शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

कुछ और प्रश्न ?

लेखकीय-- ये आप लोगों के कुछ प्रश्न हैं । जो मुझे ई मेल से प्राप्त होते हैं । समयाभाव के कारण सभी के उत्तर देना सम्भव नहीं हो पाता । अतः महत्वपूर्ण प्रश्नों को छाँटकर उनका उत्तर देने की कोशिश कर रहा हूँ । अन्य पाठकों के उत्तर भी शीघ्र ही देने की कोशिश करूँगा । इस लेख में *(एक स्टार ) से आपके प्रश्न हैं । और ** ( दो स्टार ) से मेरे उत्तर हैं । यदि आपको मेरे उत्तर में कोई त्रुटि नजर आये । तो अवश्य सूचित करें । क्योंकि मैं ही ग्यानी हूँ । ऐसा मैं कभी नहीं सोचता । आपके सुझावों और प्रश्नों का हमेशा स्वागत है ।* Respected Rajeev ji,My name is Trayambak Upadhyay. I am from varanasi. I like your blog and would like to talk to you about " atma darshan." What should be a good time to reach you. I am free in weekend (Saturday & Sunday).With regards, Trayambak Upadhyay
** स्नेही उपाध्याय जी ! आत्म ग्यान पर आपकी जिग्यासा जानकर खुशी हुयी । आप किसी भी दिन सुबह
7.00 am to 10.00 am और दोपहर 3.00 pm to 7.00 pm के समय बात कर सकते हैं । मेरा फ़ोन न . और ई मेल लगभग सभी ब्लाग्स में प्रकाशित है ।
* आपने शायद ध्यान न दिया हो पर ओशो ने स्वृणिम बचपन में मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो तीन नामों का जिक्र किया है और कहा है कि Enlightenment को पहुँचने वाले किसी भी व्यक्ति को तीन enlightened व्यक्ति सहायता करने के लिये मिलते ही मिलते हैं। पर उनकी कई बातों की तरह यह बात भी एक parable हो सकती है। वे ऐसा कभी नहीं कहते कि उन्हे किसी गुरु की वजह से आत्मग्यान मिला।जे कृष्णमूर्ति भी किसी गुरु की बात नहीं करते। देखा जाये तो गुरुओं की संगत छोड़ने के बाद ही गौतम को बुद्धत्व मिला।
* * जानकारी देने के लिये धन्यवाद । ये तीन व्यक्ति ओशो ने प्रतीक रूप में कहे थे । पहला शिक्षक के रूप में । दूसरा गुरु के रूप में । तीसरा सतगुरु के रूप में । किसी किसी मामले में यह पहला माँ बाप के रूप में । दूसरा किसी भी माध्यम से द्वैत ग्यान के रूप में । तीसरा किसी माध्यम से आत्म ग्यान या अद्वैत के रूप में । मैं आपसे सहमत हूँ । विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने पर भी ये तीन माध्यम हरेक की जिंदगी में आते हैं । यदि उसे सत्य की प्राप्ति हो तो ?
* मेने आपकी पोस्टों को अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिये एक बलोग बनाया है,
rajeev-swaroopdarshan.blogspot.com
** आपका बेहद धन्यवाद । जो आपने अपना कीमती समय प्रभुकार्य और प्रभुभक्ति में लगाना शुरू कर दिया । इसके सम्बन्ध में इतना ही कह सकता हूँ । " भक्ति स्वतन्त्र सकल सुख खानी । बिनु सतसंग न पावहि प्रानी ।" सच्चे दिल से प्रभु का कार्य करने पर मिलने वाले वेतन की कल्पना भी करना मुश्किल है । कि कितना ज्यादा हो सकता है ?
* एक बार आपका लेख पढने को मिला । और मैं आपका अनुसरणकर्ता हो गया ।क्योंकि यह लेख मेरी रूचि के हैं ।और मुझे पहली बार ही दुर्गास्तुती का पाठ करने पर माँ दुर्गा और माँ काली के साक्षात दर्शन हुये थे । और उस समय मेरे कोई गुरुजी नहीं थे । अधेंरा था । समय तो ज्ञात नहीं । परन्तु में माँ काली के स्वरूप से डर गया था । और माँ दुर्गा के संकेत था । क्या चाहिये ? मैंने कहा कुछ नहीं । और दोनो अन्तर्ध्यान हो गयीं । उसके बाद बहुत प्रयत्न वही दर्शन पाने के लिये करा । पर कभी दर्शन नहीं हुये । समझ में नहीं आता क्या करूं ?
