सोमवार, जुलाई 19, 2010

हाजिर की हुज्जत गये ..?




लेखकीय-- कुछ दिनों से मेरे " बाराह " साफ़्टवेयर में प्राब्लम हो रही है । जिससे लेख के शब्दों में न चाहते हुये भी अशुद्धियां हो जाती हैं । जैसे चन्द्र बिंदी न लग पाना । अणा शब्द का न लिख पाना आदि । इस टेक्नीकल गलती को मद्देनजर रखते हुये पाठकों से उसी सहयोग की अपेक्षा है । धन्यबाद ।
एक आम धारणा है । कि अच्छे साधु संत आजकल कहां मिलते हैं । चारों तरफ़ पाखन्डियो की भरमार है ।
एक बात सोचे । क्या यही विचार कबीर के समय नही थे । रैदास को उस समय लोग जानते थे कि ये उच्च स्तर के संत हैं मीरा को परेशान करने में कोई कसर छोडी गयी ? तुलसी को लोगों ने कम परेशान किया ? ईसा मसीह को कितना परेशान किया ? मुहम्मद साहव का विरोध करने वाले नहीं थे क्या ? संत तबरेज की तो खाल खींच ली गयी थी । कबीर को बाबन बार मौत की सजा दी गयी । गौतम बुद्ध को कितने ही गाली देते थे । राम को तुम लोगो ने कम टेन्शन दी । कृष्ण को कम दुखी किया । किसी भी अच्छे संत का इतिहास उठा कर देखिये । वह आपको सुख शान्ति का मार्ग दिखा रहा था । आप उसको गालिया दे रहे थे । मार रहे थे । इसी को कहा गया है । हाजिर की हुज्जत गये की तलाशी । आप किसकी सेवा करते हैं । आप किसको आदर देते हैं । जो आपको ठगता है । आपको गलत मार्ग दिखाता है । वह आपको सही लगता है । आज कबीर रैदास मीरा ईसामसीह तुलसी मुहम्मद साहब तबरेज आदि की पूजा होती है । एक समय आप ही लोग हाथ धोकर इनके पीछे पड गये थे । ऐसा क्यों हुआ । आज जब ये हमारे बीच हैं नहीं । तब इनको पूजने इनकी महत्ता का क्या लाभ । एक समय जब ये आप को बिना किसी स्वार्थ के ग्यान का मार्ग दिखा रहे थे । आपको खुद आपकी आत्मा के उद्धार मुक्त हेतु सरल सहज उपाय बता रहे
थे । तब आप लाठी लेकर इनके पीछे दौड रहे थे । किसी संत ने आपका क्या ले लिया । जो आप मरने मारने पर आमादा हो जाते है । हिंदू मुसलमान या किसी भी धर्म के संत ने यदि आप गौर से उसकी बात को समझें । तो आपको नेकी का रास्ता । ग्यान का रास्ता । भक्ति का रास्ता स्थायी सुख का रास्ता ही दिखाया होगा । पर आप ने धर्म को तोता की तरह रट लिया है । उससे हटकर आप कुछ नहीं सुनना चाहते । उससे अलग आप को कुछ भी पसन्द नहीं । आप स्वयं ही ग्यानी है ? महाग्यानी ?
आप संत से ग्यान लेने नहीं उसकी परीक्षा करने जाते हैं । उसमें खोट निकालने जाते हैं । यह उसी तरह हुआ कि आप किसी शिक्षक से पडने जाओ और उल्टे उसका इंटरव्यू लेने लगो । आप नौकरी के लिये जाओ और एम्पलायर में मीन मेख निकालने लगो । क्या आपने कभी सोचा है । कि धार्मिक आध्यात्मिक रहस्य कितने गूढ हैं ? जिसका आप सतही स्तर पर । सतही ग्यान पर आकलन करते हैं । अगर आपने थोडे ही शास्त्रों का गम्भीरता से अध्ययन किया होता । तो आपकी तमाम सोच ही बदली हुयी होती ।
अगर धर्म गाली देने के लिये है । लोगों को अंधेरे में ले जाने के लिये है । तो आपने कभी गौर किया है । कि वाल्मीक रामायण ( संस्कृत ) तुलसी रामायण ( हिंदी ) कुरान ए पाक । बाइबिल । गुरु ग्रन्थ साहिब एक ही बार क्यों लिखी गयी । अगर इन्हें " मनुष्य " स्तर पर लिखा गया होता तो हजारों अन्य लेखकों ने और ग्रन्थ लिख डाले होते । दरअसल ये ईश्वरीय प्रेरणा से लिखी गयी । इसलिये इनकी दिव्यता इनकी अहमियत इतने समय के बाद भी ज्यों की त्यों है । इन्हें हरेक किसी के द्वारा लिखा जाना मुमकिन ही नहीं है । अगर आप ने धर्म का अध्ययन किया होता । तो आप को मालूम होता कि ग्यान सीखा नहीं जाता । बल्कि ग्यान पात्र के अनुसार उतरता है । बडे बडे किताब ग्यानी हंसी बनाते हैं कि तुलसी को पत्नी ने झिडक दिया तो रामायण ही लिख डाली । आज तो बहुत से पति स्त्रियों के हाथ पिटते हैं ।
कितनी रामायण लिख गयीं ? तो कहने का अर्थ ये है कि जिस तरह अच्छे बुरे इंसान प्रत्येक काल में मौजूद होते हैं । उसी तरह अच्छे बुरे संत भी होते हैं । पर आप बुरों को जल्दी देख लेते हैं । और फ़िर उसी नजर से सबको देखने लगते हैं । इसके बजाय बुद्धि विवेक से विचार करते हुये संत से ग्यान वार्ता करें । फ़िर अच्छा बुरा चयन करें । और आपको रुचिकर लगे । तो संत के बताये मार्ग पर चले । जरा देखिये रामायण क्या कह रही है । जो विरंचि शंकर सम होई । गुरु बिनु भव निधि तरे न कोई । श्रीकृष्ण ने कहा है । संत मिले तो मैं मिल जाऊं । संत न मोते न्यारे । संत बिना मैं ना मिल पाऊं । कोटि जतन करि डारो । और लोग कहते हैं कि परमात्मा तो सबके अन्दर है । उसके लिये गुरु की आवश्यकता क्या ?

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