रविवार, नवंबर 20, 2011

जब जहां भी ऊब आ जाए वहीं turning point होता है

नसरुद्दीन के जीवन में 1 कहानी है । नसरुद्दीन का गधा खो गया है । वह उसकी प्रापर्टी है । सब कुछ । सारा गांव खोज डाला । सारे गाँव के लोग खोज खोजकर परेशान हो गए ।  कहीं कोई पता नहीं चला । फिर लोगों ने कहा । ऐसा मालूम होता है कि किसी तीर्थ यात्रियों के साथ निकल रहे है । तीर्थ का महीना है । और गधा दिखता है कि कहीं तीर्थ यात्रियों के साथ निकल गया । गाँव में तो नहीं है । गांव के आसपास भी नहीं है । सब जगह खोज डाला गया । नसरुद्दीन से लोगों ने कहा । अब तुम माफ करो । समझो कि खो गया । अब वह मिलेगा नहीं ।
नसुरुद्दीन ने कहा कि मैं लास्ट उपाय और कर लूँ । वह खड़ा हो गया । आँख उसने बंद कर ली । थोड़ी देर में वह झुक गया । चारों हाथ पैर से । और उसने चलना शुरू कर दिया । और वह उस मकान का चक्‍कर लगाकर । और उस बग़ीचे का चक्‍कर लगाकर । उस जगह पहुंच गया । जहां 1 खड्डे में उसका गधा गिर पडा था । लोगों ने कहा । नसरुद्दीन हद कर दी । तुम्‍हारी खोज ने । यह आयडिया क्‍या है । उसने कहा । मैंने सोचा कि जब आदमी नहीं खोज सका । तो मतलब यह है कि गधे की की आदमी के पास नहीं है ।
मैंने सोचा कि मैं गधा बन जाऊँ । तो मैंने अपने मन में सिर्फ यह भावना की कि मैं गधा हो गया । अगर मैं गधा होता । तो कहाँ जाता खोजने । गधे को खोजने कहां जाता । फिर कब मेरे हाथ झुककर जमीन पर लग गए । और कब मैं गधे की तरह चलने लगा । मुझे पता ही नहीं चला । कैसे मैं चलकर वहां पहुंच गया । वह मुझे पता नहीं । जब मैंने आँख खोली । तो मैंने देखा । मेरा गधा खड्डे में पडा हुआ है ।
नसरुद्दीन तो 1 सूफी फकीर है । यह कहानी तो कोई भी पढ़ लेगा । और मजाक समझकर छोड़ देगा । लेकिन इसमें 1 की है । इस छोटी सी कहानी में । इसमें कुंजी है । खोज की । खोजने का 1 ढंग वह भी है । और आत्‍मिक अर्थों में तो ढंग वही है । तो प्रत्‍येक तीर्थ की कुंजियां है । यंत्र है । और तीर्थों का पहला प्रयोजन तो यह है कि आपको उस आविष्‍ठ धारा में खड़ा कर दें । जहां धारा वह रही हो । और आप उसमें बह जाएं । इसलिए सदा बहुत सी चीजें गुप्‍त रखी गयी है । गुप्‍त रखने का और कोई कारण नहीं था । किसी से छिपाने का कोई और कारण नहीं था । जिसको हम लाभ पहुंचाना चाहते है । उनको नुकसान पहुंच जाए । तो कोई अर्थ नहीं । तो वास्‍तविक तीर्थ छिपे हुए और गुप्‍त है । तीर्थ छिपे हुए और गुप्‍त है । तीर्थ जरूर है । पर वास्‍तविक तीर्थ छिपे हुए । गुप्‍त है । करीब करीब निकट है । उन्हीं तीर्थों के । जहां आपके झूठे तीर्थ खड़े हुए है । और जो झूठे तीर्थ है । वह जो झूठे तीर्थ है । धोखा देने के लिए खड़े किए गए है । वह इसलिए खड़े किए गए है । कि गलत आदमी ने पहुंच जाए । ठीक आदमी तो ठीक पहुंच ही जाता है । और हरेक तीर्थ की अपनी कुंजियों है ।
इसलिए अगर सूफियों का तीर्थ खोजना हो । तो जैनियों के तीर्थ की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता । अगर सूफियो का तीर्थ खोजना है । तो सूफियों की कुंजिया है । और उन कुंजियों का उपयोग करके तत्‍काल खोजा जा सकता है । तत्‍काल ।
1 विशेष यंत्र जैसे कि तिब्‍बतियों के होते है । जिसमें खास तरह की आकृतियां बनी होती है । वे यंत्र कुंजिया है । जैसे हिंदुओं के पास भी यंत्र है । और हजार यंत्र है । आप घरों में भी शुभ लाभ बनाकर आंकडे लिखकर और यंत्र बनाते है । बिना जाने कि किसलिए बना रहे है । क्‍यों लिख रहे है यह । आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में 1 ऐसा यंत्र बनाए हुए है । जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है । मगर बाप दादे आपके बनाते रहते है । और आप बनाए चले जा रहे है ।
