रविवार, नवंबर 20, 2011

97% सांपों में कोई जहर ही नहीं होता

मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है । यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है । अभिशाप है । जो मनुष्य के साथ हुआ है कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है । और कौन सिखा रहा है यह ? यह षडयंत्र कौन कर रहा है ? यह हजार हजार साल से शिक्षा कर रही है । वह कह रही । राम जैसे बनो । बुद्ध जैसे बनो । या अगर पुरानी तस्वीरें जरा फीकी पड़ गईं । तो गांधी जैसे बनो । विनोबा जैसे बनो । किसी न किसी जैसे बनो । लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी मत करना । किसी जैसे बनना । किसी दूसरे जैसे बनो । क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो । असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए । तुम्हारा तो बिलकुल बेकार है । भगवान ने भूल की । जो आपको पैदा किया । क्योंकि अगर भगवान समझदार होता । तो राम और गांधी और बुद्ध ऐसे कोई 10-15 आदमी के टाइप पैदा कर देता । दुनिया में । या अगर बहुत ही समझदार होता । जैसा कि सभी धर्मों के लोग बहुत समझदार हैं । तो फिर 1 ही तरह के  टाइप  पैदा कर देता । फिर क्या होता ?
अगर दुनिया में समझ लें कि 3 अरब राम ही राम हों । तो कितनी देर दुनिया चलेगी ? 15 मिनट में सुसाइड हो जाएगा । टोटल यूनिवर्सल सुसाइड हो जाएगा । सारी दुनिया आत्मघात कर लेगी । इतनी बोरडम पैदा होगी । राम ही राम को देखने से । सब मर जाएगा एकदम । कभी सोचा ? सारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जाएं । और सब पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगें । क्या होगा ? फूल देखने लायक भी नहीं रह जाएंगे । उनकी तरफ आंख करने की भी जरूरत नहीं रह जाएगी ।
नहीं । यह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व है । यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं । और यह कंपेरिजन कि कोई ऊंचा है । और आप नीचे हो । नासमझी का है । कोई ऊंचा और नीचा नही है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है । और प्रत्येक व्यक्ति दूसरा अपनी जगह है । नीचे ऊंचे की बात गलत है । सब तरह का वैल्युएशन गलत है । लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं ।
विद्रोह का मेरा मतलब है । इस तरह की सारी बातों पर विचार । इस तरह की सारी बातों पर विवेक । इस तरह की एक एक बात को देखना कि मैं क्या सिखा रहा हूं ? इस बच्चे को । जहर तो नहीं पिला रहा हूं ? बड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है । और बड़े प्रेम से शिक्षक । मां । बाप जहर पिलाते रहे हैं । लेकिन यह टूटना चाहिए ।
वही फर्क है । जो नींद में और ध्यान में है । इस बात को भी समझ लेना उचित है । नींद है । प्राकृतिक रूप से आई हुई । और आत्म सम्मोहन भी निद्रा है । प्रयत्न से लाई हुई । इतना ही फर्क है । हिप्नोसिस में । हिप्नोस का मतलब भी नींद होता है । हिप्नोसिस का मतलब ही होता है - तंद्रा । उसका मतलब होता है - सम्मोहन । एक तो ऐसी नींद है । जो अपने आप आ जाती है । और एक ऐसी नींद है । जो कल्टीवेट करनी पड़ती है । लानी पड़ती है ।
