तो कितनी देर दुनिया चलेगी ? 15 मिनट में सुसाइड हो जाएगा । टोटल यूनिवर्सल सुसाइड हो जाएगा । सारी दुनिया आत्मघात कर लेगी । इतनी बोरडम पैदा होगी । राम ही राम को देखने से । सब मर जाएगा एकदम । कभी सोचा ? सारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जाएं । और सब पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगें । क्या होगा ? फूल देखने लायक भी नहीं रह जाएंगे । उनकी तरफ आंख करने की भी जरूरत नहीं रह जाएगी ।
नहीं । यह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व है । यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं । और यह कंपेरिजन कि कोई ऊंचा है । और आप नीचे हो । नासमझी का है । कोई ऊंचा और नीचा नही है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है । और प्रत्येक व्यक्ति दूसरा अपनी जगह है । नीचे ऊंचे की बात गलत है । सब तरह का वैल्युएशन गलत है । लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं ।
विद्रोह का मेरा मतलब है । इस तरह की सारी बातों पर विचार । इस तरह की सारी बातों पर विवेक । इस तरह की एक एक बात को देखना कि मैं क्या सिखा रहा हूं ? इस बच्चे को । जहर तो नहीं पिला रहा हूं ? बड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है । और बड़े प्रेम से शिक्षक । मां । बाप जहर पिलाते रहे हैं । लेकिन यह टूटना चाहिए ।
वही फर्क है । जो नींद में और ध्यान में है । इस बात को भी समझ लेना उचित है । नींद है । प्राकृतिक रूप से आई हुई । और आत्म सम्मोहन भी निद्रा है । प्रयत्न से लाई हुई । इतना ही फर्क है । हिप्नोसिस में । हिप्नोस का मतलब भी नींद होता है । हिप्नोसिस का मतलब ही होता है - तंद्रा । उसका मतलब होता है - सम्मोहन । एक तो ऐसी नींद है । जो अपने आप आ जाती है । और एक ऐसी नींद है । जो कल्टीवेट करनी पड़ती है । लानी पड़ती है ।
अगर किसी को नींद न आती हो । तो फिर उसको लाने के लिए कुछ करना पड़ेगा । तब एक आदमी अगर लेटकर यह सोचे कि नींद आ रही है । नींद आ रही है । नींद आ रही है । मैं सो रहा हूं । मैं सो रहा हूं । मैं सो रहा हूं । तो यह भाव उसके प्राणों में घूम जाए । घूम जाए । घूम जाए । उसका मन पकड़ ले कि मैं सो रहा हूं । नींद आ रही है । तो शरीर उसी तरह का व्यवहार करना शुरू कर देगा । क्योंकि शरीर कहेगा कि नींद आ रही है । तो अब शिथिल हो जाओ । नींद आ रही है । तो श्वासें कहेंगी कि अब शिथिल हो जाओ । नींद आ रही है । तो मन कहेगा कि अब चुप हो जाओ । नींद आ रही है । इसका वातावरण पैदा अगर कर दिया जाए भीतर । तो शरीर उसी तरह व्यवहार करने लगेगा । शरीर को इससे कोई मतलब नहीं है । शरीर तो बहुत आज्ञाकारी है ।
अगर आपको रोज 11 बजे भूख लगती है । रोज आप खाना खाते हैं । 11 बजे । और आज घड़ी में चाबी नहीं भर पाए हैं । और घड़ी रात में ही 11 बजे रुक गई है । और अभी सुबह के 8 ही बजे हैं । और आपने देखी घड़ी । और देखा कि 11 बज गए हैं । एकदम पेट कहेगा । भूख लग आई । अभी 11 बजे नहीं हैं । अभी 3 घंटे हैं बजने में । लेकिन घड़ी कह रही है कि 11 बज गए हैं । पेट एकदम से खबर कर देगा कि भूख लग आई है । क्योंकि पेट की तो यांत्रिक व्यवस्था है । 11 बजे रोज भूख लगती है । तो 11 बज गए । तो भूख लग आई है । पेट खबर कर देगा । पेट बिलकुल खबर कर देगा कि भूख लग आई है । अगर रोज रात 12 बजे आप सोते हैं । और अभी 10 ही बजे हैं । और घड़ी ने 12 के घंटे बजा दिए । घड़ी के घंटे देखकर आप फौरन पाएंगे कि तंद्रा उतरनी शुरू हो गई । क्योंकि शरीर कहेगा कि 12 बज गए । अब सो जाना चाहिए ।
शरीर बहुत आज्ञाकारी है । और जितना स्वस्थ शरीर होगा । उतना ज्यादा आज्ञाकारी होगा । स्वस्थ शरीर का मतलब ही यह होता है । आज्ञाकारी शरीर । अस्वस्थ शरीर का मतलब होता है । जिसने आज्ञा मानना छोड़ दिया । अस्वस्थ शरीर का और कोई मतलब नहीं होता । इतना ही मतलब होता है कि आप आज्ञा देते हैं । वह नहीं मानता । आप कहते हैं । नींद आ रही है । वह कहता है । कहां आ रही है । आप कहते हैं । भूख लगी है । वह कहता है । बिलकुल नहीं लगी है । आज्ञा छोड़ दे । वह शरीर अस्वस्थ हो जाता है । आज्ञा मान ले । वह शरीर स्वस्थ है । क्योंकि वह हमारे अनुकूल चलता है । हमारे पीछे चलता है । छाया की तरह अनुगमन करता है । जब वह आज्ञा छोड़ देता है । तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाती है । तो हिप्नोसिस का मतलब । सम्मोहन का मतलब इतना है कि शरीर को आज्ञा देनी है । और उसको आज्ञा में ले आना है ।
