बुधवार, अप्रैल 21, 2010

मेरी नजर में मोती आया..

मेरी नजर में मोती आया..
कोई कहे हल्का कोई कहे भारी सब जग भरम भुलाया .
सिंहल चतुर्वत अष्ट द्वादश सहस कमल बिच काया
ताके ऊपर आप विराजे अदभुत रूप धराया..
है तिल में झिलमिल तिल भीतर तेहि तिल बीच छिपाया.
तिल की आङ पहाङ सी भासे परमपुरुष की छाया..
पुरुष अनामी सबका स्वामी रचि निज पिंड समाया.
ताकी नकल देख माया ने ये ब्रह्माण्ड बनाया..
बीज माँहि अंकुर तरु शाखा पत्र फ़ूल फ़ल छाया .
त्यों आतम में है परमातम ब्रह्म जीव और माया..
ये स्वयं अनुभूत भाव रचना करनपुर धाम ( जिला मैंनपुरी ) के संत स्व. श्री स्वयं आनन्द वेवाह द्वारा रचित है .उनके उन्नतोमुखी शिष्य विभु आनन्द वेवाह जो डिग्री कालेज में राजनीति विग्यान के प्रवक्ता है और गुरु की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार कर रहें हैं .विभु आनन्द अपने गुरु द्वारा प्रदत्त की गयी एक कला जिसमें किसी भी इंसान को अपनी ही आक्रति आसमान जितनी ऊँची दिखाई देती है दिखाते हैं और आप उसको किस तरह दूसरों को दिखा सकते हैं इसका तरीका भी बताते हैं जिन महानुभावों को इस ग्यानमें दिलचस्पी हो वो उनके मोबा. 9307489262 पर सम्पर्क कर सकते हैं

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