* * भले ही आप को लगता है । कि आप इस जीवन के बारे में ही जानते हैं । पर सत्य यह है । कि भगवत प्राप्ति के जीव के प्रयास करोङों जीवन से जारी हैं । जिसे आपका अचेतन बखूबी जानता है । ऐसे ही किसी प्रयास की डोर अनजाने में प्रभु से जुङ जाती है । तब ऐसी घटना हो जाती है । बाद में उसी चीज को आप " कर्ता " बनकर करने की कोशिश करते हैं । जो सफ़ल नहीं होती । इस सम्बन्ध में कबीर साहिब ने लिखा है । " जब मैं था तब हरि नहीं । जब हरि हैं मैं नाहिं । सब अंधियारा मिट गया । जब दीपक देखा माँहि । इसके अतिरिक्त भी जीव जब रोज आने वाली लगभग " आधा घन्टे " की गहरी नींद में जाता है । वह प्रभु के पास ही जाता है । पर क्योंकि प्रभु विधान के अनुसार उसे बक्से में बन्द करके ले जाया जाता है । इसलिये वह इस सत्य को नहीं जान पाता । इसी को " तुरीयातीत अवस्था " कहते हैं ।
ग्यान के पहले अध्याय में " यहीं पर जागना " सिखाया जाता है । तब आपको " अलौकिक " अनुभव होते हैं ।
* मैंने परमहंस योगानन्द जी को गुरू बनाया था । उनके अध्याय आते थे । एक महिने में एक बार । उन अध्यायो का भी बहुत प्रभाव पड़ा था । वो अध्याय भगवत प्राप्ति के नहीं थे । हाँ उन अध्यायों की प्रेरणा से में दोनो भोहों के मध्य चक्र से third eye से लोगों के रोगों का निवारण कर लेता था । इसी बीच में मेने एक गुरू बनाये थे । पर गुरुमन्त्र नहीं मिला था । वो कालभैरव का रविवार को दरबार लगाते थे । और मंगलवार को हनुमान जी पर चोला चड़ाते थे ।
** जिनका जिक्र आपने किया । जहाँ तक मेरी जानकारी है । ये " त्राटक और " ॐ " को लेकर चलते हैं । जो कि " आत्मग्यान " नहीं है । भक्ति भी नहीं है । हाँ योग अवश्य है । और कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं है । कालभैरव और हनुमान की मिश्रित साधना को संकेत में समझें । ये तामसिक साधनायें हैं । जिनका अंत किसी भी रूप में इनसे जुङने वाले के लिये दुखदाई ही होता है । आपको एक रहस्य की बात बता दूँ । सभी सिद्धियाँ जीवन में तो यश और वैभव दे देती हैं । पर अंत में " नरक " में ले जाती हैं । इसमें कोई संशय नहीं है । निर्मल भक्ति ही सब प्रकार से श्रेष्ठ कही गयी है । " निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा । "
* मेने एक विदेशी विद्या सीखी थी । प्राणिक हीलिंग । उस विद्या के द्वारा घर बैठे कितनी भी दूर कोई हो । उसके रोगों का इलाज कर लेता था ? और सामने बैठे तथा अपना भी इलाज कर लेता था । एक बात और । मेरा ध्यान माँ भगवती के चरणो में कभी भी । स्वंय लग जाता था ?
** यह कोई बङी बात नहीं । कुंडलिनी साधना में इस प्रकार की लाखों चीजें हैं । पर इनका पैसे और प्रतिष्ठा के लिये उपयोग नहीं करना चाहिये ।(जैसा कि कुछ लोग करते हैं ) ये खुद को खुद ही फ़ाँसी पर लटकाने के समान है । अभ्यास से ध्यान की अनुभूति भी हो ही जाती है ।
* एक बार मेने भेरो और हनुमान जी के साधक से कोई प्रश्न पूछा । तो उन्होने मुझे बुरे प्रकार से डाट दिया । मुझे चार दिन नींद नहीं आयी । और मेरे को जो कुछ भी प्राप्त हुआ था । सब समाप्त हो गया । योगानन्द जी के अध्यायों पर आधारित पहली परिक्षा उत्तीर्ण भी कर ली थी । और दूसरी परिक्षा की तैयारी चल ही रही थी । और वो भी उत्तीर्ण कर लेता । तो योगानन्द जी के क्रियायोग मुझे सिखाया जाता । इस हादसे के बाद में । योगानन्द जी के बाकी के अध्याय पड़ने में रूचि समाप्त हो गयी । प्रयत्न करके भी नहीं पड़ पा रहा हूँ । क्या इनको प्राप्त करने में,आप मेरी सहायता कर सकते हैं ?