हमारी बहुत सी बीमारियां ऐसी हैं । जो झूठी हैं । जो सच्ची नहीं हैं । 100 में से अंदाजन 50 बीमारियां बिलकुल झूठी हैं । दुनिया में जो इतनी बीमारियां बढ़ती जाती हैं । उसका कारण यह नहीं है कि बीमारियां बढ़ती जाती हैं । उसका कारण यह है कि आदमी का झूठ बढ़ता जाता है । तो झूठी बीमारियां बढ़ती चली जाती हैं । इसको ठीक से खयाल में ले लें । इधर रोज बीमारियां बढ़ रही हैं । इसका मतलब यह नहीं है कि बीमारियां बढ़ती जाती हैं । बीमारियों को क्या मतलब है कि आप शिक्षित हो गए हैं । तो बीमारियां बढ़ जाएं । गरीबी कम हो गई है । तो बीमारियां बढ़ जाएं । कम होनी चाहिए । बीमारियां । नहीं । आदमी के झूठ बोलने की क्षमता बढ़ती चली जाती है । तो आदमी दूसरों से ही झूठ नहीं बोलता । अपने से भी झूठ बोल लेता है । वह बीमारियां भी पैदा कर लेता है ।
अगर समझ लें कि एक आदमी को बाजार जाने में कठिनाई है । दिवाला निकलने के करीब है । और उसका मन यह मानने को राजी नहीं होता कि वह दिवालिया हो सकता है । और बाजार में जाने की हिम्मत नहीं होती । दुकान पर कैसे जाए । जो देखता है । वही पैसे मांगता है । अचानक वह आदमी पाएगा कि उसको ऐसी बीमारी ने पकड़ लिया है । जिसने उसे बिस्तर पर लगा दिया । यह क्रियेटेड बीमारी है । यह उसके चित्त ने पैदा कर ली है । इस बीमारी के पैदा होने से दोहरे फायदे हो गए । एक फायदा यह हो गया कि अब वह कह सकता है कि मैं बीमार हूं । इसलिए नहीं आता हूं । उसने अपने को भी समझा लिया । और दूसरों को भी समझा दिया । अब इस बीमारी को किसी इलाज से ठीक नहीं किया जा सकता है । क्योंकि यह बीमारी होती । तो इलाज काम करता । यह बीमारी नहीं है । इसलिए इसको जितनी दवाइयां दी जाएंगी । यह और बीमार पड़ता जाएगा ।
अगर कभी दवाइयां देने से आपकी बीमारी ठीक न हो । तो आप जान लेना कि बीमारी दवाइयों वाली नहीं है । बीमारी कहीं और है । जिसका दवाई से कोई संबंध नहीं है । आप दवाई को गाली देंगे । और कहेंगे कि सब डाक्टर मूर्ख हैं । इतनी चिकित्सा कर रहे हैं । और मेरा इलाज नहीं होता । और आयुर्वेद से लेकर नेचरोपैथी तक । और एलोपैथी से होम्योपैथी तक चक्कर लगाएंगे । कहीं भी कुछ नहीं होगा । कोई डाक्टर आपके काम नहीं पड़ सकता । क्योंकि डाक्टर आथेंटिक बीमारी । प्रामाणिक बीमारी को ही ठीक कर सकता है । झूठी बीमारी पर उसका कोई वश नहीं है । और मजा यह है कि जो झूठी बीमारी है । उसको पैदा आप करने में रसलीन हैं । आप चाहते हैं कि वह रहे ।
स्त्रियों की बीमारियां 50% से भी ऊपर झूठी हैं । क्योंकि स्त्रियों को बचपन से एक नुस्खा पता चल गया है कि जब वे बीमार होती हैं । तभी प्रेम मिलता है । और कभी प्रेम मिलता ही नहीं । जब बीमार होती हैं । तब पति दफ्तर छोड़कर उनके पास कुर्सी लगाकर बैठ जाता है । मन में कितनी ही गालियां देता हो । लेकिन बैठता है । और पति को जब भी उन्हें बिस्तर के पास बिठा रखना हो । तब उनका बीमार हो जाना एकदम जरूरी है । इसलिए स्त्रियां बीमार ही रही आएंगी । कोई मौका ही नहीं । जब वे बीमार न हों । क्योंकि बीमारी में ही वे कब्जा कर लेती हैं । सब पर वे हावी हो जाती हैं । बीमार आदमी घर भर का डिक्टेटर हो जाता है । बीमार आदमी तानाशाह हो जाता है । वह कहता है । इस वक्त सब रेडियो बंद । तो सब रेडियो बंद करने पड़ते हैं । वह कहता है । सब सो जाओ । तो सबको सोना पड़ता है । वह कहता है । आज घर के बाहर कोई नहीं जाएगा । सब यहीं बैठे रहो । तो सबको बैठना पड़ता है । तो तानाशाही प्रवृत्ति जितनी होगी । उतना आदमी बीमारी खोज रहा है । क्योंकि बीमार आदमी को कौन दुखी करे । अब वह जो कहता है । मान लो । जब ठीक हो जाएगा । तब ठीक है ।
लेकिन बड़ा खतरा है । हम इस तरह उसकी बीमारी को उकसावा दे रहे हैं । अच्छा है कि पत्नी जब स्वस्थ हो । तब पति पास बैठे । यह समझ में आता है । बीमार हो । तब तो कृपा करके दफ्तर चला जाए । क्योंकि उसकी बीमारी को उकसावा न दे । महंगा है यह । बच्चा जब बीमार पड़े । तो मां को उसकी बहुत फ़िक्र नहीं करनी चाहिए । नहीं तो बच्चा जिंदगी भर जब भी फ़िक्र चाहेगा । तभी बीमार पड़ेगा । जब बच्चा बीमार पड़े । तब उसकी फ़िक्र कम कर देनी चाहिए एकदम । ताकि बीमारी और प्रेम में संबंध न जुड़ पाए । एसोसिएशन न हो पाए । यानी बच्चे को ऐसा न लगे कि जब मैं बीमार होता हूं । तब मां को मेरे पैर दबाने पड़ते हैं । सिर दबाना पड़ता है । जब बच्चा खुश हो । प्रसन्न हो । तब उसके पैर दबाओ । सिर दबाओ । ताकि खुशी से प्रेम का संबंध जुड़े ।
हमने दुख से प्रेम का संबंध जोड़ा है । और यह बहुत खतरनाक है । तब उसका मतलब यह है कि जब भी प्रेम की कमी होगी । तब दुख बुलाओ । तो दुख आएगा । तो प्रेम भी पीछे से आएगा । इसलिए जिनको भी प्रेम कम हो जाएगा । वे बीमार हो जाएंगे । क्योंकि बीमारी से उनको फिर प्रेम मिलता है ।
