रविवार, नवंबर 20, 2011

ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है

गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है । गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है । गंगा को हम भारत से हटा लें । तो भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । सब बचा रहे । गंगा हट जाए । भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । गंगा को हटा ले । तो भारत का साहित्य अधूरा पड़ जाए । गंगा को हम हटा ले । तो हमारे तीर्थ ही खो जाए । हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए ।
गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड़ है । बड़े गहरे से जुडे है । गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है । मुल्क की भी अगर कोई आत्मा होती हो । और उसके प्रतीक होते हो । तो गंगा ही हमारा प्रतीक है । पर क्या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों हजारों वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है - नदियों में मैं गंगा हूं ।
गंगा कोई नदियों में विशेष विशाल उस अर्थ में नहीं है । गंगा से बड़ी नदिया है । गंगा से लंबी नदिया है । गंगा से विशाल नदिया पृथ्वी पर है । गंगा कोई लंबाई में । विशालता में । चौड़ाई में । किसी दृष्टि से बहुत बड़ी गंगा नहीं है । कोई बहुत बड़ी नदी नहीं है । बृह्मपुत्र है । और अमेजान है । और ह्व्गांहो है । और सैकड़ों नदिया है । जिसके सामने गंगा फीकी पड़ जाए ।
पर गंगा के पास कुछ और है । जो पृथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है । और उस कुछ के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ तालमेल बना लिया है । एक तो बहुत मजे की बात है कि पूरी पृथ्वीं पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है - अलाइव । सारी नदियों का पानी आप बोतल में भर कर रख दें । सभी नदियों का पानी सड़ जाएगा । गंगा का नहीं सड़ेगा । केमिकली गंगा बहुत विशिष्ट है । उसका पानी डिटरिओरेट नहीं होता । सड़ता नहीं । वर्षों रखा रहे । बंद बोतल में भी । वह अपनी पवित्रता । अपनी स्वच्छता कायम रखता है ।
ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है । सभी नदियों के पानी इस अर्थों में कमजोर है । गंगा का पानी इस अर्थ में विशेष मालूम पड़ता है । उसका विशेष केमिकल गुण मालूम पड़ता है ।
गंगा में इतनी लाशें हम फेंकते है । गंगा में हमने हजारों हजारों वर्षों से लाशें बहाई है । अकेले गंगा के पानी में । सब कुछ लीन हो जाता है । हड्डी भी । दुनिया की किसी नदी में वैसी क्षमता नहीं है । हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है । और बह जाती है । और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती । गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है । हड्डी को भी । कोई भी दूसरे पानी में लाश को हम डालेंगे । पानी सड़ेगा । पानी कमजोर और लाश मजबूत पड़ती है । गंगा में लाश को हम डालते है । लाश ही बिखर जाती है । मिल जाती है । अपने तत्वों में । गंगा अछूती बहती रहती है । उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
गंगा के पानी की बड़ी केमिकल परीक्षाएं हुई है । और अब तो यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि उसका पानी असाधारण है ।
यह क्यों है असाधारण ? यह भी थोड़ी हैरानी की बात है । क्योंकि जहां से गंगा निकलती है । वहां से बहुत नदियों निकलती हैं । गंगा जिन पहाड़ों से गुजरती है । वहां से कई नदियों गुजरती हैं । तो गंगा में जो खनिज और जो तत्व मिलते हैं । वे और नदियों में भी मिलते हैं । फिर गंगा में कोई गंगा का ही पानी तो नहीं होता । गंगोत्री से तो बहुत छोटी सी धारा निकलती है । फिर और तो सब दूसरी नदियों का पानी ही गंगा में आता है । विराट धारा तो दूसरी नदियों के पानी की ही होती है ।
लेकिन यह बड़े मजे की बात है कि जो नदी गंगा में नहीं मिली । उस वक्त उसके पानी का गुण धर्म और होता है । और गंगा में मिल जाने के बाद उसी पानी का गुण धर्म और हो जाता है । क्या होगा कारण ? केमिकली तो कुछ पता नहीं चल पाता । वैज्ञानिक रूप से इतना तो पता चलाता है कि विशेषता है । और उसके पानी में खनिज और कैमिकल्स का भेद है । विज्ञान इतना कहा सकता है । लेकिन एक और भेद है । वह भेद विज्ञान के ख्याल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा । और वह भेद है । गंगा के पास लाखों लाखों लोगों का जीवन की परम अवस्था को पाना ।
यह मैं आपसे कहना चाहूंगा कि पानी जब भी कोई व्यक्ति । अपवित्र व्यक्ति । पानी के पास बैठता है । अंदर जाने की तो बात अलग । पानी के पास भी बैठता है । तो पानी प्रभावित होता है । और पानी उस व्यक्ति की तरंगों से आच्छादित हो जाता है । और पानी उस व्यक्ति की तरंगों को अपने में ले लेता है ।
इसलिए दुनिया के बहुत से धर्मों ने पानी का उपयोग किया है । ईसाइयत ने बप्तिसस्मा । बेप्टिज्मग के लिए पानी का उपयोग किया है ।
जीसस को जिस व्यक्ति ने बप्तिस्माय दिया । जान दि बैपटिस्ट ने । उस आदमी का नाम ही पड़ गया था । जान बप्तिस्मा वाला । वह जॉर्डन नदी में । और जॉर्डन यहूदियों के लिए वैसी ही नदी रही । जैसी हिंदुओं के लिए गंगा । वह जॉर्डन नदी में गले तक आदमी को डूबा देता । खुद भी पानी में डुबकर खड़ा हो जाता । फिर उसके सिर पर हाथ रखता । और प्रभु से प्रार्थना करता । उसके इनीशिएशन की । उसकी दीक्षा की ।
पानी में क्यों खड़ा होता था - जान ? और पानी में दूसरे व्यक्ति को खड़ा करके । क्या कुछ एक व्यंक्ति की तरंगें । और एक व्यक्ति के प्रभाव । एक व्यक्ति की आंतरिक दशा का आंदोलन दूसरे तक पहुंचना आसान है ।
पानी बहुत शीघ्रता से चार्ड्र हो जाता है । पानी बहुत शीघ्रता से व्यक्ति से अनुप्राणित हो जाता है । पानी पर छाप बन जाती है ।
लाखों लाखों वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने की चेष्टा करते रहे है । और जब भी कोई एक व्यक्ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है । तो गंगा उस उपलब्धि से वंचित नहीं रही है । गंगा भी आच्छादित हो जाती है । गंगा का किनारा । गंगा की रेत के कण कण । गंगा का पानी । सब  इन लाखों वर्षों से एक विशेष रूप से स्प्रिचुअली चार्ज्ड । आध्यात्मिक रूप से तरंगायित हो गया है ।
इसलिए हमने गंगा के किनारे तीर्थ बनाए ।
गंगा साधारण नदी नहीं है । एक अध्यात्मिक यात्रा है । और एक अध्यात्मिक प्रयोग । लाखों वर्षों तक लाखों लोगों को उसके निकट मुक्ति को पाना । परमात्मा‍ के दर्शन को उपलब्ध होना । आत्म साक्षात्कार को पाना । लाखों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को उपलब्ध होना । वे सारे लोग अपनी जीवन ऊर्जा को गंगा के पानी पर उसके किनारों पर छोड़ गए है । ओशो ।

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