रविवार, जून 27, 2010

अनहद में दस तरह के शब्द ..?

सहज योग में दस तरह के शब्द सुनाई देते हैं । ये शब्द हमारे घट में हर समय हो रहें हैं । जरूरत इन को अभ्यास के द्वारा सुनने की है । ये शब्द सुन लेने का अर्थ मामूली नहीं है । यह योग की ऊँची स्थिति है ।
पहला शब्द " चिङियों की बोली " है । इस शब्द को सुनने से शरीर के सारे रोम खङे हो जाते हैं । ऐसा प्रतीत होता है । कि हरे भरे बाग में रंग बिरंगे फ़ूलों से लदे पेङ फ़लों से लदे पङे हैं । वहाँ चिङिया चहचहा रही हैं । यह शब्द सहस्त्रदल कमल के नीचे से सुनाई देता है ।
दूसरा शब्द " झींगुर की झंकार " जैसा है । इसको सुनने से शरीर में एक विचित्र तरह का आलस्य और सुस्ती पैदा हो जाती है ।
तीसरा शब्द " घन्टा घङियाल की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से दिल में भक्ति और प्रेम बङता है । अभ्यासी को ऐसा महसूस होता है । कि किसी मन्दिर के अन्दर कोई विशाल घन्टा बज रहा हो । यह शब्द सहस्त्रदल कमल से सुनाई देता है ।
चौथा शब्द " शंख का शब्द है । इसके सुनने से मष्तिष्क से सुगन्ध आती है । और नशे के कारण आनन्द में सिर घूमने लगता है । ऐसा महसूस होता है । कि लक्ष्मी नारायण मन्दिर में शंख बज रहा हो । यह शब्द भी सहस्त्रदल कमल से सुनाई देता है ।
पाँचवा शब्द " वीणा और सितार की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से " अमृतरस " मष्तिष्क से नीचे उतरता है । और बहुत आनन्द आता है । यह शब्द गगन मण्डल अथवा त्रिकुटी से सुनाई देता है ।
छठवाँ शब्द " ताल की आवाज " है । इस शब्द के सुनने से अमृत मष्तिष्क से हलक में नीचे गिरता है । यह शब्द दसवें द्वार से सुनाई देता है ।
सातवाँ शब्द " बाँसुरी की आवाज " है । इस शब्द को सुनने वाला अन्तर्यामी हो जाता है । और छिपे हुये भेदों को जान लेता है । जिससे उसको सिद्धि प्राप्त हो जाती है । यही वो बाँसुरी है । जो भगवान कृष्ण बजाते थे । यह शब्द भी दसवें द्वार से सुनाई देता है ।
आँठवा " मृदंग और पखावज का शब्द " है । इसको सुनने से अभ्यासी गुप्त वस्तु को देखता है । सुनने वाला हर समय शब्द में मग्न रहता है । क्योंकि यह शब्द बाहर भीतर निरंतर सुनाई पङता है । इससे दिव्य दृष्टि हो जाती है । यह शब्द सतलोक की सीमा भंवर गुफ़ा से सुनाई देता है ।
नौंवा शब्द " नफ़ीरी की आवाज " है । इस आवाज को सुनने से वह शक्ति मिलती है । जो देवताओं को प्राप्त है । इस शब्द को सुनने से शरीर हल्का और सूक्ष्म हो जाता है । और अभ्यासी साधक पक्षी के समान जहाँ चाहे वहाँ उङकर जा सकता है । और लोगों की दृष्टि से ओझल हो सकता है । वह तो सबको देख सकता है । परन्तु उसे कोई नहीं देख सकता । अर्थात उसकी दृष्टि पर जो पर्दा पङा था । वह उठ जाता है । यह संतो की गति है । जो बहुत मुश्किल से मिलती है । यह शब्द सतलोक से सुनाई देता है ।
दसवाँ शब्द " बादल की गरज " है । यही अनहद शब्द है । इसके सुनने से अच्छे बुरे सभी विचारों का नाश हो जाता है । अभ्यासी सिद्धि शक्ति और चमत्कार को बच्चों का खेल समझता है । क्योंकि सुनने वाला अपने वास्तविक स्वरूप से मिल जाता है । यह शब्द सतलोक से सुनाई देता है ।
यह दस प्रकार के शब्द हर समय अनहद में महसूस होते हैं । चित्त में भांति भांति के संकल्पों के कारण ये शब्द सुनाई नहीं देते । ये विना " गुरुकृपा " के सुनाई नहीं देते । इन आवाजों को सुनने में अन्तर हो सकता है । अर्थात कोई आवाज पहले या बाद में सुनाई दे सकती है । परन्तु इस पर ध्यान न दें और इसका कोई विचार न करें । और बांये कान से जो आवाज सुनाई दे उस पर तो बिलकुल ध्यान न दें । और " ज्योति स्थान " जहाँ पर सिद्धि की प्राप्ति होती है । वहाँ से साबधानी पूर्वक बचकर निकल जाना चाहिये । फ़िर मंजिल आसान है।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

1 टिप्पणी:

Deepak ने कहा…

बांये कान से जो आवाज सुनाई दे उस पर तो बिलकुल ध्यान न दें ।

aisa kyn ?

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