लेकिन बीमारी से कभी प्रेम नहीं मिलता । ध्यान रहे । बीमारी से दया मिलती है । और दया बहुत अपमानजनक है । प्रेम बात और है । लेकिन वह हमारे खयाल में नहीं है । तो मैं आपसे यह कह रहा हूं कि शरीर तो हमारे सुझाव पकड़ लेता है । अगर हमें बीमार होना है । तो बेचारा शरीर बीमार हो जाता है । ऐसी बीमारियों को दूर करने के लिए हिप्नोसिस उपयोगी है । सम्मोहन उपयोगी है । उसका मतलब यह है कि झूठी बीमारी है । झूठी दवा से काम होगा । सच्ची दवा काम नहीं करेगी । तो अगर हमने मान लिया है कि हम बीमार हैं । तो अगर इससे विपरीत हम मानना शुरू कर दें कि हम बीमार नहीं हैं । तो बीमारी कट जाएगी । क्योंकि बीमारी हमारे मानने से पैदा हुई थी । इसलिए हिप्नोसिस बड़ी कीमती चीज है । और आज तो विकसित मुल्कों में ऐसा कोई बड़ा अस्पताल नहीं है । जहां एक हिप्नोटिस्ट न हो । जहां एक सम्मोहन करने वाला व्यक्ति न हो । अमेरिका के । या ब्रिटेन के । बड़े अस्पतालों में डाक्टरों के साथ एक हिप्नोटिस्ट भी रख दिया है । क्योंकि बीमारियां पचासों ऐसी हैं । जिनके लिए डाक्टर बिलकुल बेकार है । तो उनके लिए हिप्नोटिस्ट काम में आता है । वह उनको बेहोश करना सिखाता है कि तुम बेहोश हो जाओ । और यह भाव करो कि तुम ठीक हो रहे हो । तुम ठीक हो रहे हो । क्या आपको पता है कि दुनिया में 100 सांपों में सिर्फ 3% सांपों में जहर होता है । 97% सांपों में कोई जहर ही नहीं होता । लेकिन कोई भी सांप काटे । आदमी मर जाएगा । बिना जहर वाले सांप से भी आदमी मर जाता है ।
इसीलिए मंत्र तंत्र काम कर पाते हैं । मंत्र तंत्र । यानी झूठा इलाज । अब एक आदमी को ऐसे सांप ने काटा है । जिसमें जहर है ही नहीं । अब इसको सिर्फ इतना विश्वास दिलाना जरूरी है कि सांप उतर गया । बस काफी है । सांप उतर जाएगा । सांप चढ़ा ही नहीं है । और अगर इसको यह विश्वास न आए । तो यह आदमी मर सकता है । अगर इसको यह पक्का बना रहे कि सांप ने मुझे काटा है । तो यह मरेगा । सांप ने मुझे काटा है । इससे मरेगा । सांप के काटने से नहीं ।
मैंने सुना है । एक बार ऐसी घटना घटी कि एक आदमी एक सराय से गुजरा । और रात उस सराय में उसने खाना खाया । और सुबह चला गया । जल्दी उठकर चला गया । साल भर बाद वापस लौटा । उस रास्ते से । उसी सराय में ठहरा । तो सराय के मालिक ने कहा । आप सकुशल हैं ? हम तो बड़े डर गए थे । उसने कहा । क्या हो गया ? जिस रात आप यहां ठहरे थे । जो खाना बना था । उसमें एक सांप गिर गया था । तो चार आदमियों ने खाया । चारों मर गए । एक आप थे । जो आप जल्दी उठकर चले गए । आपके लिए हम बड़े चिंतित थे । मगर आप जिंदा हैं । उस आदमी ने कहा । सांप ? और वह आदमी वहीं गिर पड़ा । और मर गया ।  साल भर बाद । उसने कहा । सांप खा गया हूं । उसके हाथ पैर कंपे । वह वहीं गिर पड़ा । उस सराय के मालिक ने कहा - घबराइए मत । अब तो कोई सवाल ही नहीं । पर वह आदमी तो गया । तब तक जा चुका है ।
इस तरह की बीमारी के लिए हिप्नोसिस बहुत उपयोगी है । लेकिन हिप्नोसिस का मतलब ही इतना है कि जो हमने व्यर्थ ही, झूठा ही अपने चारों तरफ जोड़ लिया है । उसे हम दूसरे झूठ से काट सकते हैं । ध्यान रहे । अगर झूठा कांटा किसी के पैर में लगा हो । तो असली कांटे से कभी मत निकालना । झूठे कांटे को असली कांटे से निकालने में बड़ा खतरा होगा । एक तो झूठा कांटा न निकलेगा । और असली कांटा और पैर में छिद जाएगा । झूठे कांटे को झूठे कांटे से ही निकालना होता है ।
ध्यान में और हिप्नोसिस में क्या संबंध है ? इतना ही संबंध है कि जहां तक झूठे कांटे गड़े हैं । वहां तक हिप्नोसिस का उपयोग किया जाता है । जैसे कि मैं आपसे कहता हूं । यह भाव करें कि शरीर शिथिल हो रहा है । यह हिप्नोसिस है । यह सम्मोहन है । यह आत्म सम्मोहन है ।
असल में आपने ही यह भाव कर रखा है कि शरीर शिथिल नहीं हो सकता है । उसको काटने के लिए इसकी जरूरत है । और कोई जरूरत नहीं है । अगर आपको यह पागलपन न हो । तो आप एक ही दफे खयाल करें कि शरीर शिथिल हो गया । शरीर शिथिल हो जाएगा । शरीर को शिथिल करने के लिए यह काम नहीं हो रहा है । आपकी जो धारणाएं हैं कि शरीर शिथिल होता ही नहीं है । उसको काटने के लिए आपके मन में यह धारणा बनानी पड़ेगी कि शरीर शिथिल हो रहा है । शरीर शिथिल हो रहा है । शरीर शिथिल हो रहा है । आपकी झूठी धारणा को इस दूसरी झूठी धारणा से काट दिया जाएगा । और जब शरीर शिथिल हो जाएगा । तो आप जानेंगे कि हां शरीर शिथिल हो गया है । और शरीर का शिथिल होना बिलकुल स्वाभाविक धर्म है । लेकिन हम इतने तनाव से भर गए हैं । और तनाव हमने इतना पैदा कर लिया है कि अब उस तनाव को मिटाने के लिए भी हमें कुछ करना पड़ेगा ।
