सोमवार, अगस्त 16, 2010

गंगा अवतरण ।




हिमालय और उसकी पत्नी सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना की अत्यंत सुन्दर रूपवती और बेहद गु्णवान दो कन्याएँ थीं । । जिनमें बड़ी का नाम गंगा तथा छोटी का उमा था । गंगा अत्यन्त सुन्दर और असाधारण गुणों की मालकिन थी । वह उन्मुक्त रहकर मनमाने मार्ग पर चलती थी । उसकी इसी बात से प्रभावित होकर देवता उसे हिमालय से माँग कर ले गये । दूसरी कन्या उमा तपस्विनी थी । उसने कठोर तपस्या कर शिव को वर के रूप में प्राप्त किया । देवलोक में विचरती हुई गंगा की एक दिन उमा से भेंट हुई । गंगा ने उमा से कहा । मुझे देवलोक में रहते हुये बहुत दिन हो गये । मेरी इच्छा है कि मैं अब पृथ्वी पर विचरण करूँ । उमा ने उससे कहा । कि वह इसके लिये कोई उपाय करने की कोशिश करेंगी । उन्हीं दिनों अयोध्यापुरी में सगर नाम के एक राजा थे । उनके कोई संतान नहीं थी । सगर की रानी का नाम केशिनी था । जो विदर्भ के राजा की पुत्री थी । केशिनी बेहद सुन्दर और धर्मात्मा थी । सगर की दूसरी रानी का नाम सुमति था । वह राजा अरिष्टनेमि की पुत्री थी । सगर अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय के भृगुप्रस्रवण नामक प्रान्त में गए । और पुत्र प्राप्ति के लिये तप करने लगे । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उन्हें वर दिया । कि तुम्हें अनेक पुत्रों की प्राप्ति होगी । दोनों रानियों में एक को केवल एक पुत्र होगा । जो वंश को बढ़ायेगा । और दूसरी के साठ हजार पुत्र होंगे । कौन सी रानी कितने पुत्र चाहती है । इसका निर्णय वह स्वयं करे । केशिनी ने वंश को बढ़ाने वाले एक पुत्र की कामना की । और गरुड़ की बहिन सुमति ने साठ हजार बलवान पुत्रों की इच्छा की । कुछ समय के बाद केशिनी ने असमञ्ज नामक पुत्र को जन्म दिया । और सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला । जिसे फ़ाड़ने पर छोटे छोटे साठ हजार पुत्र निकले । उन सबका पालन घी के घड़ों में रखकर किया गया । समय बीतने के साथ सभी राजकुमार युवा हो गये । सगर का बडा पुत्र असमञ्ज अति दुराचारी स्वभाव का था । उसे नगर के बालकों को सरयू नदी में फेंककर उन्हें डूबते हुये देखने में बड़ा आनन्द आता था । असमञ्ज की आदतों से दुखी होकर सगर ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया । असमञ्ज के अंशुमान नाम का एक पुत्र था । पिता के स्वभाव के विपरीत अंशुमान सदाचारी और पराक्रमी था । एक दिन सगर के मन में अश्वमेघ यज्ञ करने का विचार आया । तब सगर ने हिमालय एवं विन्ध्याचल के बीच उत्तम भूमि का चयन कर एक विशाल यज्ञ मण्डप का निर्माण कराया । और अश्वमेघ यज्ञ के लिये घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा के लिये अंशुमान को सेना के साथ भेज दिया । यज्ञ की सफलता से भयभीत होकर इन्द्र ने राक्षस का रूप धारणकर घोड़े को चुरा लिया । घोड़े की चोरी की सूचना पाकर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को आज्ञा दी । कि घोड़ा चुराने वाले को पकड़कर या मारकर घोड़ा वापस लाओ । लेकिन जब हर तरफ़ खोजने पर भी घोड़ा नहीं मिला तो । तो यह सोचकर कि किसी ने घोडा चुराकर तहखाने में न छुपा दिया हो । उन्होंने पृथ्वी को खोदना आरम्भ कर दिया । इस कार्य से लाखों भूमिगत प्राणी मारे गये । लेकिन इसकी चिंता न कर खोदते खोदते वे पाताल तक पहुँच गये । तब देवताओं ने ब्रह्मा से चिंता प्रकट की । ब्रह्मा ने कहा । ये राजकुमार क्रोध में