शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

ये छह प्रकार के स्नान हैं ।

रात में सोये हुये व्यक्ति के मुख से निरंतर लार आदि अपवित्र मल गिरते हैं । अन्य स्थानों से भी मल की निकासी होती है । इसलिये पूरा शरीर ही अपवित्र हो जाता है । इसलिये सुबह शौचादि का बाद स्नान करना बेहद लाभदायक होता है । सुबह स्नान करने से अलक्ष्मी । कालकर्णी यानी विघ्न डालने वाली अनिष्टकारी शक्तिया । दुस्वप्न और दुर्विचार चिंतन से होने वाले पाप धुल जाते हैं । बिना स्नान के किये गये कार्य सफ़ल नहीं होते । अतः यथासंभव स्नान अवश्य करना चाहिये ।
किसी प्रकार से अशक्त होने पर बिना सर पर जल डाले ही स्नान कर लें । अन्य स्थिति में गीले वस्त्र से शरीर को ठीक से पोंछ लें । इसे कायिक स्नान कहते हैं । बाह्य । आग्नेय । वायव्य । दिव्य । वारुण । यौगिक । ये छह प्रकार के स्नान हैं । मन्त्र सहित कुश के द्वारा जल से स्नान करना बाह्य स्नान है ।
सिर से पैर तक भस्म के द्वारा अंगो को लेपन करना यह आग्नेय स्नान है । गोधूलि से शरीर को पवित्र करना
वायव्य स्नान है । यह उत्तम स्नान है । धूप में होने वाली बरसात में किया गया स्नान दिव्य स्नान कहलाता
है । जल में अवगाहन करना वारुण स्नान है । योग द्वारा ध्यान क्रिया में स्नान करना यौगिक स्नान है ।यौगिक स्नान योगी आदि ही कर पाते हैं । इसे दूसरे शब्दों में आत्मतीर्थ कहते हैं । स्नान से पहले दूध युक्त वृक्षों की लकडी । मालती । अपामार्ग । बिल्ब । करवीर । कनेर की दातौन लेकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर स्वच्छ स्थान में दांत साफ़ करने चाहिये ।

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