तो हिप्नोसिस का इतना उपयोग है । जो आप भाव करते हैं । शरीर शिथिल हो रहा है । श्वास शांत हो रही है । मन शांत हो रहा है । यह हिप्नोसिस है । लेकिन यहीं तक । इसके बाद ध्यान शुरू होता है । यहां तक ध्यान है ही नहीं । ध्यान इसके बाद शुरू होता है । जब आप जागते हैं । जब आप दृष्टा हो जाते हैं । जब आप देखने लगते हैं कि हां शरीर शिथिल पड़ा है । श्वास शांत चल रही है । विचार बंद हो गए हैं । या विचार चल रहे हैं । जब आप देखने लगते हैं । बस आप सिर्फ देखने लगते हैं । वह जो दृष्टा भाव है । वही ध्यान है । उसके पहले तो हिप्नोसिस ही है । और हिप्नोसिस का मतलब है । लाई गई निद्रा । और कोई मतलब नहीं है । नहीं आती थी । हमने लाई है । प्रयास किया है । उसे बुलाया है । आमंत्रित किया है । निद्रा आमंत्रित की जा सकती है । अगर हम तैयार हो जाएं । और अपने को छोड़ दें । तो वह आ जाती है ।
लेकिन ध्यान और हिप्नोसिस एक ही चीज नहीं हैं । मेरी बात समझ लेना खयाल से । मैंने कहा कि यहां तक हिप्नोसिस है । यहां तक सम्मोहन है । जहां तक सब भाव कर रहे हैं हम । जब भाव करना बंद किया । और जाग गए । अवेयरनेस जहां से शुरू हुई । वहां से ध्यान शुरू हुआ । जहां से दृष्टा । साक्षी भाव शुरू हुआ । वहां से ध्यान शुरू हुआ । और इस हिप्नोसिस की इसलिए जरूरत है कि आप उलटी हिप्नोसिस में चले गए हैं । यानी इसको अगर वैज्ञानिक भाषा में कहना पड़े । तो यह हिप्नोसिस न होकर डि हिप्नोसिस है । यह सम्मोहन न होकर । सम्मोहन तोड़ना है । सम्मोहित हम हैं । पर हमें पता नहीं है । क्योंकि जिंदगी में हम सम्मोहित हो गए हैं । हमें पता ही नहीं है । हमको खयाल ही नहीं है कि हमने कितने तरह के सम्मोहन कर लिए हैं । और हमने किस किस तरकीब से सम्मोहन को पैदा कर लिया है । ओशो ।

पूरे country में वह बच्‍चा अब कहां है

प्रधान लामा के चुनाव की विधि । तिब्‍बत में लामा जो है । पिछला लामा जो मरता है । वह बताकर जाता है । कि अगला मैं किस घर में जन्‍म लुंगा । और तुम मुझे कैसे पहचान सकोगे । उसके सिंबल ( प्रतीक ) दे जाता है । फिर उसकी खोज होती है । पूरे country में कि वह बच्‍चा अब कहां है । वह राज़ सिवाय उस आदमी के कोई बता नहीं सकता । जो बता गया था । तो यह जो लामा है । ऐसे ही खोजा गया । पिछला लामा कहकर गया था । इस बच्‍चे की खोज बहुत दिन करनी पड़ी । लेकिन आखिर वह बच्‍चा मिल गया । क्‍योंकि 1 खास सूत्र था । जो कि हर गांव में जाकर चिल्‍लाया जायेगा । और जो बच्‍चा । उसका अर्थ बता दे । वह समझ लिया जायेगा । कि वह पुराने लामा की आत्‍मा उसमें प्रवेश कर गयी । क्‍योंकि उसका अर्थ तो और किसी को पता ही नहीं था । वह ता बहुत secret  गुप्‍त  मामला है ।
तो चौथे शरीर के आदमी की पूरी क्‍यूरियोसिटि ( जिज्ञासा ) अगल थी । और अनंत है यह जगत । और अनंत है । उसके राज ।  और अनंत है । इसके रहस्‍य । अब ये जो लामा है । इन्‍होंने 5 में से 4 प्रश्न के उत्‍तर ठीक दीये है । अब 4 के उत्‍तर कोई इत्तफाक थोड़ ही हो सकता है । 5वें का उत्‍तर वे सही न दे सके । पर 5 उत्‍तर सही देने वाला । पूरे तिब्‍बत में कहीं नहीं मिला । अब तो वहां सब चीन  और यूरोप के लोगों ने जाकर खत्‍म कर दिया । वरना तो तिब्‍बत का आदमी तिब्बत से बाहर जन्‍म ले ही नहीं सकता था । हम ऐसा नहीं कर सकते । क्‍योंकि चेतना की गति तो प्रकाश की गति से भी तेज है । वह तो पल में कहां से कहा चली जाती है । अभी जितनी science को हमने जन्‍म दिया है । future में यही साइंस रहेगी । यह मत सोची । ये  और नयी हजार science पैदा हो जायेगी । क्‍योंकि और हजार आयाम है । जानने के । और जब वह नहीं साइंसेस पैदा होंगी । तब वे कहेगी कि पुराने लोग वैज्ञानिक न रहे । वह यह क्‍यों नहीं बता पाये । नहीं हम कहेंगे ।  पुराने लोग भी वैज्ञानिक थे । उनकी जिज्ञासा ओर थी । जिज्ञासा का इतना फर्क है । कि जिसका कोई हिसाब नहीं ।

miracle is nothing सिर्फ हाथ की तरकीब है

Miracle शब्‍द का हम प्रयोग करते है । तो साधु संतों का खयाल आता है । 1 जो ठीक ढंग से मदारी हैं । honest वे सड़क के चौराहों पर चमत्‍कार दिखाते है । दूसरे  ऐसे मदारी है । dishonest । बेईमान । वे साधु संतों के वेश में । वे ही चमत्‍कार दिखलाते है । जो चौरस्‍तों पर दिखाई जाते है । बेईमान मदारी siner है  । अपराधी है  । क्‍योंकि मदारीपन के अधार पर वह कुछ और मांग कर रहा है । अभी मैं कुछ वर्ष पहले 1 गाँव में था । 1 old man आया । मित्र लेकर आये थे । और कहा कि आपको कुछ काम दिखलाना चाहते है । मैंने कहा  । दिखायें । उस बढ़े ने अद्भुत काम दिखलाये । रूपये को मेरे सामने फेंका । वह 2 फिट ऊपर जाकर हवा में विलीन हो गया । मैंने उस बूढे आदमी से कहा । बड़ा miracle करते है आप । उसने कहा । no यह कोई miracle नहीं है । सिर्फ हाथ की तरकीब है । मैंने कहा । you are mad । सत्‍य साई बाबा हो सकते थे । क्‍या कर रहे हो । क्‍यों इतनी सच्‍ची बात बोलते हो ? इतनी ईमानदारी उचित नहीं है । लाखों लोग तुम्‍हारे दर्शन करते । तुम्‍हें मुझे दिखाने न आना होता । मैं ही तुम्‍हारे दर्शन करता ।