अगर किसी को नींद न आती हो । तो फिर उसको लाने के लिए कुछ करना पड़ेगा । तब एक आदमी अगर लेटकर यह सोचे कि नींद आ रही है । नींद आ रही है । नींद आ रही है । मैं सो रहा हूं । मैं सो रहा हूं । मैं सो रहा हूं । तो यह भाव उसके प्राणों में घूम जाए । घूम जाए । घूम जाए । उसका मन पकड़ ले कि मैं सो रहा हूं । नींद आ रही है । तो शरीर उसी तरह का व्यवहार करना शुरू कर देगा । क्योंकि शरीर कहेगा कि नींद आ रही है । तो अब शिथिल हो जाओ । नींद आ रही है । तो श्वासें कहेंगी कि अब शिथिल हो जाओ । नींद आ रही है । तो मन कहेगा कि अब चुप हो जाओ । नींद आ रही है । इसका वातावरण पैदा अगर कर दिया जाए भीतर । तो शरीर उसी तरह व्यवहार करने लगेगा । शरीर को इससे कोई मतलब नहीं है । शरीर तो बहुत आज्ञाकारी है ।
अगर आपको रोज 11 बजे भूख लगती है । रोज आप खाना खाते हैं । 11 बजे । और आज घड़ी में चाबी नहीं भर पाए हैं । और घड़ी रात में ही 11 बजे रुक गई है । और अभी सुबह के 8 ही बजे हैं । और आपने देखी घड़ी । और देखा कि 11 बज गए हैं । एकदम पेट कहेगा । भूख लग आई । अभी 11 बजे नहीं हैं । अभी 3 घंटे हैं बजने में । लेकिन घड़ी कह रही है कि 11 बज गए हैं । पेट एकदम से खबर कर देगा कि भूख लग आई है । क्योंकि पेट की तो यांत्रिक व्यवस्था है । 11 बजे रोज भूख लगती है । तो 11 बज गए । तो भूख लग आई है । पेट खबर कर देगा । पेट बिलकुल खबर कर देगा कि भूख लग आई है । अगर रोज रात 12 बजे आप सोते हैं । और अभी 10 ही बजे हैं । और घड़ी ने 12 के घंटे बजा दिए । घड़ी के घंटे देखकर आप फौरन पाएंगे कि तंद्रा उतरनी शुरू हो गई । क्योंकि शरीर कहेगा कि 12 बज गए । अब सो जाना चाहिए ।
शरीर बहुत आज्ञाकारी है । और जितना स्वस्थ शरीर होगा । उतना ज्यादा आज्ञाकारी होगा । स्वस्थ शरीर का मतलब ही यह होता है । आज्ञाकारी शरीर । अस्वस्थ शरीर का मतलब होता है । जिसने आज्ञा मानना छोड़ दिया । अस्वस्थ शरीर का और कोई मतलब नहीं होता । इतना ही मतलब होता है कि आप आज्ञा देते हैं । वह नहीं मानता । आप कहते हैं । नींद आ रही है । वह कहता है । कहां आ रही है । आप कहते हैं । भूख लगी है । वह कहता है । बिलकुल नहीं लगी है । आज्ञा छोड़ दे । वह शरीर अस्वस्थ हो जाता है । आज्ञा मान ले । वह शरीर स्वस्थ है । क्योंकि वह हमारे अनुकूल चलता है । हमारे पीछे चलता है । छाया की तरह अनुगमन करता है । जब वह आज्ञा छोड़ देता है । तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाती है । तो हिप्नोसिस का मतलब । सम्मोहन का मतलब इतना है कि शरीर को आज्ञा देनी है । और उसको आज्ञा में ले आना है ।
हमारी बहुत सी बीमारियां ऐसी हैं । जो झूठी हैं । जो सच्ची नहीं हैं । 100 में से अंदाजन 50 बीमारियां बिलकुल झूठी हैं । दुनिया में जो इतनी बीमारियां बढ़ती जाती हैं । उसका कारण यह नहीं है कि बीमारियां बढ़ती जाती हैं । उसका कारण यह है कि आदमी का झूठ बढ़ता जाता है । तो झूठी बीमारियां बढ़ती चली जाती हैं । इसको ठीक से खयाल में ले लें । इधर रोज बीमारियां बढ़ रही हैं । इसका मतलब यह नहीं है कि बीमारियां बढ़ती जाती हैं । बीमारियों को क्या मतलब है कि आप शिक्षित हो गए हैं । तो बीमारियां बढ़ जाएं । गरीबी कम हो गई है । तो बीमारियां बढ़ जाएं । कम होनी चाहिए । बीमारियां । नहीं । आदमी के झूठ बोलने की क्षमता बढ़ती चली जाती है । तो आदमी दूसरों से ही झूठ नहीं बोलता । अपने से भी झूठ बोल लेता है । वह बीमारियां भी पैदा कर लेता है ।
