रविवार, जून 27, 2010

ब्रह्माण्डी चक्रों को जानें ..?

पिंडी चक्रों का वर्णन आप पूर्व में पढ ही चुके हैं । इससे आगे के क्रम में " ब्रह्माण्डी चक्रों " के बारे में बात करते हैं । इसमें त्रिकुटि दसंवा द्वार आदि से ऊपर की ओर आगे बङते हैं ।
1--त्रिकुटि--- यह तीन दल का कमल है । यहाँ ॐ का निवास है । यह त्रिकुटि संतो के लिये है । योगेश्वरों के लिये नहीं है । इसको हँसमुखी भी कहते हैं । वास्तव में यह सब ग्यान सच्चे संत और सदगुरु की कृपा
से ही संभव है । अन्यथा ये किताबी ग्यान से अधिक नहीं है । कोई भी संत तीन महीने से लेकर एक साल तक आपको ऐसे अनुभवों से रूबरू कराता है । तो वह सच्चा संत है । वरना पाखंडियों की संसार में भरमार है । यहाँ ये भी महत्वपूर्ण है । कि आप गुरु की बतायी बात पर अमल कितना कर रहे हैं ?
2--सुन्न या दसवाँ द्वार--- यह एक दल का कमल है। यहाँ पारब्रह्मा का निवास है । जिसे सर्व साधारण लोग कुल मालिक आदि करके मानते हैं । यहीं से मृत्य उपरान्त आत्मा यदि निकले तो मनुष्य फ़िर से मनुष्य जन्म का अधिकारी हो जाता है । इस द्वार को सहज योग द्वारा कुछ ही समय में देखा और जाना जा सकता है । शर्त वही पुरानी है । यदि आपका गुरु सिर्फ़ बातूनी ही नहीं है । बल्कि यहाँ तक पहुँचने का मार्ग युक्ति आदि जानता है । यह इस पर निर्भर है । इसलिये गुरु के चयन में विशेष खोजबीन की आवश्यकता होती है ।
कहा भी है " पानी पियो छान के । गुरु करो जान के । "
3-- महासुन्न-- यहाँ अन्धेरा मैदान है । यहाँ से " चार शब्द " तथा पाँच स्थान अति गुप्त है । जिनका पता कोई भेदी । कोई पहुँचा हुआ संत । अथवा सतगुरु की कृपा से ही लगता है । यह मनुष्य जीवन बेहद अनमोल है । और लाखों साल भटकने और अनेक कष्टों के बाद प्राप्त हुआ है । इसे यूँ ही वासनाओं के मकङजाल में फ़ँसकर व्यर्थ न जाने दें ।
4--भंवर गुफ़ा--- यहाँ " सोहं " पुरुष का निवास है । यह दो स्थान यानी " महासुन्न " और " भंवर गुफ़ा "
दयाल देश की सीमा में हैं ।
5--सतलोक-- यहाँ " सतपुरुष " का निवास है । इसके ऊपर तीन स्थान और भी हैं । जिन्हें संतो ने गुप्त रखा है । जीव यहाँ तक जान ले । वही बहुत बङी बात है । और यह सीना ब सीना ग्यान है । अधिक और स्पष्ट सच्चे संतो की सेवा में जाने से उनकी कृपा से प्राप्त होता है ।
आईये पिंड देश में सहस्त्र दल कमल के नीचे के छह स्थान जिनको षटचक्र भी कहते हैं । पिंड में उनके प्रतिबिम्ब हैं । आईये उनके कुछ और कार्यों के बारे में जानते हैं ।
1--पहला चक्र--दोनों आँखों के पीछे है । जहाँ सुरति अथवा रूह का ठहराव है ।
2--दूसरा चक्र--कंठ अर्थात गले में है । इस स्थान से स्वप्न की रचना होती है । जिसे जीवात्मा लिंग शरीर की सहायता से करता है । देह के प्राण का स्थान यहीं है ।
3---तीसराचक्र-- ह्रदय में है । दिल अर्थात पिंडी मन का यही स्थान है । संकल्प विकल्प यहीं से शुरु होते हैं । सुख -दुख ,आशा-निराशा , भय-निर्भय इत्यादि का प्रभाव इसी स्थान पर होता है ।
4--चौथा चक्र-- नाभि कमल में है । और स्थूल पवन का भन्डार है ।
5--पाँचवा चक्र-- इन्द्रिय चक्र है । स्थूल शरीर की उत्पत्ति यहीं से होती है ।
6---छठा चक्र--गुदा चक्र है । नाभि की और से प्राणों को खींचकर नीचे के शरीर अर्थात पैरों और टांगो को शक्ति देता है।
विशेष--मन , इन्द्रियाँ ,शरीर , सांसारिक पदार्थ और स्वर्ग आदि जङ हैं । परन्तु सुर्ति चेतन रूप है । त्रिकुटि स्थान में इसका मिलाप शुरु होता है । इसी स्थान तक माया का प्रभाव है । इसी स्थान से जङ चेतन की गांठ शुरु हुयी अर्थात बंधी है । सुर्ति के इस स्थान को जिनसे होकर वह नीचे उतरी है । उन्ही स्थानों से श्रेणी के हिसाब से ऊपर ले जाते हैं । अभ्यास के द्वारा उसे ऊपर की ओर खींचकर ले जाने से त्रिकुटी में जङ चेतन की गांठ खुल जायेगी । अर्थात जङ पदार्थ यहीं तक रह जाते हैं । आगे नहीं जा सकते । ब्रह्माण्ड के स्थान अत्यन्त बङे बङे और काफ़ी दूरी पर स्थित हैं । तथापि वायरलैस के समान उनकी डोरियाँ हमारे अंतर में लगी हुयी हैं । जब " सुरती शब्द योग " अभ्यास करने से " रूह " हमारे शरीर से सिमटकर ऊपर के स्थानों पर चङ जायेगी । तो जब और जितनी देर तक चङेगी । इन स्थानों पर तार लगा हुआ है । और वहाँ से जो धारायें आती हैं । वे दूरबीन के समान हैं । जिनके द्वारा हम अति दूरवर्ती स्थानों को आराम से देख सकते हैं । इसी तरह आँख के स्थान से समस्त बाहर की रचना के साथ
सूर्य चन्द्रमा तारों के समान जो बङे बङे स्थान हैं । उनसे किरणो की डोरियाँ लगी हुयी हैं । जिन्हें आराम से देख सकते हैं ।
वास्तव में " सहज योग " या सुरती शब्द योग अत्यन्त सरल है । यदि आपको प्रभु कृपा से कोई पहुँचे हुये संत की कृपा प्राप्त हो जाय तो । अन्यथा और ऊपर लिखी बातें आपके लिये " परी कथा " से अधिक नहीं हैं ।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता
है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । निज अनुभव तोहे कहूँ खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।

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