शनिवार, जून 26, 2010

मन्त्र का रहस्य..


मैंने अपने साधु जीवन में इस बात को बखूबी अनुभव किया । कि लोग मन्त्र तन्त्र को या तो अत्यन्तश्रद्धा की नजर से देखते हैं । या फ़िर दूसरे द्रष्टिकोण में इस तरह की बातों से एक अनजाने से भय से भयभीत भी रहते हैं । एक और नजरिये से कुछ लोग जो मन्त्र तन्त्र विग्यान में कुछ जानकार हो जाते
हैं । वो व्यर्थ के अहम का शिकार होते भी देखे गये हैं । थोङी बारीकी से विचार किया जाय तो ईश्वरीय ग्यान या ईश्वरीय सीमा क्या इतनी सीमित है । जो इतनी आसानी से समझ में आ जाय । फ़िर " विराट "
और अनन्त शब्दों के मायने क्या होंगे ? यह तो एक अलग बात है । पर मैंने देखा है । कि मन्त्र को लोग जाने कितना बङा " हौवा " समझते हैं । मेरा आज का चर्चा का विषय यही है । इसको समझने के लिये हम
किसी भी एक सरल मन्त्र को ले सकते हैं । कठिन में इसलिये नहीं ले रहा । क्योंकि मैं तो समझ जाऊँगा ।पर आम लोग जो मन्त्र आदि को करीब से नहीं जानते । उन्हें समझने में कठिनाई हो सकती है ।
अब जरा इस मन्त्र पर नजर डालें । " ॐ सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य समन्विते । मनुष्यो मत्प्रसादेनभविष्य्ति न संशयिते । " लग रहा है । न डरावना सा । पता नहीं क्या लिखा है। और इसका क्या मतलब है । कहाँ और किसलिये और किस तरह कार्य करता है । आईये विचार करते हैं । यह मन्त्र के अन्दाज में एक बेहद साधारण बात लिखी है । जिसको तमाम तरह के अहंकार पाले नकली बाबा बेहद सेवा सुश्रूषा के बाद धन आदि लेकर आपको बङे अहसान से देते हैं । और धर्म के क्षेत्र में आपकी अग्यानता और भय कोभुनाते हैं ।
मात्र संस्कृत भाषा में होने से आप मन्त्र से भयभीत हो जाते हैं । मेरे पास क्योंकि इस बात को लेकर बेहद शंकाए और प्रश्न आते हैं । इसलिये आज मैं इस विषय पर जो भी मैं जानता हूँ । आप तकपहुँचा रहा हूँ । ॐ जैसा कि मैंने कई लेखों में लिखा है । शरीर का प्रतीक है । वास्तव में हमारे शरीर की रचना ॐ से हुयी है । तत्व ग्यान की दृष्टि से शरीर ही ॐ है । क्योंकि शरीर हमारे लिये एक वाहन की तरह कार्य करता है । इसके द्वारा ही हम उन्नति या अवनति का मार्ग बना सकते हैं । चाहे वो इहलौकिक हो अथवा पारलौकिक । शरीर के विना किसी भी सांसारिक पदार्थ या परिवार या वासना का कोई महत्व नहीं है । क्योंकि फ़िर उसका उपयोग क्या ? शरीर से ही हम स्वर्ग और अन्य उच्च लोकों को प्राप्त कर सकते हैं । शरीर का दुरुपयोग करने पर नरक के भी भागी बनते हैं । इसलिये क्योंकि ॐ शरीर है । और सारा प्रयोजन इसी हेतु किया जा रहा है । ॐ को प्रत्येक मन्त्र के आगे जोङने का विधान वेद बतलाता है ।
संत मत क्योंकि अपनी शुरुआत ही " आत्मा " से करता है । और शरीर को साधन के रूप में देखता है । इसलिये आत्म ग्यान या संत मत में ॐ को कोई महत्व नहीं दिया गया है । अब ऊपर जो मन्त्र दिया है । वो अगर हिंदी में होता । तो इस तरह होता ।" मैं सभी बाधाओं से मुक्त होऊँ । धन धान ( अनाज ) से भरा पूरा रहूँ । इस प्रकार में मनुष्य के रूप में अपने घर में रहता हुआ । भविष्य की किसी भी चिंता से मुक्त रहूँ । " तो देखा आपने कितनी साधारण बात संस्कृत में होने के कारण कितनी डरावनी लग रही थी । वेद हों या अन्य धार्मिक ग्रन्थ । सभी इस तरह की ही बात कहते हैं । पर क्योंकि जिस समय इनकी रचना हुयी । और देवताओं की भाषा संस्कृत है । इसलिये इनको संस्कृत में कहा गया है । ऊपर दिये गये मन्त्र को मैंने इसलिये चुना । क्योंकि एक आम आदमी की सुख शान्ति के लिये ये बेहद प्रभावशाली मन्त्र है । और " द्वैत " की साधना के समय ये मन्त्र मैंने कई लोगों को दिया था । किसी भी मन्त्र में दो बातों का होना महत्वपूर्ण है । एक तो उसका सही उच्चारण । और दूसरी उससे भी महत्वपूर्ण बात है । कि मन्त्र दाता द्वारा मन्त्र को एक्टिव करना । अब मान लो ये मन्त्र पङकर कोई प्रक्टीकल के तौर पर इसका जाप करने लगे । तो सालों बाद भी उसे कोई लाभ नहीं होगा । क्योंकि अभी ये बेजान है । जिस तरह आप किसी मोबाइल की सिम ले आओ । और ये चाहो । कि बिना एक्टिव किये ये काम करने लगे । तो वो नहीं करेगी । यही बात मन्त्र पर लागू होती है । ये बात मैं खास इसलिये कह रहा हूँ । कि पिछले तीन महीने में
इंटरनेट के माध्यम से जुङने वाले कुछ साधकों को मैंने मन्त्र बेहद सरल और हिंदी या इंगलिश भाषा में दिये तो उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ । कि मन्त्र इस प्रकार के भी हो सकते है ? जैसे " हे प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ । मुझे सत्य ग्यान दो । " प्रभु में आपके दर्शन करना चाहता हूँ । आदि । इंगलिश में भी इसी तरह साधारण और सरल वाक्य स्थिति के अनुसार चुन लिये । और मन्त्र कार्य करने लगे । मुख्य बात क्या थी ।
मन्त्र को एक्टिव करने का गुप्त विधान ? ये विधान गुप्त होता है । और साधारण पाठक क्या । सालों से जुङे साधकों या अन्य बाबाओं तक को मैं नहीं बताता । क्योंकि ये बता दिया तो फ़िर बचेगा ही क्या ? कोई भी नहीं बताता । तो कहने का आशय ये है । कि जो लोग स्थायी सुख शान्ति की तलाश में हैं । या किसी भी अद्रश्य या अग्यात की तलाश में हैं । दैहिक दैविक भौतिक सुख की तलाश में है । मन्त्र उनके लिये कारगर औषधि की तरह कार्य करता है । इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी हेतु आप बात कर सकते हैं ।

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