अगर समझ लें कि एक आदमी को बाजार जाने में कठिनाई है । दिवाला निकलने के करीब है । और उसका मन यह मानने को राजी नहीं होता कि वह दिवालिया हो सकता है । और बाजार में जाने की हिम्मत नहीं होती । दुकान पर कैसे जाए । जो देखता है । वही पैसे मांगता है । अचानक वह आदमी पाएगा कि उसको ऐसी बीमारी ने पकड़ लिया है । जिसने उसे बिस्तर पर लगा दिया । यह क्रियेटेड बीमारी है । यह उसके चित्त ने पैदा कर ली है । इस बीमारी के पैदा होने से दोहरे फायदे हो गए । एक फायदा यह हो गया कि अब वह कह सकता है कि मैं बीमार हूं । इसलिए नहीं आता हूं । उसने अपने को भी समझा लिया । और दूसरों को भी समझा दिया । अब इस बीमारी को किसी इलाज से ठीक नहीं किया जा सकता है । क्योंकि यह बीमारी होती । तो इलाज काम करता । यह बीमारी नहीं है । इसलिए इसको जितनी दवाइयां दी जाएंगी । यह और बीमार पड़ता जाएगा ।
अगर कभी दवाइयां देने से आपकी बीमारी ठीक न हो । तो आप जान लेना कि बीमारी दवाइयों वाली नहीं है । बीमारी कहीं और है । जिसका दवाई से कोई संबंध नहीं है । आप दवाई को गाली देंगे । और कहेंगे कि सब डाक्टर मूर्ख हैं । इतनी चिकित्सा कर रहे हैं । और मेरा इलाज नहीं होता । और आयुर्वेद से लेकर नेचरोपैथी तक । और एलोपैथी से होम्योपैथी तक चक्कर लगाएंगे । कहीं भी कुछ नहीं होगा । कोई डाक्टर आपके काम नहीं पड़ सकता । क्योंकि डाक्टर आथेंटिक बीमारी । प्रामाणिक बीमारी को ही ठीक कर सकता है । झूठी बीमारी पर उसका कोई वश नहीं है । और मजा यह है कि जो झूठी बीमारी है । उसको पैदा आप करने में रसलीन हैं । आप चाहते हैं कि वह रहे ।
स्त्रियों की बीमारियां 50% से भी ऊपर झूठी हैं । क्योंकि स्त्रियों को बचपन से एक नुस्खा पता चल गया है कि जब वे बीमार होती हैं । तभी प्रेम मिलता है । और कभी प्रेम मिलता ही नहीं । जब बीमार होती हैं । तब पति दफ्तर छोड़कर उनके पास कुर्सी लगाकर बैठ जाता है । मन में कितनी ही गालियां देता हो । लेकिन बैठता है । और पति को जब भी उन्हें बिस्तर के पास बिठा रखना हो । तब उनका बीमार हो जाना एकदम जरूरी है । इसलिए स्त्रियां बीमार ही रही आएंगी । कोई मौका ही नहीं । जब वे बीमार न हों । क्योंकि बीमारी में ही वे कब्जा कर लेती हैं । सब पर वे हावी हो जाती हैं । बीमार आदमी घर भर का डिक्टेटर हो जाता है । बीमार आदमी तानाशाह हो जाता है । वह कहता है । इस वक्त सब रेडियो बंद । तो सब रेडियो बंद करने पड़ते हैं । वह कहता है । सब सो जाओ । तो सबको सोना पड़ता है । वह कहता है । आज घर के बाहर कोई नहीं जाएगा । सब यहीं बैठे रहो । तो सबको बैठना पड़ता है । तो तानाशाही प्रवृत्ति जितनी होगी । उतना आदमी बीमारी खोज रहा है । क्योंकि बीमार आदमी को कौन दुखी करे । अब वह जो कहता है । मान लो । जब ठीक हो जाएगा । तब ठीक है ।
लेकिन बड़ा खतरा है । हम इस तरह उसकी बीमारी को उकसावा दे रहे हैं । अच्छा है कि पत्नी जब स्वस्थ हो । तब पति पास बैठे । यह समझ में आता है । बीमार हो । तब तो कृपा करके दफ्तर चला जाए । क्योंकि उसकी बीमारी को उकसावा न दे । महंगा है यह । बच्चा जब बीमार पड़े । तो मां को उसकी बहुत फ़िक्र नहीं करनी चाहिए । नहीं तो बच्चा जिंदगी भर जब भी फ़िक्र चाहेगा । तभी बीमार पड़ेगा । जब बच्चा बीमार पड़े । तब उसकी फ़िक्र कम कर देनी चाहिए एकदम । ताकि बीमारी और प्रेम में संबंध न जुड़ पाए । एसोसिएशन न हो पाए । यानी बच्चे को ऐसा न लगे कि जब मैं बीमार होता हूं । तब मां को मेरे पैर दबाने पड़ते हैं । सिर दबाना पड़ता है । जब बच्चा खुश हो । प्रसन्न हो । तब उसके पैर दबाओ । सिर दबाओ । ताकि खुशी से प्रेम का संबंध जुड़े ।
