रविवार, नवंबर 20, 2011

मैं कहता हूं ईश्वर नहीं है

संपूर्ण अस्तित्व 1 जीवंत देह की भांति काम करता है । प्रत्येक चीज अन्य हर चीज से संबंधित है । घास का छोटे से छोटा तिनका हजारों लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित बड़े से बड़े तारे के साथ जुड़ा हुआ है । कोई order देने वाला कहीं नहीं बैठा है । और सारा काम चल रहा है । अस्तित्व स्वशासित है । जो भी हो रहा है  । स्वतः स्फूर्त है । न कोई आज्ञा देता । न कोई अनुकरण करता । यह महानतम रहस्य है । चूंकि यह रहस्य नहीं समझा जा सका । लोगों ने बहुत प्रारंभ से ही 1 ईश्वर की कल्पना करनी शुरू कर दी । उनकी god की कल्पना का कारण है । उनकी मनोवैज्ञानिक कठिनाई । यह स्वीकारना मुश्किल पड़ता है कि यह विशाल बृह्मांड । अपने आप । स्वतः स्फूर्त चल रहा है । बिना किसी दुर्घटना के । कोई ट्रेफिक पुलिस वाला तक नहीं है । और अरबों खरबों तारे हैं । world की करीब करीब समस्त जातियों ने god की कल्पना पैदा की । यह सिर्फ 1 मनोवैज्ञानिक समस्या है । न इसका religion से कोई नाता है । और न ही दर्शन शास्त्र से कोई रिश्ता है ।  यह बिलकुल समझ से परे है । अकल्पनीय है कि बिना स्रष्टा के यह विश्व कैसे अस्तित्व में आया । और इतना बड़ा बृह्मांड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है ? लोग अपनी तर्क क्षमता और कल्पना शक्ति को इतनी दूर तक न खींच सके । तो उन्होंने ईजाद कर ली । केवल अपने को सांत्वना देने के लिए कि चिंता की कोई बात नहीं है । वरना रात की नींद तक हराम हो जाती । करोड़ों आकाशगंगाएं और ग्रह नक्षत्र घूम रहे हैं । कौन जाने रात बिरात कहां वे आपस में टकरा जाएं । कोई उनकी देखभाल नहीं कर रहा । कोई police वाला नहीं है । न कोई court है । न कानून । लेकिन आश्चर्य कि सभी चीजें इतने बढ़िया ढंग से चल रही हैं । मौसम बदलता है । और बादल वर्षा करने आ जाते हैं । ऋतु बदलती है । और नई कोंपलें । और नई कलियां । और यह अनादिकाल से चला आ रहा है । न कोई हिसाब किताब रखता है ।  न कोई सूरज से कहता है कि समय हो गया । कोई अलार्म घड़ी नहीं है । जो ठीक सुबह बज उठे । और सूर्य से कहे कि चलो बाहर निकलो । अपने कंबल के । अब उदय हो जाओ । सब बिलकुल ठीक ठाक चल रहा है ।
वस्तुतः मेरा ईश्वर को इंकार करना भी उसी तर्क पर आधारित है । मैं कहता हूं ईश्वर नहीं है । क्योंकि कोई ईश्वर इस विशाल बृह्मांड का संचालन नहीं कर सकता । या तो यह आंतरिक रूप से स्वस्फूर्त है । बाहर से इसकी व्यवस्था नहीं हो सकती । जब तक कोई आंतरिक तारतम्य । कोई अंतर्संगति । 1 जीवंत देह की तरह स्वसंचालित भीतरी एकता न हो । कोई बाह्य नियंता अनादि काल से अनंतकाल तक इसकी व्यवस्था नहीं सम्हाल सकता । वह बोर हो जाएगा । और ऊबकर अपने को गोली मार लेगा । आखिर इस सारे झमेले का मतलब क्या है ? कोई उसे तख्वाह तो देता नहीं है । किसी को उसका पता तक तो मालूम नहीं है । मेरी अपनी समझ यह है कि इस अस्तित्व की व्यवस्था बाहर से नहीं की जा सकती । यह ज्यादा अकल्पनीय है । क्यों कोई ईश्वर यह कष्ट उठाएगा । और कब तक यह व्यवस्था करता रहेगा ? कभी वह थक जाएगा । और कभी छुट्टी भी मनाएगा । अवकाश के दिनों में क्या होगा ? और जब वह थक गया है । या सो रहा है । तब क्या होगा ? गुलाब खिलने बंद हो जाएंगे । सितारे गलत मार्गों पर भमण करने लगेंगे । हो सकता है । सूर्य west से उगने लगे । सिर्फ बदलाव के लिए । 1 दिन के लिए ही सही । कौन उसे रोकेगा ? नहीं  बाहर से यह असंभव है । ईश्वर की धारणा पूर्णतः असंगत और व्यर्थ है । कोई बाहर से अस्तित्व की संचालन व्यवस्था नहीं कर सकता । केवल एकमात्र संभावना है भीतर से । अस्तित्व 1 जीवंत समग्रता है । ओशो । द इनविटेशन । ओशो । उद्धरण । फ़िलॉसफिया पैरेनिस ।

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...