अन्धे होकर ऐसा कार्य कर रहे हैं । लेकिन पृथ्वी की रक्षा की जिम्मेदारी कपिल ऋषि पर है । इसलिये वे इस विषय में अवश्य कुछ करेंगे । उधर पूरी पृथ्वी को खोदने के बाद भी जब घोड़ा और उसको चुराने वाला नहीं मिला । तो निराश होकर राजकुमारों ने इसकी सूचना अपने पिता को दी । क्रोधित होकर सगर ने आदेश दिया । कि घोड़े को पाताल में जाकर ढूंढो । पाताल में घोड़े को खोजते खोजते वे कपिल के आश्रम में पहुँच गये । और देखा कपिल तपस्या में लीन हैं । और उन्हीं के पास यज्ञ का घोड़ा बँधा है । उन्होंने कपिल को घोड़े का चोर समझकर उनके लिये अनेक दुर्वचन कहे । और उन्हें मारने दौड़े । कपिल की समाधि भंग हो गई । उन्होंने क्रुद्ध होकर सगर के सब पुत्रों को वहीं भस्म कर दिया । बहुत दिनों तक अपने पुत्रों की सूचना न मिलने पर सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिये भेजा । अंशुमान अपने चाचाओं के द्वारा बनाए मार्ग से पाताल की ओर चल पड़ा । और रास्ते में मिलने वाले ऋषि मुनियों से पूछता हुआ उस स्थान तक पहुँच गया । जहाँ पर उसके चाचाओं के भस्म शरीरों की राख पड़ी थी । और पास ही वह घोड़ा चर रहा था । अपने चाचाओं के भस्म शरीर देखकर उसे अत्यन्त दुख हुआ । उसने उनका तर्पण करने के लिये सरोवर की खोज की । किन्तु उसे कोई भी जलाशय दिखाई नहीं दिया । तभी उसकी दृष्टि अपने चाचाओं के मामा गरुड़ पर पड़ी । उन्हें प्रणाम करके अंशुमान ने पूछा । पितामह । मैं अपने चाचाओं का तर्पण करना चाहता हूँ । यदि कोई सरोवर हो तो उसका पता बताइये । यदि आपको इनकी मृत्यु के विषय में कोई जानकारी हो । तो वह भी बताने की कृपा करें । गरुड़ ने बताया । किस प्रकार इन्द्र ने घोडा चुरा कर कपिल मुनि के पास छोड़ दिया । और उसके चाचाओं ने कपिल के साथ दुर्व्यवहार किया । जिसके कारण कपिल मुनि ने उनको भस्म कर दिया । इसके पश्चात् गरुड ने कहा । कि ये सब अलौकिक शक्ति पुरुष द्वारा भस्म किये गये हैं । अतः साधारण जल से तर्पण करने से इनका उद्धार नहीं होगा । केवल हिमालय पुत्री गंगा के जल से ही तर्पण करने पर इनका उद्धार सम्भव है । अब तुम घोडा लेकर वापस जाओ । जिससे कि तुम्हारे पितामह का यज्ञ पूर्ण हो सके । गरुड़ के कहे अनुसार अंशुमान अयोध्या पहुँचे । और अपने पितामह को सारा वृत्तान्त सुनाया । सगर ने दुखी मन से यज्ञ पूरा किया । वे अपने पुत्रों के उद्धार के लिये गंगा को पृथ्वी पर लाना चाहते थे । पर ऐसा करने के लिये उन्हें कोई भी युक्ति न सूझी । सगर के देहान्त के पश्चात अंशुमान शासन करने लगा । अंशुमान के परम प्रतापी पुत्र दिलीप हुये । दिलीप के वयस्क हो जाने पर अंशुमान दिलीप को राज्यभार सौंप कर हिमालय की कन्दराओं में जाकर गंगा अवतरण के लिये तप करने लगे । किन्तु उन्हें सफलता नहीं प्राप्त नहीं हुई । और वे स्वर्ग सिधार गए । इधर जब राजा दिलीप का पुत्र भगीरथ बड़ा हुआ । तो उसे राज्यभार सौंपकर दिलीप भी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये तप करने चले गये । पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली । भगीरथ प्रजावत्सल राजा थे । किन्तु उनके भी कोई सन्तान नहीं हुई । वे अपने राज्यभार मन्त्रियों को देकर स्वयं गंगा अवतार के लिये गोकर्ण नामक तीर्थ पर जाकर कठोर तपस्या करने लगे । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वर माँगने के लिये कहा । भगीरथ ने ब्रह्मा से कहा । हे प्रभो । यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं । तो यह वर दीजिये । कि सगर के पुत्रों को गंगा का जल प्राप्त हो । जिससे उनका उद्धार हो सके । इसके अतिरिक्त मुझे सन्तान प्राप्ति का भी वर दीजिये । ताकि इक्ष्वाकु वंश नष्ट न हो । ब्रह्मा ने कहा । सन्तान का तेरा मनोरथ तो शीघ्र पूरा होगा । किन्तु प्रथम वरदान देने में कठिनाई यह है । कि जब गंगा वेग के साथ पृथ्वी पर आयेगी । तो उनका वेग कौन संभालेगा । गंगा के वेग को संभालने की क्षमता शिव के अतिरिक्त किसी में नहीं है । इसके लिये तुम्हें शिव को प्रसन्न करना होगा । इतना कहकर ब्रह्मा चले गये । भगीरथ ने साहस नहीं छोड़ा । वे एक वर्ष तक पैर के अँगूठे के सहारे खड़े होकर शिव की तपस्या करते रहे । वायु के अतिरिक्त उन्होंने किसी वस्तु का सेवन नहीं किया । भगीरथ की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने भगीरथ को दर्शन देकर कहा । हे भक्त । हम गंगा को अपने मस्तक पर धारण करेंगे । यह सूचना पाकर गंगा को देवलोक का त्यागना पड़ा । उस समय गंगा देवलोक से जाना नहीं चाहती थी । इसलिये यह सोच कर कि मैं अपने प्रचण्ड वेग से शिव को बहाकर पाताल ले जाऊँगी । गंगा भयानक वेग से शिव के सिर पर अवतरित हुईं । गंगा का यह अहंकार शिव को अच्छा न लगा । उन्होंने गंगा की वेगयुक्त धाराओं को अपने जटाजूट में बांध लिया । गंगा समस्त प्रयत्न के बाद भी शंकर की जटाओं से बाहर न निकल सकी । गंगा को इस प्रकार शिव की जटाओं में विलीन होते देख भगीरथ ने फिर शंकर जी की तपस्या की । भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर ने गंगा को हिमालय पर स्थित बिन्दुसर में छोड़ दिया । छूटते ही गंगा सात धाराओं में बँट गईं । गंगा की तीन धाराएँ । ह्लादिनी । पावनी और नलिनी पूर्व की ओर प्रवाहित हुयीं । सुचक्षु । सीता और सिन्धु नाम की तीन धाराएँ पश्चिम की ओर बहने लगी । और सातवीं धारा भगीरथ के पीछे पीछे चली । जिधर भगीरथ जाते थे । उधर गंगा जाती थी । अनेक लोग उनका स्वागत कर रहे थे । जो भी उस जल का स्पर्श करता । भव बाधाओं से मुक्त हो जाता । चलते चलते गंगा उस स्थान पर पहुँची । जहाँ ऋषि जह्नु यज्ञ कर रहे थे । गंगा अपने वेग से उनकी यज्ञ सामग्री को बहाकर ले जाने लगी । इससे ऋषि को क्रोध आ गया । और उन्होंने गंगा का सारा जल पी लिया । यह देखकर सबको बड़ा विस्मय हुआ । और वे गंगा को मुक्त करने के लिये उनसे प्रार्थना करने लगे । तब जह्नु ऋषि ने गंगा को अपने कानों से निकाल दिया । और गंगा को पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया । तब से गंगा का एक नाम जाह्नवी हो गया । इस तरह गंगा भगीरथ के पीछे चलते चलते समुद्र तक पहुँच गई । और वहाँ से सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिये रसातल में चली गई । उनके जल के स्पर्श से भस्म हुये सगर के पुत्र उद्धार होकर स्वर्ग गये । उस दिन से गंगा के तीन नाम हुये । त्रिपथगा । जाह्नवी । भागीरथी । कपिल आश्रम में गंगा के पहुँचने पर ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर भगीरथ को वरदान दिया । कि तेरे पुण्य प्रताप से प्राप्त इस गंगा में जो मनुष्य स्नान करेगा । वह सब प्रकार के दुखों से मुक्त होकर अन्त में स्वर्ग जायेगा । जब तक पृथ्वी पर गंगा प्रवाहित रहेगी । उसका एक नाम भागीरथी होगा और सम्पूर्ण प्रथ्वीलोक में तेरा यशगान होगा ।

1 टिप्पणी:

Shah Nawaz ने कहा…

महत्वपूर्ण जानकारियों से भरे हुए लेख के लिए धन्यवाद!

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