हमने दुख से प्रेम का संबंध जोड़ा है । और यह बहुत खतरनाक है । तब उसका मतलब यह है कि जब भी प्रेम की कमी होगी । तब दुख बुलाओ । तो दुख आएगा । तो प्रेम भी पीछे से आएगा । इसलिए जिनको भी प्रेम कम हो जाएगा । वे बीमार हो जाएंगे । क्योंकि बीमारी से उनको फिर प्रेम मिलता है ।
लेकिन बीमारी से कभी प्रेम नहीं मिलता । ध्यान रहे । बीमारी से दया मिलती है । और दया बहुत अपमानजनक है । प्रेम बात और है । लेकिन वह हमारे खयाल में नहीं है । तो मैं आपसे यह कह रहा हूं कि शरीर तो हमारे सुझाव पकड़ लेता है । अगर हमें बीमार होना है । तो बेचारा शरीर बीमार हो जाता है । ऐसी बीमारियों को दूर करने के लिए हिप्नोसिस उपयोगी है । सम्मोहन उपयोगी है । उसका मतलब यह है कि झूठी बीमारी है । झूठी दवा से काम होगा । सच्ची दवा काम नहीं करेगी । तो अगर हमने मान लिया है कि हम बीमार हैं । तो अगर इससे विपरीत हम मानना शुरू कर दें कि हम बीमार नहीं हैं । तो बीमारी कट जाएगी । क्योंकि बीमारी हमारे मानने से पैदा हुई थी । इसलिए हिप्नोसिस बड़ी कीमती चीज है । और आज तो विकसित मुल्कों में ऐसा कोई बड़ा अस्पताल नहीं है । जहां एक हिप्नोटिस्ट न हो । जहां एक सम्मोहन करने वाला व्यक्ति न हो । अमेरिका के । या ब्रिटेन के । बड़े अस्पतालों में डाक्टरों के साथ एक हिप्नोटिस्ट भी रख दिया है । क्योंकि बीमारियां पचासों ऐसी हैं । जिनके लिए डाक्टर बिलकुल बेकार है । तो उनके लिए हिप्नोटिस्ट काम में आता है । वह उनको बेहोश करना सिखाता है कि तुम बेहोश हो जाओ । और यह भाव करो कि तुम ठीक हो रहे हो । तुम ठीक हो रहे हो । क्या आपको पता है कि दुनिया में 100 सांपों में सिर्फ 3% सांपों में जहर होता है । 97% सांपों में कोई जहर ही नहीं होता । लेकिन कोई भी सांप काटे । आदमी मर जाएगा । बिना जहर वाले सांप से भी आदमी मर जाता है ।
इसीलिए मंत्र तंत्र काम कर पाते हैं । मंत्र तंत्र । यानी झूठा इलाज । अब एक आदमी को ऐसे सांप ने काटा है । जिसमें जहर है ही नहीं । अब इसको सिर्फ इतना विश्वास दिलाना जरूरी है कि सांप उतर गया । बस काफी है । सांप उतर जाएगा । सांप चढ़ा ही नहीं है । और अगर इसको यह विश्वास न आए । तो यह आदमी मर सकता है । अगर इसको यह पक्का बना रहे कि सांप ने मुझे काटा है । तो यह मरेगा । सांप ने मुझे काटा है । इससे मरेगा । सांप के काटने से नहीं ।
मैंने सुना है । एक बार ऐसी घटना घटी कि एक आदमी एक सराय से गुजरा । और रात उस सराय में उसने खाना खाया । और सुबह चला गया । जल्दी उठकर चला गया । साल भर बाद वापस लौटा । उस रास्ते से । उसी सराय में ठहरा । तो सराय के मालिक ने कहा । आप सकुशल हैं ? हम तो बड़े डर गए थे । उसने कहा । क्या हो गया ? जिस रात आप यहां ठहरे थे । जो खाना बना था । उसमें एक सांप गिर गया था । तो चार आदमियों ने खाया । चारों मर गए । एक आप थे । जो आप जल्दी उठकर चले गए । आपके लिए हम बड़े चिंतित थे । मगर आप जिंदा हैं । उस आदमी ने कहा । सांप ? और वह आदमी वहीं गिर पड़ा । और मर गया ।  साल भर बाद । उसने कहा । सांप खा गया हूं । उसके हाथ पैर कंपे । वह वहीं गिर पड़ा । उस सराय के मालिक ने कहा - घबराइए मत । अब तो कोई सवाल ही नहीं । पर वह आदमी तो गया । तब तक जा चुका है ।