बह बूढ़ा आदमी हंसने लगा । कहने लगा । miracle  is nothing । सिर्फ हाथ की तरकीब है । उसने सामने ही ।  कोई मुझे मिठाई भेंट कर गया था  । 1 लडडू उठाकर । मुंह में डाला । चबाया । पानी पी लिया । फिर उसने कहा । कि नहीं । पसंद नहीं आया । फिर उसने पेट जोर से खींचा । पकड़कर लडडू को वापिस निकालकर सामने रख दिया । मैंने कहा  अब तो पक्‍का ही miracle है । उसने कहा कि नहीं । अब दुबारा आप कहिये । तो मैं न दिखा सकूंगा । क्‍योंकि लडडू छिपाकर आया । अरे वह लडडू पहले मैंने ही भेंट भिजवाये था । इसके पहले जो दे गया है । अपना ही आदमी है ।
मगर वह honest man है । 1 अच्‍छा आदमी है । यह मदारी समझा जायेगा । इसे कोई saint समझता । तो कोई बुरा न था । कम से कम सच्‍चा तो था । लेकिन मदारियों के दिमाग है । और वह कर रहे है । यही काम । कोई राख की पुड़िया निकाल रहा है । कोई ताबीज निकाल रहा है । कोई स्‍विस made घड़ियाँ निकाल रहा है । और छोटे साधारण नहीं । जिनको हम साधारण नहीं कहते है । गवर्नर । वाइस चाइन्‍सलर है  । high court के जजेस है । वह भी मदारियों के आगे हाथ जोड़े खड़े है । हमारे गर्वनर भी ग्रामीण से ऊपर नहीं उठ सके है । उनकी बुद्धि भी साधारण ग्रामीण आदमी से ज्‍यादा नहीं । फर्क इतना है कि ग्रामीण आदमी के पास certificate नहीं है । उसके पास सर्टिफिकेट है ।
चमत्‍कार । इस जगत में miracle जैसी चीज । सबमें होती नहीं । हो नहीं सकती । इस world में जो कुछ होता है । rule से होता है । हां । यह हो सकता है । नियम का हमें पता न हो । यह हो सकता है कि कार्य । कारण को हमें बोध न हो । यह हो सकता है । कि कोई link । कोई लिंक । कोई अज्ञात हो । जो हमारी पकड़ में नहीं आती । इसलिए बाद की कड़ियों को समझना बहुत मुश्‍किल हो जाता है ।
बाकू में । 1917 के पहले । जब रूस में क्रांति हुई थी । 1917 के पहले । बाकू में 1 मंदिर था । उस मंदिर के पास प्रतिवर्ष 1 मेला लगता था । वह दुनिया का सबसे बड़ा मेला था । कोई 2 करोड़ आदमी वहां इकट्ठा होते थे । और बहुत miracle की जगह थी वह । अपने आप fire उत्‍पन्‍न होती थी । वेदी पर अग्‍नि की लपटें प्रगट हो जाती थीं । लाखों लोग खड़े होकर देखते थे । कोई धोखा न था । कोई जीवन न था । कोई आग जलाता न था । कोई वेदी पास आता न था । वेदी पर अपने आप अग्‍नि प्रगट होती थी । चमत्‍कार भारी था । सैकड़ों वर्षो से पूजा होती थी । god प्रगट होते ।  अग्‍नि के रूप में । अपने आप ।
फिर 1917 में रक्‍त क्रांति हो गयी । जो लोग आये । वह विश्‍वासी न थे । उन्‍होंने मड़िया उखाड़कर फेंक दी । और गड्ढे खोदे । पता चला । वहां तेल के गहरे कुंए है । मिट्टी के तेल । मगर फिर भी यह बात तो साफ हो गयी कि मिट्टी के तेल के घर्षण से भी आग पैदा होती है । लेकिन खास दिन ही होती थी । जब तो खोजबीन करन पड़ी । तो पता चला कि जब पृथ्‍वी 1 विशेष angle पर होती है । अपने झुकाव के । तभी नीचे के तेल में घर्षण हो जाती है । इसलिए निश्‍चित दिन पर प्रतिवर्ष वह आग पैदा हो जाती थी । जब यह बात साफ़ हो गयी । तब वहां मेला लगना बंद हो गया । अब भी वहां आग पैदा होती है । लेकिन अब कोई इकट्टा नहीं होता है । क्‍योंकि कार्य कारण पता चल गया है । बात साफ़ हो गयी है । अग्‍नि देवता अब भी प्रकट होते है । लेकिन वह केरोसिन देवता होते है । अब वह अग्‍नि देवता नहीं रह गये । चमत्‍कार जैसी कोई चीज नहीं होती । चमत्‍कार का मतलब सिर्फ इतना ही होती है । कि कुछ है जो अज्ञात है । कुछ है जो छिपा है । कोई कड़ी साफ़ नहीं है । वह हो रहा है ।
1 stone होता है । अफ्रीका में । जो पानी को भाप को पी जाता है । पारस होता है । थोड़े से उसमें छेद होते है । वह भाप को पी लेते है । तो वर्षा में वह भाप को पी जाता है । लेकिन वह स्‍पंजी है । उसकी मूर्ति बन जाती है । वह मूर्ति जब गर्मी पड़ती है । जैसे सूरज से अभी पड़ रही है । उसमें से पसीना आने लगता है । उस तरह के पत्‍थर और भी दुनियां में पाये जाते है । पंजाब में 1 मूर्ति है । वह उसी पत्‍थर की बनी हुई है । जब गर्मी होती है । तो भक्‍तगण पंखा झलते है । उस मूर्ति को की god को पसीना आ रहा है । और बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है । क्‍योंकि बड़ा miracle है । पत्‍थर की मूर्ति को पसीना आये ।