** साधु जीवन धारण करने का वास्तविक अर्थ ही जीवों को प्राप्त ग्यान के अनुसार चेताना या सहायता करना है । मैं हरेक की " अध्यात्म ग्यान " में जितना जानता हूँ । उसके अनुसार सहायता करने की भरपूर कोशिश करता हूँ । यह जीव का अपना भाग्य और लगन है कि उसे कितना प्राप्त होता है ? असली साधु कभी जिग्यासु को डाँटते या उपेक्षित नहीं करते । आप निर्भय हो जाईये ।
* और आपको मेरे लिये " हंस " ग्यान पर लिखने के लिये हार्दिक धन्यवाद ।
* आपका "जय गुरूदेव की" और "जय जय श्री गुरूदेव" के बारे में ज्ञान देने के लिये धन्यवाद ।
* एक जिज्ञासा मन में है,बहुत से लोग "जय श्री राम", " जय श्री कृष्ण", "जय जय श्री राधे", "जय माता की " इत्यादि का अभीवादन के रूप में प्रयोग करतें हैं । उसका क्या प्रयोजन है ?
** यह प्रथ्वीलोक या मृत्युलोक " त्रिलोकी सत्ता " के अन्तर्गत आता है । जिसका अधिपति राम या कृष्ण ( एक ही बात है ) और उसकी पत्नी राधा या सीता के हाथों में है । सरल भाषा में यह यहाँ के राजा रानी है । और राजा रानी की जय जयकार करना पुरातन परम्परा रही है । इतिहास की जानकारी रखने वाले जानते है । अतीत में कई राजाओं की भगवान के समान पूजा हुयी है । शास्त्रों ने भी भू अधिपति को भगवान के तुल्य बताया है । इस तरह से यह एक प्राचीन परम्परा के रूप में चली आ रही है । मैं जिस स्थान पर रहता हूँ । यहाँ " जय भोले की " कहने का रिवाज है । मैंने बहुत से दलित वर्ग को " जय भीम "( डा. अम्बेडकर ) कहते सुना है । राम का वास्तविक अर्थ " रमता " कृष्ण का " आकर्षण । और राधा का " प्रकृति " है । जैसे बालक अवस्था में हमें सर्वप्रथम माँ बाप प्यारे होते हैं । क्योंकि उनके अतिरिक्त हम अन्य को नहीं जानते । उसी प्रकार प्रकृति ( राधा ) और पुरुष ( राम ) ये माँ बाप जैसे लगते हैं । ये जीव भाव है । आत्मा क्योंकि जीव भाव से परे है । अतः वहाँ मामला दूसरा है । जिसको आसानी से समझना और समझाना दोनों ही कठिन है ।
* मेने कबीर दास जी का दोहा पड़ा है ।
" गुरू गोविन्द दौऊ खड़े काके लागुं पांय । "" बलिहारी गुरू आपने जिन गोविन्द दियो बताय । "
इस दोहे के अनुसार मुझे लगता है । प्रारम्भ तो गुरू जी से ही किया जाता है । और जब भगवत प्राप्ति हो जाती है । तो उक्त अभिवादन प्रयोग किये जाते हैं । कृपया इस पर प्रकाश डालियेगा ?
** इसका उत्तर इतना सरल तो नहीं है ।और गुप्त है ? फ़िर भी रामायण की चौपाई से संकेत कर रहा हूँ । शायद आप समझ जाओ । " जेहि जानहि जाहे देयु जनाई । जानत तुमहि तुमहि हुय जाई । "
राम कृष्ण से कौन बङ । तिनहू ने गुरु कीन । तीन लोक के ये धनी गुरु आग्या आधीन ।
और ऊ यती तपी संयासी । ये सब गुरु के परम उपासी ।
वास्तव में रामायण आदि ग्रन्थों में लिखा है । कि गुरु महिमा या संत महिमा का वर्णन ब्रह्मा विष्णु महेश सरस्वती और अपने हजारों मुखों के साथ शेष जी भी नहीं कर सकते । एक साल धैर्य रखें । मेरी बतायी साधना करें । आपके बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपको स्वयं ही मिलेंगे ?

1 टिप्पणी:

Vinashaay sharma ने कहा…

जय,जय श्रीगुरुदेव धन्यवाद,www.rajeev-www.atmswroopdarshan.blogspot.com का नाम satguru-satyakikhoj.blogspot.com हो गया है,आभार ।

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