रविवार, नवंबर 20, 2011

उससे यह मत कहो कि हम जो कहते हैं वही सत्य है

तेन त्यक्तेन भुज्जीथा । यह सूत्र । यह कहता है । इतना ही कहता है । सीधी सीधी बात कि जो छोड़ता है । वह भोगता है । यह । यह नहीं कहता कि तुम्हें भोगना हो । तो तुम छोड़ना । यह । यह कहता है कि अगर तुम छोड़ सके । तो तुम भोग सकोगे । लेकिन तुम भोगने का खयाल अगर रखे । तो तुम छोड़ ही नहीं सकोगे ।
अदभुत है सूत्र । पहले कहा । सब god का है । उसमें ही छोड़ना आ गया । जिसने जाना । सब परमात्मा का है । फिर पकड़ने को क्या रहा ? पकड़ने को कुछ भी न बचा । छूट गया । और जिसने जाना कि सब परमात्मा का है । और जिसका सब छूट गया । और जिसका मैं गिर गया । वह परमात्मा हो गया । और जो परमात्मा हो गया । वह भोगने लगा । वह रसलीन होने लगा । वह आनंद में डूबने लगा । उसको पल पल रस का बोध होने लगा । उसके प्राण का रोआं रोआं नाचने लगा । जो god हो गया । उसको भोगने को क्या बचा ? सब भोगने लगा वह । आकाश उसका भोग्य हो गया । फूल खिले । तो उसने भोगे । सूरज निकला । तो उसने भोगा । रात तारे आए । तो उसने भोगे । कोई मुस्कुराया । तो उसने भोगा । सब तरफ उसके लिए । भोग फैल गया । कुछ नहीं है उसका अब । लेकिन चारों तरफ भोग का विस्तार है । वह चारों तरफ से रस को पीने लगा ।
धर्म भोग है । और जब मैं ऐसा कहता हूं । धर्म भोग है । तो अनेकों को बड़ी घबराहट होती है । क्योंकि उनको खयाल है कि धर्म त्याग है । ध्यान रहे । जिसने सोचा कि धर्म त्याग है । वह उसी गलती में पड़ेगा । वह इनवेस्टमेंट की गलती में पड़ जाएगा । त्याग जीवन का तथ्य है । इस जीवन में पकड़ना नासमझी है । पकड़ रहा है । वह गलती कर रहा है । सिर्फ गलती कर रहा है । जो उसे मिल सकता था । वह खो रहा है । पकड़कर खो रहा है । जो उसका ही था । उसने घोषणा करके कि - मेरा है । छोड दिया । लेकिन जिसने जाना कि सब परमात्मा का है । सब छूट गया । फिर त्याग करने को भी नहीं बचता कुछ । ध्यान रखना । त्याग करने को भी उसी के लिए बचता है । जो कहता है - मेरा है ।
1 आदमी कहता है कि - मैं यह त्याग कर रहा हूं । तो उसका मतलब हुआ कि वह मानता था कि मेरा है । सच में जो कहता है - मैं त्याग कर रहा हूं । उससे त्याग नहीं हो सकता है । क्योंकि उसे मेरे का खयाल है । त्याग तो उसी से हो सकता है । जो कहता है - मेरा कुछ है नहीं । मैं त्याग भी क्या करूं । त्याग करने के लिए पहले मेरा होना चाहिए । अगर मैं कुछ कह दूं कि यह मैंने आपको त्याग किया । कह दूं कि यह आकाश मैंने आपको दिया ।  तो आप हंसेंगे । आप कहेंगे । कम से कम पहले यह पक्का तो हो जाए कि आकाश आपका है । आप दिए दे रहे हैं । मैं कह दूं कि दे दिया मंगलग्रह आपको । दान कर दिया । तो पहले मेरा होना चाहिए । त्याग का भृम उसी को होता है । जिसे ममत्व का खयाल है ।
नहीं । त्याग छोड़ने से नहीं होता । त्याग इस सत्य के अनुभव से होता है कि सब परमात्मा का है । त्याग हो गया । अब करना नहीं पड़ेगा । घटित हो गया । इस तथ्य की प्रतीति है कि सब परमात्मा का है । अब त्याग को कुछ बचा नहीं । अब आप ही नहीं बचे । जो त्याग करे । अब कोई दावा नहीं बचा । जिसका त्याग किया जा सके । और जो ऐसे त्याग की घड़ी में आ जाता है । सारा भोग उसका है । सारा भोग उसका है । जीवन के सब रस । जीवन का सब सौंदर्य । जीवन का सब आनंद । जीवन का सब अमृत उसका है ।
इसलिए यह सूत्र कहता है । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा । जिसने छोड़ा । उसने पाया । जिसने खोल दी मुट्ठी । भर गई । जो बन गया झील की तरह । वह भर गया । जो हो गया खाली । वह अनंत संपदा का मालिक है ।