तो जब मैं उस village में ठहरा था । तो 1 सज्‍जन ने मुझे आकर कहा कि आप मजाक उड़ाते है । आप सामने देख लीजिए चलकर । god को पसीना आता है । और आप मजाक उड़ाते है । आप कहते है । भगवान को सुबह सुबह दातुन न क्‍यों रखते हो । पागल हो गये हो । पत्‍थर को दातुन रखते हो । कहते हो । भगवान सोयेंगे । अब भोजन करेंगे । जब उनको पसीना आ रहा है । तो बाकी सब चीजें भी ठीक हो सकती है । वह ठीक कह रहा है । उसे कुछ पता नहीं है । उसमें से पसीना निकलता है । जिस ढंग से आपमें पसीना बह रहा है । उसी ढंग से उसमें भी बहने लगता है । आप में भी पसीना कोई चमत्‍कार नहीं है । आपका शरीर पारस है । तो वह पानी पी जाता है । और जब गर्मी होती है । तो शरीर की अपनी एअरकंडीसिनिंग की व्‍यवस्‍था है । वह पानी को छोड़ देता है । ताकि भाप बनकर उड़े । और शरीर को ज्‍यादा गर्मी न लगे । वह पत्‍थर भी पानी पी गया है । लेकिन जब तक हमें पता नहीं है । तब तक बड़ा मुश्‍किल होता है । फिर इस संबंध में जिस वजह से उन्‍होंने पूछा होगा । वह मेरे ख्‍याल में है । 2 बातें और समझ लेनी चाहिए ।
1 तो यह कि चमत्‍कार saint तो कभी नहीं करेगा । नहीं करेगा । क्‍योंकि कोई saint आपके अज्ञान को न बढ़ाना चाहेगा । और कोई संत आपके अज्ञान का शोषण नहीं करना चाहेगा । संत आपके अज्ञान को तोड़ना चाहता है । बढ़ाना नहीं चाहता है । और चमत्‍कार दिखाने से होगा क्‍या ? और बड़े मजे की बात है । क्‍योंकि पूछते है । कि जो लोग राख से पुड़िया निकालते है । आकाश से ताबीज गिराते है । काहे को मेहनत कर रहे हैं  । राख की पुड़िया से किसका पेट भरेगा । ऐटमिक भट्ठियाँ आकाश से उतारों । कुछ काम होगा । जमीन पर उतारों । गेहूँ उतारों । गेहूँ के लिए america के हाथ जोड़ो । और असली चमत्‍कार हमारे यहां हो रहे है । तो गेहूँ क्‍यों नहीं उतार लेते हो । राख की पुड़िया से क्‍या होगा । गेहूँ बरसाओ ।
जब चमत्‍कार ही कर रहे हो । तो कुछ ऐसा miracle करो कि country को कुछ हित हो सके । सबके ज्‍यादा गरीब मुल्‍क । जमीन पर उतारों गेहूँ । उतारों घन । gold । चांदी । होने दो हीरे मोतियों कि बारिश । मिट्टी से बनाओ सोना । चमत्‍कार ही करने है । तो कुछ ऐसे करो । स्‍विस मेड घडी चमत्‍कार से निकालते हो । तो क्‍या फायदा होगा । कम से कम made in india भी निकालो । तो क्‍या होने वाला है । मदारी गिरी से होगा क्‍या ? कभी हम सोचे कि हम इस पागलपन में किस भ्रांति में भटकते है । पिछले 2 ढाई हजार वर्षो से  इन्‍हीं पागलों के चक्‍कर में लगे हुए है । और हम कैसे लोग है । कि हम यह नहीं पूछते । कि माना कि आपने राख की पुड़िया निकाल ली । अब क्‍या मतलब है । होना क्‍या है ? चमत्‍कार किया । बिलकुल चमत्‍कार किया । लेकिन राख की पुड़िया से होना क्‍या है ? कुछ और निकालो । कुछ काम की बात निकाल लो । वह कुछ नहीं । नहीं वह मुल्‍क दीन क्‍यों है । यहां तो 1 चमत्‍कारी संत पैदा हो जाये । तो सब ठीक हो जाए ।
अब तिब्‍बत में 1 किताब है । तिब्‍बतन बुक ऑफ दि डैड । तो अब तिब्‍बत का जो भी चौथा शरीर को उपलब्ध आदमी था । उसने सारी मेहनत इस बात पर की । कि मरने के बाद हम किसी को क्‍या सहायता दे सकते हे । आप मर गये हे । मैं आपको प्रेम करता हूं । लेकिन मरने के बाद मैं आपको कोई सहायता नहीं पहुंचा सकता हूं । लेकिन तिब्‍बत में पूरी व्‍यवस्‍था है । 7 week की । कि मरने के बाद 7 सप्‍ताह तक । उस आदमी को कैसे सहायता पहुंचायी जाये । और उसके कैसे guide मार्गदर्शन किया जाये । और उसको कैसे विशेष जन्‍म के लिए । उत्‍प्रेरित किया जाये । और उसे कैसे विशेष गर्भ में प्रवेश में सहयोग किया जाये । और किसी विशेष गर्भ में उसे पहुंचाया जाए ।  अभी science को वक्‍त लगेगा । कि वह इन सब बातों का पता लगाये । लेकिन यह लग जायेगा पता  । उसमें अड़चन नहीं है । और फिर इसकी वैलिडिटी ( प्रामाणिकता की जांच ) के भी सब उन्‍होंने उपाय खोजे  थे । कि इसकी जांच कैसे हो ।

वहां भी एक पहुँचे हुये महात्‍मा की कब्र है

एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया । और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया । बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था । गधे के साथ । अब उसे पैदल यात्रा न करनी पड़ती थी । सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था । और गधा बड़ा स्‍वामी भक्‍त था । लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा । और मर गया । दुख में उसने उसकी कब्र बनायी । और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा ।
उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है । तो वह भी झुका कब्र के पास । इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे । उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये । बंजारे को हंसी भी आई आयी । लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुम न पडा । और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है ।
फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता । यही उसका धंधा हो गया । लोग आते । गांव गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी । और गधे की कब्र किसी पहूंचे हुए फकीर की समाधि बन गयी । ऐसे वर्ष बीते । वह बंजारा बहुत धनी हो गया । फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था । वह भी यात्रा पर था । और उस गांव के करीब से गुजरा । उसे भी लोगों ने कहा - एक महान आत्‍मा की कब्र है । यहां दर्शन किये बिना मत चले जाना । वह गया । देखा उसने इस बंजारे को बैठा ।
तो उसने कहा - किसकी कब्र है यहाँ ? और तू यहां बैठा क्‍यों रो रहा है ?
उस बंजारे ने कहा - अब आपसे क्‍या छिपाना । जो गधा आपने दिया था । उसी की कब्र है । जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया । और मर कर और ज्‍यादा साथ दे रहा है ।
सुनते ही फकीर खिलखिला कर हंसाने लगा ।
उस बंजारे ने पूछा - आप हंसे क्‍यों ?
फकीर ने कहा - तुम्‍हें पता है । जिस गांव में मैं रहता हूं । वहां भी एक पहुँचे हुये महात्‍मा की कब्र है । उसी से तो मेरा काम चलता है ।
बंजारे ने पूछा - वह किस महात्‍मा की कब्र है ? तुम्‍हें मालूम है ।
उसने कहा - मुझे कैसे । नहीं । पर क्‍या आपको मालूम है ? नहीं मालूम हो सकता । वह इसी गधे की मां की कब्र है ।
धर्म के नाम पर अंधविश्‍वासों का बड़ा विस्‍तार है । धर्म के नाम पर थोथे । व्‍यर्थ के क्रियाकांड़ो । यज्ञों । हवनों का बड़ा विस्‍तार है । फिर जो चल पड़ी बात । उसे हटाना मुश्‍किल हो जाता है । जो बात लोगों के मन में बैठ गयी । उसे मिटाना मुश्‍किल हो जाता है । और इसे बिना मिटाये वास्‍तविक धर्म का जन्‍म नहीं हो सकता । अंधविश्‍वास उसे जलने ही न देगा ।
सभी बुद्धिमान व्‍यक्‍तियों के सामने यही सवाल थे । और दो ही विकल्‍प है । एक विकल्‍प है नास्‍तिकता का, जो अंधविश्‍वास को इनकार कर देता है । और अंधविश्‍वास के साथ साथ धर्म को भी इंकार कर देता है । क्‍योंकि नास्‍तिकता देखती है । इस धर्म के ही कारण तो अंधविश्‍वास खड़े होते है । तो वह कूड़े कर्कट को तो फेंक ही देती है । साथ में उस सोने को भी फेंक देती है । क्‍योंकि इसी सोने की बजह से तो कूड़ा कर्कट इकठ्ठा होता हे । न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी । ओशो ।

ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है

गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है । गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है । गंगा को हम भारत से हटा लें । तो भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । सब बचा रहे । गंगा हट जाए । भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । गंगा को हटा ले । तो भारत का साहित्य अधूरा पड़ जाए । गंगा को हम हटा ले । तो हमारे तीर्थ ही खो जाए । हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए ।
गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड़ है । बड़े गहरे से जुडे है । गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है । मुल्क की भी अगर कोई आत्मा होती हो । और उसके प्रतीक होते हो । तो गंगा ही हमारा प्रतीक है । पर क्या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों हजारों वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है - नदियों में मैं गंगा हूं ।
गंगा कोई नदियों में विशेष विशाल उस अर्थ में नहीं है । गंगा से बड़ी नदिया है । गंगा से लंबी नदिया है । गंगा से विशाल नदिया पृथ्वी पर है । गंगा कोई लंबाई में । विशालता में । चौड़ाई में । किसी दृष्टि से बहुत बड़ी गंगा नहीं है । कोई बहुत बड़ी नदी नहीं है । बृह्मपुत्र है । और अमेजान है । और ह्व्गांहो है । और सैकड़ों नदिया है । जिसके सामने गंगा फीकी पड़ जाए ।
पर गंगा के पास कुछ और है । जो पृथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है । और उस कुछ के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ तालमेल बना लिया है । एक तो बहुत मजे की बात है कि पूरी पृथ्वीं पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है - अलाइव । सारी नदियों का पानी आप बोतल में भर कर रख दें । सभी नदियों का पानी सड़ जाएगा । गंगा का नहीं सड़ेगा । केमिकली गंगा बहुत विशिष्ट है । उसका पानी डिटरिओरेट नहीं होता । सड़ता नहीं । वर्षों रखा रहे । बंद बोतल में भी । वह अपनी पवित्रता । अपनी स्वच्छता कायम रखता है ।
ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है । सभी नदियों के पानी इस अर्थों में कमजोर है । गंगा का पानी इस अर्थ में विशेष मालूम पड़ता है । उसका विशेष केमिकल गुण मालूम पड़ता है ।
गंगा में इतनी लाशें हम फेंकते है । गंगा में हमने हजारों हजारों वर्षों से लाशें बहाई है । अकेले गंगा के पानी में । सब कुछ लीन हो जाता है । हड्डी भी । दुनिया की किसी नदी में वैसी क्षमता नहीं है । हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है । और बह जाती है । और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती । गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है । हड्डी को भी । कोई भी दूसरे पानी में लाश को हम डालेंगे । पानी सड़ेगा । पानी कमजोर और लाश मजबूत पड़ती है । गंगा में लाश को हम डालते है । लाश ही बिखर जाती है । मिल जाती है । अपने तत्वों में । गंगा अछूती बहती रहती है । उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
गंगा के पानी की बड़ी केमिकल परीक्षाएं हुई है । और अब तो यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि उसका पानी असाधारण है ।
यह क्यों है असाधारण ? यह भी थोड़ी हैरानी की बात है । क्योंकि जहां से गंगा निकलती है । वहां से बहुत नदियों निकलती हैं । गंगा जिन पहाड़ों से गुजरती है । वहां से कई नदियों गुजरती हैं । तो गंगा में जो खनिज और जो तत्व मिलते हैं । वे और नदियों में भी मिलते हैं । फिर गंगा में कोई गंगा का ही पानी तो नहीं होता । गंगोत्री से तो बहुत छोटी सी धारा निकलती है । फिर और तो सब दूसरी नदियों का पानी ही गंगा में आता है । विराट धारा तो दूसरी नदियों के पानी की ही होती है ।
लेकिन यह बड़े मजे की बात है कि जो नदी गंगा में नहीं मिली । उस वक्त उसके पानी का गुण धर्म और होता है । और गंगा में मिल जाने के बाद उसी पानी का गुण धर्म और हो जाता है । क्या होगा कारण ? केमिकली तो कुछ पता नहीं चल पाता । वैज्ञानिक रूप से इतना तो पता चलाता है कि विशेषता है । और उसके पानी में खनिज और कैमिकल्स का भेद है । विज्ञान इतना कहा सकता है । लेकिन एक और भेद है । वह भेद विज्ञान के ख्याल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा । और वह भेद है । गंगा के पास लाखों लाखों लोगों का जीवन की परम अवस्था को पाना ।
यह मैं आपसे कहना चाहूंगा कि पानी जब भी कोई व्यक्ति । अपवित्र व्यक्ति । पानी के पास बैठता है । अंदर जाने की तो बात अलग । पानी के पास भी बैठता है । तो पानी प्रभावित होता है । और पानी उस व्यक्ति की तरंगों से आच्छादित हो जाता है । और पानी उस व्यक्ति की तरंगों को अपने में ले लेता है ।
इसलिए दुनिया के बहुत से धर्मों ने पानी का उपयोग किया है । ईसाइयत ने बप्तिसस्मा । बेप्टिज्मग के लिए पानी का उपयोग किया है ।
जीसस को जिस व्यक्ति ने बप्तिस्माय दिया । जान दि बैपटिस्ट ने । उस आदमी का नाम ही पड़ गया था । जान बप्तिस्मा वाला । वह जॉर्डन नदी में । और जॉर्डन यहूदियों के लिए वैसी ही नदी रही । जैसी हिंदुओं के लिए गंगा । वह जॉर्डन नदी में गले तक आदमी को डूबा देता । खुद भी पानी में डुबकर खड़ा हो जाता । फिर उसके सिर पर हाथ रखता । और प्रभु से प्रार्थना करता । उसके इनीशिएशन की । उसकी दीक्षा की ।
पानी में क्यों खड़ा होता था - जान ? और पानी में दूसरे व्यक्ति को खड़ा करके । क्या कुछ एक व्यंक्ति की तरंगें । और एक व्यक्ति के प्रभाव । एक व्यक्ति की आंतरिक दशा का आंदोलन दूसरे तक पहुंचना आसान है ।
पानी बहुत शीघ्रता से चार्ड्र हो जाता है । पानी बहुत शीघ्रता से व्यक्ति से अनुप्राणित हो जाता है । पानी पर छाप बन जाती है ।
लाखों लाखों वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने की चेष्टा करते रहे है । और जब भी कोई एक व्यक्ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है । तो गंगा उस उपलब्धि से वंचित नहीं रही है । गंगा भी आच्छादित हो जाती है । गंगा का किनारा । गंगा की रेत के कण कण । गंगा का पानी । सब  इन लाखों वर्षों से एक विशेष रूप से स्प्रिचुअली चार्ज्ड । आध्यात्मिक रूप से तरंगायित हो गया है ।
इसलिए हमने गंगा के किनारे तीर्थ बनाए ।
गंगा साधारण नदी नहीं है । एक अध्यात्मिक यात्रा है । और एक अध्यात्मिक प्रयोग । लाखों वर्षों तक लाखों लोगों को उसके निकट मुक्ति को पाना । परमात्मा‍ के दर्शन को उपलब्ध होना । आत्म साक्षात्कार को पाना । लाखों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को उपलब्ध होना । वे सारे लोग अपनी जीवन ऊर्जा को गंगा के पानी पर उसके किनारों पर छोड़ गए है । ओशो ।
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