इस तरह की बीमारी के लिए हिप्नोसिस बहुत उपयोगी है । लेकिन हिप्नोसिस का मतलब ही इतना है कि जो हमने व्यर्थ ही, झूठा ही अपने चारों तरफ जोड़ लिया है । उसे हम दूसरे झूठ से काट सकते हैं । ध्यान रहे । अगर झूठा कांटा किसी के पैर में लगा हो । तो असली कांटे से कभी मत निकालना । झूठे कांटे को असली कांटे से निकालने में बड़ा खतरा होगा । एक तो झूठा कांटा न निकलेगा । और असली कांटा और पैर में छिद जाएगा । झूठे कांटे को झूठे कांटे से ही निकालना होता है ।
ध्यान में और हिप्नोसिस में क्या संबंध है ? इतना ही संबंध है कि जहां तक झूठे कांटे गड़े हैं । वहां तक हिप्नोसिस का उपयोग किया जाता है । जैसे कि मैं आपसे कहता हूं । यह भाव करें कि शरीर शिथिल हो रहा है । यह हिप्नोसिस है । यह सम्मोहन है । यह आत्म सम्मोहन है ।
असल में आपने ही यह भाव कर रखा है कि शरीर शिथिल नहीं हो सकता है । उसको काटने के लिए इसकी जरूरत है । और कोई जरूरत नहीं है । अगर आपको यह पागलपन न हो । तो आप एक ही दफे खयाल करें कि शरीर शिथिल हो गया । शरीर शिथिल हो जाएगा । शरीर को शिथिल करने के लिए यह काम नहीं हो रहा है । आपकी जो धारणाएं हैं कि शरीर शिथिल होता ही नहीं है । उसको काटने के लिए आपके मन में यह धारणा बनानी पड़ेगी कि शरीर शिथिल हो रहा है । शरीर शिथिल हो रहा है । शरीर शिथिल हो रहा है । आपकी झूठी धारणा को इस दूसरी झूठी धारणा से काट दिया जाएगा । और जब शरीर शिथिल हो जाएगा । तो आप जानेंगे कि हां शरीर शिथिल हो गया है । और शरीर का शिथिल होना बिलकुल स्वाभाविक धर्म है । लेकिन हम इतने तनाव से भर गए हैं । और तनाव हमने इतना पैदा कर लिया है कि अब उस तनाव को मिटाने के लिए भी हमें कुछ करना पड़ेगा ।
तो हिप्नोसिस का इतना उपयोग है । जो आप भाव करते हैं । शरीर शिथिल हो रहा है । श्वास शांत हो रही है । मन शांत हो रहा है । यह हिप्नोसिस है । लेकिन यहीं तक । इसके बाद ध्यान शुरू होता है । यहां तक ध्यान है ही नहीं । ध्यान इसके बाद शुरू होता है । जब आप जागते हैं । जब आप दृष्टा हो जाते हैं । जब आप देखने लगते हैं कि हां शरीर शिथिल पड़ा है । श्वास शांत चल रही है । विचार बंद हो गए हैं । या विचार चल रहे हैं । जब आप देखने लगते हैं । बस आप सिर्फ देखने लगते हैं । वह जो दृष्टा भाव है । वही ध्यान है । उसके पहले तो हिप्नोसिस ही है । और हिप्नोसिस का मतलब है । लाई गई निद्रा । और कोई मतलब नहीं है । नहीं आती थी । हमने लाई है । प्रयास किया है । उसे बुलाया है । आमंत्रित किया है । निद्रा आमंत्रित की जा सकती है । अगर हम तैयार हो जाएं । और अपने को छोड़ दें । तो वह आ जाती है ।
लेकिन ध्यान और हिप्नोसिस एक ही चीज नहीं हैं । मेरी बात समझ लेना खयाल से । मैंने कहा कि यहां तक हिप्नोसिस है । यहां तक सम्मोहन है । जहां तक सब भाव कर रहे हैं हम । जब भाव करना बंद किया । और जाग गए । अवेयरनेस जहां से शुरू हुई । वहां से ध्यान शुरू हुआ । जहां से दृष्टा । साक्षी भाव शुरू हुआ । वहां से ध्यान शुरू हुआ । और इस हिप्नोसिस की इसलिए जरूरत है कि आप उलटी हिप्नोसिस में चले गए हैं । यानी इसको अगर वैज्ञानिक भाषा में कहना पड़े । तो यह हिप्नोसिस न होकर डि हिप्नोसिस है । यह सम्मोहन न होकर । सम्मोहन तोड़ना है । सम्मोहित हम हैं । पर हमें पता नहीं है । क्योंकि जिंदगी में हम सम्मोहित हो गए हैं । हमें पता ही नहीं है । हमको खयाल ही नहीं है कि हमने कितने तरह के सम्मोहन कर लिए हैं । और हमने किस किस तरकीब से सम्मोहन को पैदा कर लिया है । ओशो ।

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