गुरुवार, सितंबर 23, 2010

प्रभु । आप ठीक ही कहते थे ?


एक बार नारद को लगा कि विष्णु इंसानों के बारे में कुछ नहीं सोचते । इंसान बेचारा भक्ति करता हुआ कष्ट से मरा जा रहा है । और भगवान यहां अपने लोक में मौज कर रहे हैं । उन्हें भला इंसानों की क्या परवाह है ? यह प्रश्न ध्यान में आते ही नारद नारायण नारायण करते हुये क्षीरसागर पहुंच गये । विष्णु ने उनका स्वागतम किया । कुछ देर बाद नारद ने अपनी बात विष्णु से कही । प्रभु । मैं देखता हूं । कि प्रथ्वी पर लोग कितने कष्ट में हैं । सारे जीव त्राहि त्राहि कर रहे हैं । और आप इन सब बातों से बेपरवाह यहां स्वर्ग का आनन्द ले रहे हैं । मुझे तो यह अन्याय लगता है । प्रभु । विष्णु ने कहा । नारद जी आपकी आधी बात ही सत्य है । मैं तो चाहता हूं कि सभी जीव यहां आ जांय । और आनन्द से रहें । पर जीव अपने मजे में मृत्युलोक में ही ऐसा मस्त है । कि यहां कोई आना ही नहीं चाहता ? नारद को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । कि जीव भला स्वर्ग के मजे को छोडकर मृत्युलोक में क्यो पडा रहेगा ? विष्णु उनके मन की बात समझकर बोले । नारद जी ठीक है । इस बात को आजमाकर देखो । जाओ । और प्रथ्वी से बुरी से बुरी स्थिति वाला जीव । और कोई बेहद सुखी इंसान लेकर आओ । मैं उन्हें स्वर्ग में भेज दूंगा । नारद जी को यह बात उचित लगी । और वे परीक्षण हेतु दो ऐसे जीवों की तलाश में प्रथ्वी पर आये । जिनमें एक बेहद बुरी स्थिति में हो । और दूसरा सब प्रकार से सुखी सम्पन्न हो । उन्होंने सोचा । बुरी स्थिति वाला जीव जल्दी जायेगा । अतः उन्होंने सबसे बुरी स्थिति वाले जीव की तलाश की । तो उन्हें एक सुअर मिला । उन्होंने सोचा । इससे दयनीय हालत में कोई नहीं है । उन्होंने कहा । मैं स्वर्ग से आया हूं । और तुम्हें वहां ले जा सकता हूं । क्या तुम स्वर्ग चलना पसंद करोगे ? सुअर बहुत खुश हुआ । और बोला । इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है । नारद भी बहुत खुश हुये । कि देखो । मेरा अन्दाजा सही था । विष्णु गलत सोचते हैं । वे दोनों चलने को तैयार हो गये । कि तभी अचानक सुअर को कुछ ध्यान आया । और वह बोला । एक बात तो मैं पूछना ही भूल गया । कृपया वह भी बता दें । स्वर्ग में मेरी मनपसन्द विष्ठा खाने को मिलेगी ? मल खाने को मिलेगा या नहीं ? नारद अचकचाकर बोले । पागल हो गये हो तुम । स्वर्ग में भला विष्ठा का क्या काम । सुअर तुरन्त बोला । फ़िर स्वर्ग जाने से क्या फ़ायदा ? नारद निराश हो गये । बुरी स्थिति वाला सुअर । बुरी स्थिति में खुश था । उसे इसी में मजा आता था । नारद ने सोचा । अब दूसरा परीक्षण भी करना चाहिये । तब वे सब भांति सम्पन्न । सभी तरह के सुख भोग चुके । एक नाती पोतों वाले वृद्ध के पास पहुंचे । और बोले । महानुभाव । मैं आपको स्वर्ग ले जा सकता हूं । क्या आप स्वर्ग जाना पसन्द करोगे ? वह वृद्ध बोला । हां हां । क्यों नहीं । इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है । लेकिन बस आप चार महीने बाद आना । क्योंकि मेरी छोटी पुत्रवधू के संतान होने वाली है । मैं चाहता हूं । जीते जी उसका मुख ही देख लूं । कोई बात नहीं । कहकर नारद वापस चले गये । और फ़िर लगभग एक साल बाद आये । और बोले । महानुभाव । अब क्या आप स्वर्ग जाने हेतु तैयार हो ? वृद्ध बोला । हां हां । बिलकुल । लेकिन । कृपया मुझे एक साल की मोहलत और दें । because ये मेरा नवजात नाती बडा प्यारा है । और मैं कुछ समय इसको खिलाते हुये आनन्द लेना चाहता हूं । कोई बात नहीं । कहकर नारद फ़िर वापस चले गये । इसके बाद चार साल बाद पहुंचे । तो वह वृद्ध कहीं दिखायी नहीं दिये । घरवालों ने पूछने पर बताया । कि वो तो स्वर्गवासी हो गये । अर्थात मर गये । नारद ने सोचा । कि स्वर्ग का तो मेरा आना जाना होता ही रहता है । मुझे तो कहीं नजर नहीं आये । तब उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा । तो बाबाजी कुत्ता योनि में वहीं घर के आगे पूंछ हिलाते हुये रोटी के टुकडे की आस में खडे थे । नारद जी को बडी हैरत हुयी । स्वर्ग नहीं गये । और कुत्ता बने यहां पूंछ हिला रहे हैं । खैर । अभी नारद जी कुछ कहते । इससे पहले ही घर से उनकी एक बहू निकलकर आयी । और उसने झुंझलाकर । यह कहते हुये । कुत्ते को एक जोर का डन्डा मारा । ये कुत्ता । कमबख्त । यहीं मंडराता रहता है । नारद जी । ने उनसे मानसिक सम्बन्ध जोडा । और बोले । अब तो चलो । बहू के हाथ से पिटते हो । तब वह कुत्ता झेंपता हुआ बोला । कोई बात नहीं । मारने वाले अपने ही हैं । नारद ने कहा । खैर । अब तो चलोगे । कुत्ता बोला । अरे नारद जी । अभी कैसे जा सकता हूं । कितने जतन से जीवन भर सम्पत्ति जोडी । और ये मेरी औलाद । इसकी ठीक से देखरेख नहीं कर सकती । ये सब डाकू लूट ले जायेंगे । अतः मैं भली प्रकार इसकी देखरेख करता हूं । नारद जी ने झुंझलाकर माथे पर हाथ मारा । और बोले । प्रभु । आप ठीक ही कहते थे ?

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