शिक्षकों के सम्मेलन होते हैं । तो वे विचार करते हैं । student बड़े अनुशासन हीन हो गए । इनको डिसिप्लिन में कैसे लाया जाए । कृपा करें । इनको पूरा अनुशासन हीन हो जाने दें । क्योंकि आपके डिसिप्लिन का परिणाम क्या हुआ है । 5000 साल से । डिसिप्लिन में तो थे । क्या हुआ ? और डिसिप्लिन सिखाने का मतलब क्या है ? डिसिप्लिन सिखाने का मतलब है कि हम जो कहें । उसको ठीक मानो । हम ऊपर बैठें । तुम नीचे बैठो । हम जब निकलें । तो दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करो । या और ज्यादा डिसिप्लिन हो । तो पैर छुओ । और हम जो कहें । उस पर शक मत करो । हम जिधर कहें । उधर जाओ । हम कहें बैठो । तो बैठो । हम कहें उठो । तो उठो । यह डिसिप्लिन है ? डिसिप्लिन के नाम पर आदमी को मारने की करतूतें हैं । उसके भीतर कोई चैतन्य न रह जाए । उसके भीतर कोई होश न रह जाए । उसके भीतर कोई विवेक और विचार न रह जाए ।
मिलिटरी में क्या करते हैं ? 1 आदमी को 3-4 साल तक कवायद करवाते हैं । लेफ्ट टर्न । राइट टर्न । कितनी बेवकूफी की बातें हैं कि आदमी से कहो कि बाएं घूमो । दाएं घूमो । घुमाते रहो 3-4 साल तक । उसकी बुद्धि नष्ट हो जाएगी । 1 आदमी को बाएं दाएं घुमाओगे । क्या होगा ? कितनी देर तक उसकी बुद्धि स्थिर रहेगी । उससे कहो बैठो । उससे कहो खड़े होओ । उससे कहो दौड़ो । और जरा इनकार करे । तो मारो । 3-4 वर्ष में उसकी बुद्धि क्षीण हो जाएगी । उसकी मनुष्यता मर जाएगी । फिर उससे कहो । राइट टर्न । तो वह मशीन की तरह घूमता है । फिर उससे कहो । बंदूक चलाओ । तो वह मशीन की तरह बंदूक चलाता है । आदमी को मारो । तो वह आदमी को मारता है । वह मशीन हो गया । वह आदमी नहीं रह गया । यह डिसिप्लिन है ? और यह है डिसिप्लिन । हम चाहते हैं कि बच्चों में भी हो । बच्चों में मिलिट्राइजेशन हो । उनको भी NCC सिखाओ । मार डालो दुनिया को । NCC सिखाओ । सैनिक शिक्षा दो । बंदूक पकड़वाओ । लेफ्ट राइट टर्न करवाओ । मारो दुनिया को । 5000 साल में आदमी को । मैं नहीं समझता कि कोई समझ भी आई हो कि चीजों के क्या मतलब है ? डिसिप्लिनड आदमी डेड होता है । जितना अनुशासित आदमी होगा । उतना मुर्दा होगा ।
तो क्या मैं यह कह रहा हूं कि लड़कों को कहो कि विद्रोह करो । भागो । दौड़ो । कूदो क्लास में । पढ़ने मत दो । यह नहीं कह रहा हूं । यह कह रहा हूं कि आप प्रेम करो बच्चों को । बच्चों के हित । भविष्य की मंगलकामना करो । उस प्रेम और मंगलकामना से 1 डिसिप्लिन आनी शुरू होती है । जो थोपी हुई नहीं है । जो बच्चे के विवेक से पैदा होती है । 1 बच्चे को प्रेम करो । और देखो कि वह प्रेम उसमें 1 अनुशासन लाता है । वह अनुशासन लेफ्ट राइट टर्न करने वाला अनुशासन नहीं है । वह उसकी आत्मा से जगता है । प्रेम की ध्वनि से जगता है । थोपा नहीं जाता है । उसके भीतर से आता है । उसके विवेक को जगाओ । उसके विचार को जगाओ । उसको बुद्धिहीन मत बनाओ । उससे यह मत कहो कि हम जो कहते हैं । वही सत्य है ।
सत्य का पता है आपको ? लेकिन दंभ कहता है कि मैं जो कहता हूं । वही सत्य है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप 30 साल पैदा पहले हो गए । वह 30 साल पीछे हो गया । तो आप सत्य के जानकार हो गए । और वह सत्य का जानकार नहीं रहा । जितने अज्ञान में आप हो । उससे शायद हो सकता है वह कम अज्ञान में हो । क्योंकि अभी वह कुछ भी नहीं जानता है । और आप न मालूम कौन कौन सी नासमझियां । न मालूम क्या क्या नोनसेंस जानते होंगे । लेकिन आप ज्ञानी हैं । क्योंकि आपकी 30 साल उम्र ज्यादा है । क्योंकि आप ज्ञानी हैं । आपके हाथ में डंडा है । इसलिए आप उसको डिसिप्लिनड करना चाहते हैं । नहीं । डिसिप्लिनड कोई किसी को नहीं करना चाहिए । न कोई किसी को करे । तो दुनिया बेहतर हो सकती है । प्रेम करें । प्रेम आपका हक है । आप प्रेमपूर्ण जीवन जीयें । आप मंगल कामना करें उसकी । सोचें उसके हित के लिए कि क्या हो सकता है । वैसा करें । और वह प्रेम । वह मंगलकामना असंभव है कि उसके भीतर अनुशासन न ला दे । आदर न ला दे ।

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