शनिवार, अगस्त 14, 2010

हथियार धारी पुरुष और चंचल स्त्री विश्वास करने योग्य नहीं होते ।

पक्षी फ़लरहित वृक्ष का त्याग कर देते हैं । सारस आदि पक्षी सूखे जलाशय को त्याग देते हैं । वैश्य़ाएं धनहीन होते ही पुरुष को त्याग देती हैं । मन्त्री भृष्ट राजा को त्याग देते हैं । भोंरे मुर्झाये पुष्प को त्याग देते हैं ।
और हिरन जले हुये वन को त्याग देते हैं । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सभी प्राणी स्वार्थवश ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं । वास्तव में कौन किसका प्रिय है ? आपत्तिकाल में मित्र । युद्ध में वीरता । एकान्त स्थान में शुचिता । धन के खत्म हो जाने पर पत्नी । तथा अकाल के समय अतिथप्रियता की पहचान होती है ।
आपत्तिकाल के लिये धन को संचय करना चाहिये । स्त्रियों की रक्षा के लिये धन का उपयोग करना चाहिये । एवं अपनी रक्षा में स्त्री और धन दोनों का उपयोग करना चाहिये । कुल की रक्षा के लिये एक व्यक्ति का ।
ग्राम की रक्षा के लिये कुल का । जनपद के हित के लिये ग्राम का । और अपने वास्तविक कल्याण के लिये प्रथ्वी का भी त्याग कर देना चाहिये । धन देकर लोभी को । करबद्ध प्रणाम निवेदन से उदार चित्त व्यक्ति को । प्रसंशा करने से मूर्ख व्यक्ति को । तत्व चर्चा से विद्वान पुरुष को संतुष्ट किया जा सकता है । विनम्र निवेदन से सज्जन पुरुष को । भेद नीति से धूर्त को । अपने से कम शक्ति वाले को थोडा बहुत देकर । और अपने समान शक्ति वाले को अपेक्षा के अनुरूप धन देकर वश में किया जा सकता है । जिसका जैसा स्वभाव हो । उसके अनुरूप वैसे ही वचन बोलते उसके ह्रदय में प्रवेश कर चतुर व्यक्ति को यथाशीघ्र उसे अपना बना लेना चाहिये । नदी । नाखून । सींग वाले पशु । हथियार धारी पुरुष और चंचल स्त्री विश्वास करने योग्य नहीं होते । जो मनुष्य बुद्धिमान है उसको अपनी धन की क्षति । घर में हुआ दुश्चरित्र । तथा अपमान की घटना दूसरे के सामने नहीं कहना चाहिये । नीच और दुष्ट व्यक्ति की समीपता । अत्यन्त विरह वियोग । सम्मान । दूसरे से प्रेम और दूसरे के घर में रहना ये सभी औरत के चरित्र को एक न एक दिन नष्ट कर ही देते हैं । किस के कुल में दोष नहीं है । रोग से कौन पीडित नहीं है । कौन दुखी नहीं है ? धन सदैव ही किसके पास रहा है ? धन पाकर किसको अहंकार नहीं हुआ ? किस पर विपत्तियां नहीं आयीं ? सुन्दर स्त्रियों द्वारा किसका मन क्षुब्ध नहीं हुआ ? कौन है जो कभी मरा नहीं ? किस भिखारी का स्वाभिमान नहीं
नष्ट हुआ ? कौन दुष्ट के जाल में फ़ंस जाने पर सुख से रह पाया ? अर्थात ऐसा कोई नहीं है । विध्या का अभ्यास न करने पर वह नष्ट हो जाती है । सामर्थ्य रहते हुये भी फ़टे पुराने मैले कुचैले वस्त्र पहनने वाली स्त्री का सौभाग्य नष्ट हो जाता है । सुपाच्य भोजन से रोग नष्ट हो जाता है । चतुराई युक्त नीति से शत्रु नष्ट हो जाता है । पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार दुगना । बुद्धि चौगुनी । कार्य करने की क्षमता छह गुनी । और कामवासना आठ गुनी अधिक होती है । स्वप्न से नींद को नहीं जीता जा सकता । कामवासना से स्त्री नहीं जीती जा सकती । ईंधन से अग्नि को त्रप्त नहीं किया जा सकता । शराब से प्यास नहीं बुझायी जा सकती । मांस युक्त । अधिक चिकनाई का भोजन । शराब का सेवन । पान । सुगन्धित पदार्थों का लेपन । सुन्दर वस्त्र और सुन्दर खुशबू युक्त फ़ूल हार आदि ये स्त्रियों की कामवासना को बडाते हैं । जैसे अधिक से अधिक लकडियों के ढेर से अग्नि संतुष्ट नहीं होती । नदियों के अनेक समूह अपने में मिलने से समुद्र संतुष्ट नहीं होता । यमराज अधिक से अधिक प्राणियों का संहार करके भी संतुष्ट नहीं होता । ऐसे ही औरत की कामवासना भी असंख्य पुरुषों के साथ सम्भोग करने पर भी संतुष्ट नहीं होती । जो स्त्रियां स्वभाव से ही धर्म विरुद्ध आचरण करने वाली हैं । एवं पति के प्रति प्रतिकूल व्यवहार रखने वाली हैं । वे स्त्रियां न धन आदि के दान । न सम्मान । न सरल व्यवहार । न सेवा भाव । न शस्त्र भय । न शास्त्र उपदेश से ही अनुकूल की जा सकती हैं । अर्थात वे सदा प्रतिकूल ही रहती हैं । जिन्होंने बाल्यकाल से ही विध्यार्जन नहीं किया ।
जिनके द्वारा युवावस्था में धन और स्त्री की प्राप्ति नहीं की जा सकी । वे इस संसार में शोक के पात्र ही हैं । और मनुष्य रूप धारण करके पशुवत ही विचरण करते हुये दुख से भरा जीवन जीते हैं । जो बाल्यावस्था में विध्या अध्ययन नहीं करते । और फ़िर युवावस्था में कामातुर होकर धन यौवन को नष्ट कर देते हैं । वे वृद्धावस्था में चिंता से जलते हुये शिशिरकाल में कोहरे से झुलसे हुये कमल पुष्प के समान दुखी जीवन ही व्यतीत करते हैं । आकार संकेत गति चेष्टा वाणी नेत्र और मुख की भाव भंगिमा से प्राणी के अंतकरण में छिपा हुआ भाव प्रकट होता रहता है । विद्वान वह है । जो दूसरे के द्वारा न कहा गया विषय भी जान लेता है । बुद्धि वह है । जो दूसरे के संकेत मात्र से ही समझ जाय । कहे गये शब्द का अर्थ तो पशु भी समझ लेते हैं । मनुष्य के दिखाये गये मार्ग पर तो हाथी घोडे भी आसानी से चलते हैं ।

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