शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

जडी बूटियों के विभिन्न नाम 1

लेखकीय -- अक्सर आयुर्वेद की औषधियों ।एक ही जडी बूटियों के कई नामों से लोगों को भृम हो जाता है । और वो किसी ग्रन्थ में दूसरे नाम से लिखी औषधि को नहीं जान पाते । ऐसी ही औषधियों के पर्यायवाची
यहां हैं । इसके अलावा दो अन्य भाग भी प्रकाशित किये जायेंगे ।
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महानिम्ब को बृहनिम्ब तथा दीप्यक को यवनिका या अजवाइन कहा जाता है ।
विडंग का नाम क्रिमिशत्रु है । हिंगु । हींग को रामठ भी कहते हैं ।
अजाजी । जीरक । जीरे से कहते हैं । उपकुंचिका को कारवी कहते हैं ।
कटुला । तिक्ता । कटुरोहिणी । कटु नाम की औषधि से कहते हैं ।
तगर । नत । वक्र से कहते हैं । चोच । त्वच । वरांड्ग्क । दारुचीनी से कहते हैं ।
उदीच्य को बालक । मोथा कहते हैं । हीबेर को अम्बुबालक भी कहते हैं ।
पत्रक । दल । तेजपत्ता से । आरक को तस्कर कहते हैं ।
हेमाभ । नाग । नागकेशर । इनको एक ही समझना चाहिये ।
असक । काश्मीरबाह्यीक । कुंकुम से कहते हैं । पुर । कुटनट । महिषाक्ष । पलंड्कषा । गुग्गुल से कहते हैं ।
काश्मीरी । कटफ़ला । श्रीपर्णी इनको एक ही समझना चाहिये ।
शल्लकी । गजभक्ष्या । पत्री । सुरभी । श्रवा । गजारी से कहते हैं ।
आंवला को धात्री । आमलकी । तथा बहेडा को अक्ष एवं विभीतक भी कहते हैं ।
हर्र को पथ्या । अभया । पूतना । हरीतकी भी कहते हैं ।
करंज । कंजा । उदकीर्य्य । दीर्घवृत । इनको एक ही समझना चाहिये ।
यष्टी । यष्टयाह्यय । मधुक । मधुयष्टी । जेठी मधु से कहते हैं ।
औषधि की जड को मूल या ग्रन्थिक भी कहते हैं ।
ऊषण । मरिच को । तथा विश्वा । शुण्ठी । सोंठ को कहते हैं ये महाऔषधि है ।
व्योष । कटुत्रय । त्र्यूषण । को एक ही समझें ।
लांगली को हलिनी । और । शेयसी को गजपिप्पली कहते हैं ।
त्रायन्तीका । त्रायमाणा । उत्सा । सुवहा । इनको एक ही समझना चाहिये ।
चित्रक । शिखी । वह्यि । अग्नि । को एक ही समझें ।
षडग्रन्था । उग्रा । श्वेता । हेमवती । वचा से कहते हैं ।
कुटज । शक्र । वत्सक । गिरिमल्लिका से कहते हैं । इसके बीजों को कलिंड्ग । इन्द्रयव । अरिष्ट कहते हैं ।
मुस्तक । मेघ । मोथा से । तथा कौन्ती को हरेणु भी कहते हैं ।
एला और बहुला बडी इलायची से । सूक्ष्मैला । त्रुटि । छोटी इलायची से कहते हैं ।
भार्ड्गी । पद्मा से । तथा कांजी । ब्राह्मण्यष्टिका से कहते हैं ।
मूर्वा । मधुरसा । और तेजनी । तिक्तवल्लिका से कहते हैं ।
स्थिरा । विदारीगन्ध । शालपर्णी । अंशुमती । एक ही औषधि है ।
लाड्ग्ली । कलसी । क्रोष्टापुच्छा । गुहा । इनको एक ही समझना चाहिये ।
पुनर्नवा । वर्षाभू । कठिल्या । करुणा । ये एक ही हैं ।
एरण्ड को उरूवक । आम । वर्धमानक । नाम से जाना जाता है ।
झषा और नागबला एक ही औषधि के नाम है ।
गोक्षुर । गोखुरू । श्वदंष्ट्रा । एक ही औषधि है ।
शतावरी । वरा । भीरु । पीवरी । इन्दीवरी तथा वरी के नाम से जानी जाती है ।
व्याघ्री । कृष्णा । हंसपादी । मधुस्रवा । वृहती । एक ही औषधि है ।
कण्टकारी । कटेरी । क्षुद्रा । सिंही । निदिग्धिका । इनको एक ही समझना चाहिये ।
वृश्चिका । त्र्यमृता । काली । विष्घनी । सर्पदंता । एक ही औषधि के नाम हैं ।
मर्कटी । आत्मगुप्ता । आर्षेयी । कपिकच्छुका । एक ही औषधि है ।
मुद्रपर्णी । क्षुद्रसहा । मूंग से कहते है । माष्पर्णी एवं महासहा । उडद से कहते हैं ।
दन्डयोन्यड्क । दन्डिनी । त्यजा । परा । महा । इनको एक ही समझना चाहिये ।
न्यग्रोध । वट । बरगद । से तथा अश्वत्थ । कपिल । पीपल से कहते हैं ।
प्लक्ष । गर्दभांड । पर्कटी । कपीतन । को एक ही समझें ।
अर्जुन वृक्ष । पार्थ । कुकुभ । धन्वी । इनको एक ही समझना चाहिये ।
नन्दीवृक्ष । प्ररोही । पुष्टिकारी । ये एक ही हैं ।
वंजुल और वेतस एक ही हैं ।
भल्लातक । अरुष्कर । भिलावा । इनको एक ही समझना चाहिये ।
लोध्र । सारवक । धृष्ट । तिरीट । को एक ही समझें ।
बृहत्फ़ला । महाजम्बु । बालफ़ला । ये एक ही हैं । जलजम्बु । नादेयी । को एक ही समझें ।
कणा । कृष्णा । उपकुंची । शौण्डी । मागधिका । पिप्पली से कहते हैं ।

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