1 विशेष आकृति पर ध्‍यान करने से आपकी चेतना विशेष आकृति लेती है । हर आकृति आपके भीतर चेतना को आकृति देती है । जैसे कि अगर आप बहुत देर तक खिड़की पर आँख लगाकर देखते रहें । फिर आँख बंद करें । तो खिड़की का निगेटिव चौखटा आपकी आँख के भीतर बन जाता है । वह निगेटिव है । अगर किसी यंत्र पर आप ध्‍यान के बाद आपको भीतर निर्मित होते है । वह विशेष ध्‍यान के बाद । आपको भीतर दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है । और जब वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए । तब विशेष आह्वान करने से तत्‍काल आपकी यात्रा शुरू हो जाती है ।
दूसरी बात  मनुष्‍य के life में जो भी है । वह सब matter से निर्मित है । सिर्फ पदार्थ से निर्मित है । मनुष्‍य के life में जो है । सिर्फ उसकी आंतरिक चेतना को छोड़कर । लेकिन आंतरिक चेतना का तो आपको कोई पता नहीं है । पता तो आपको सिर्फ body का है । और शरीर के सारे संबंध पदार्थ से है । थोड़ी सी अल्‍केमी समझ लें । तो दूसरा तीर्थ का अर्थ ख्‍याल में आ जाए ।
अल्क मिस्ट की प्रक्रियाएं है । वह सब गहरी religion की प्रक्रियाएं हैं । अब अल्क मिस्ट कहते है कि अगर पानी को 1 बार बनाया जाए । और फिर पानी बनाया जाए । फिर भाप बनाया जाए । उसको फिर पानी बनाया जाए । ऐसा 1000 बार किया जाए । तो उस पानी में विशेष गुण आ जाते है । जो साधारण पानी में नहीं है । इस बात को पहले मजाक समझा जाता था । क्‍योंकि इससे क्‍या फर्क पड़ेगा । आप 1 दफा पानी को डिस्टिल कर लें । फिर दोबारा उस पानी को भाप बनाकर डिस्‍टिल्‍ड़ कर लें । फिर तीसरी बार । फिर चौथी बार । क्‍या फर्क पड़ेगा । लेकिन पानी डिस्‍टिल्‍ड़ ही रहेगा । लेकिन अब science ने स्‍वीकार किया है कि इसमें quality बदलती है ।
अब science ने स्‍वीकार किया कि वह 1000 बार experiment करने पर उस पानी में विशिष्‍टता आ जाती है । अब वह कहां से आती है । अब तक साफ नहीं है । लेकिन वह water विशेष हो जाता है । लाख बार भी उसको करने के प्रयोग है । और तब वह और विशेष हो जाता है । अब आदमी के body में हैरान होंगे । जानकर आप  कि 75% पानी है । थोड़ा बहुत नहीं 75% । और जो पानी है । उस पानी को chemical ढंग वहीं है । जो समुद्र के पानी का है । इसलिए salt के बिना आप मुश्‍किल में पड़ जाते है ।
आपके body के भीतर जो water है । उसमें salt की मात्रा उतनी ही होनी चाहिए । जितनी समुद्र के पानी में है । अगर इस पानी की व्‍यवस्‍था को भीतर बदला जा सके । तो आपकी चेतना की व्‍यवस्‍था को बदलने में सुविधा होती है । तो लाख बार डिस्टिल्ड़ किया हुआ water अगर पिलाया जा सके । तो आपके भीतर बहुत सी वृतियों में एकदम परिर्वतन होगा । अब यह अल्क मिस्ट हजारों experiment ऐसे कर रहे थे । अब 1 लाख दफा पानी को डिस्टिल्ड़ करने में सालों लग जाते है । और 1 आदमी 24 घंटे यही काम कर रहा था । इसके दोहरे परिणाम होते है । 1 तो उस आदमी का चंचल मन ठहर जाता था । क्‍योंकि यह ऐसा काम था । जिसमें चंचल होने का उपाय नहीं था । रोज सुबह से सांझ तक वह यही कर रहा था।  थक कर मर जाता था । और दिन भर उसने किया क्‍या । हाथ में कुल इतना है कि पानी को उसने 25 दफा डिस्टिल्ड़ कर लिया ।
वर्षों बीत जाते । वह आदमी पानी ही डिस्टिल्ड़ करता रहता । हमें सोचने में कठिनाई होगी । पहले थोड़े दिन में हम ऊब जाएंगे । ऊबेंगे । तो हम बंद कर देंगे । यह मजे की बात है । जब जहां भी ऊब आ जाए । वहीं turning point होता है । अगर आपने बंद कर दिया । तो आप अपनी पुरानी स्‍थिति में लौट जाते है । और अगर जारी रखा । तो आप नयी चेतना को जनम दे लेते है । ओशो ।

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