रानी के साथ चुपके से सम्भोग करने वाला दंष्ट्री होता है । गुरु पत्नी से सम्भोग करने वाला गिरगिट होता है । इस प्रकार दूसरे का थोडा या बहुत किसी भी प्रकार जो कुछ भी मनुष्य बुरा व्यवहार करता है । वह उस पाप से निश्चय ही तिर्यक योनि ( कीट पतंगा आदि ) में जाता है । ये पूर्व जन्म के कुछ चिह्न तो होते ही हैं । इसके अतिरिक्त भी बहुत से चिह्न होते है । जो अपने अपने कर्म के अनुसार प्राणी के शरीर में उपस्थित होते हैं । ऐसा पापी अनेको दुख भोग कर के । नरक भोग कर के । बचे कर्म फ़ल के अनुसार इन योनियों में जन्म लेता है । उसके बाद फ़िर से मृत्यु हो जाने पर जब तक उसके शुभ और अशुभ कर्म समाप्त नहीं हो जाते । तब तक सभी योनियों में उसका बार बार जन्म मृत्यु होती ही रहती है । इसमें कोई संशय नहीं है । जब आदमी और औरत के सम्भोग से गर्भ में शुक्र और रज स्थापित हो जाता है । तब पंच भूतों से समन्वित होकर यह पंचभौतिक शरीर जन्म लेता है । इसके बाद उसमें इन्द्रियां मन प्राण ग्यान आयु सुख धैर्य धारणा प्रेरणा दुख मिथ्या अहंकार यत्न आकृति रंग राग द्वेष और उत्पत्ति विनाश ये सब उस अनादि आत्मा को सादि मानकर पंचभौतिक शरीर के साथ उत्पन्न होते हैं । उस समय वह शरीर पूर्व कर्मों से घिरा हुआ गर्भ में बडता है । चार प्रकार की चौरासी लाख योनियों में जीवों का इस प्रकार के परिवर्तन का चक्र निरन्तर घूमता ही रहता है । उसी चक्र में शरीर धारियों की उत्पत्ति और विनाश होता है । अपने
धर्म का पालन करने से प्राणियों को उच्च गति और अधर्म करने से नीच गति प्राप्त होती है । देव और मानव योनि में जो दान और भोग आदि की क्रियाएं दिखाई देती हैं । वे सब कर्मों के फ़ल हैं । घोर अकर्म तथा काम क्रोध से अर्जित अशुभ पापाचार से नरक प्राप्त होता है । तथा वहां से जीव का उद्धार नहीं होता । क्या इसमें कोई संशय है ? अर्थात इसमें कोई संशय नहीं है । भारत वर्ष में मानव योनि तेरह जातियों में विभक्त है । यदि उसको प्राप्त करके मनुष्य अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक उत्सर्ग करता है तो उसका पुनर्जन्म नहीं होता । राग द्वेष रूपी मल को दूर कर देने वाले । ग्यान रूपी जलाशय में । सत्य रूपी जल से युक्त । जिसने मानस तीर्थ में स्नान कर लिया । वह फ़िर कभी पापों से संलिप्त नहीं होता । देवता भगवान कभी पत्थर और काष्ठ की मूर्ति में नहीं रहते । वे तो प्राणी के भाव में रहते हैं । इसलिये सद भाव से युक्त भक्ति का ही आचरण करना चाहिये । मछुआरे प्रतिदिन सुबह ही नर्मदा सरयू गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों का दर्शन करते हैं । स्नान भी करते हैं । किन्तु क्या उन्हें शिवलोक प्राप्त हो सकता है क्या उनकी आगे की सदगति हो सकती है ? नहीं । क्योंकि उनकी चित्तवृति दूसरी ओर बलबान होती है । मनुष्य़ के चित्त में जैसा विश्वास होता है । वैसा ही उसे कर्म फ़ल प्राप्त होता है । वैसी ही उसकी परलोक गति भी होती है ।
इसी मनुष्य जीवन मे प्राणियों के लिये मोक्ष मार्ग है ।इसी मनुष्य जीवन मे प्राणियों के लिये स्वर्ग मार्ग भी है । ये दोनों अलग है । प्रायः मनुष्य स्वर्ग को ही मोक्ष मान लेते है । अतः मनुष्य को जीवन और मरण इन दो तत्वों पर सदा ही ध्यान देना चाहिये । दस कूप के समान एक बाबली होती है । दस बाबली के समान एक सरोवर होता है । दस सरोवर के समान वह पोंसरा होती है । जो वापी जल रहित वन अथवा देश में किसी के द्वारा बनवायी जाती है । जो दान निर्धन को दिया जाता है । तथा जो दया प्राणियों पर की जाती है । उसके पुन्य से उन्हें करने वाला स्वर्ग को प्राप्त होता है । व्यर्थ के कार्यों को छोडकर निरन्तर धर्माचरण करना चाहिये । इस प्रथ्वी पर दान दम और दया ये तीन सार कर्म हैं । दरिद्र । सज्जन ब्राह्मण को दान । अनाथ प्रेत ( जिस मृतक का किसी के द्वारा संस्कार न किया गया हो ) का संस्कार । करोडों यग्य का फ़ल देता है । इसमें कोई संशय है ? अर्थात इसमें कोई संशय नही है ।
2 टिप्पणियां:
anootha lekh..
shukriya share karne ke liye
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
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जय गुरूदेव की ।
राजीव जी मुझे आज तक यह समझ नहीं आया,परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण क्यों किया ।
इसका उत्तर मुझे कहीं नही मिला,और इस विषय पर मेने एक मेरे ब्लोग में एक लेख भी लिखा है,लेकिन अभी शायद उसको खोलने पर वायरस मिलेगा,क्योंकि अभी हमारी वाणी .कोम में अभी वायरस है ।
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