रविवार, नवंबर 20, 2011

पत्नी पति को प्रेम पूर्ण ढ़ंग से सताती है

गांधी गीता को माता कहते हैं । लेकिन Geeta को आत्मसात नहीं कर सके । क्योंकि Gandhi की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहाँ रखेगी ? तो गांधी उपाय खोजते हैं । वह कहते हैं कि यह जो युद्ध है । यह सिर्फ रूपक है । यह कभी हुआ नहीं । यह मनुष्य के भीतर अच्छाई और बुराई की लड़ाई है । यह जो कुरुक्षेत्र है । यह कहीं कोई बाहर का मैदान नहीं है । और ऐसा नहीं है कि krishna ने कहीं अर्जुन को किसी बाहर के युद्ध में लड़ाया हो । यह तो भीतर के युद्ध की रूपक कथा है । यह पैरबेल है । यह 1 story है । यह 1 प्रतीक है । गांधी को कठिनाई है । क्योंकि गांधी का जैसा मन है । उसमें तो Arjun ही ठीक मालूम पडे़गा । अर्जुन के मन में बड़ी अहिंसा का उदय हुआ है । वह युद्ध छोड़कर भाग जाने को तैयार है । वह कहता है । अपनों को मारने से फायदा क्या ? और वह कहता है । इतनी हिंसा करके धन पाकर भी । यश पाकर भी । राज्य पाकर भी मैं क्या करूँगा ? इससे तो बेहतर है कि मैं सब छोड़कर भिखमंगा हो जाऊँ । इससे तो बेहतर है कि मैं भाग जाऊँ । और सारे दुख वरण कर लूँ । लेकिन हिंसा में न पड़ूँ । इससे मेरा मन बड़ा कँपता है । इतनी हिंसा अशुभ है ।
कृष्ण की बात गांधी की पकड़ में कैसे आ सकती हैं ? क्योंकि कृष्ण उसे समझाते हैं कि - तू लड़ । और लड़ने के लिए जो जो तर्क देते हैं । वह ऐसा अनूठा है कि इसके पहले कभी भी नहीं दिया गया था । उसको परम अहिंसक ही दे सकता है । उस तर्क को ।
कृष्ण का  तर्क है कि जब तक तू ऐसा मानता है कि कोई मर सकता है । तब तक तू आत्मवादी नहीं है । तब तक तुझे पता ही नहीं है कि जो भीतर है । वह कभी मरा है । न कभी मर सकता है । अगर तू सोचता है कि मैं मार सकूँगा । तो तू बड़ी भ्रांति में है । बड़े अज्ञान में है । क्योंकि मारने की धारणा ही भौतिकवादी की धारणा है । जो जानता है । उसके लिए कोई मरता नहीं है । तो अभिनय है । कृष्ण उससे कह रहे हैं । मरना और मारना लीला है । 1 नाटक है ।
इसलिए कृष्ण को जिन्होंने पूजा भी है । जिन्होंने कृष्ण की आराधना भी की है । उन्होंने भी कृष्ण के टुकड़े टुकड़े करके किया है । सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते । बड़े कृष्ण के साथ खतरा है । सूरदास बर्दाश्त न कर सकेंगे । वह बाल कृष्ण को ही..क्योंकि बालकृष्ण अगर गाँव की स्त्रियों को छेड़ आता है । तो हमें बहुत कठिनाई नहीं है । लेकिन युवा कृष्ण जब गाँव की स्त्रियों को छेड़ देगा । तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगा । फिर हमें समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा । क्योंकि हम अपने ही तल पर तो समझ सकते हैं । हमारे अपने तल के अतिरिक्त समझने का हमारे पास कोई उपाय भी नहीं है । तो कोई है । जो कृष्ण के 1 रूप को चुन लेगा । कोई है । जो दूसरे रूप को चुन लेगा । गीता को प्रेम करने वाले भागवत की उपेक्षा कर जाएँगे । क्योंकि भागवत का कृष्ण और ही है । भागवत को प्रेम करने वाले गीता की चर्चा में पड़ेगे । क्योंकि कहाँ राग रंग और कहाँ रास और कहाँ युद्ध का मैदान । उनके बीच कोई तालमेल नहीं है । शायद कृष्ण से बड़े विरोधों को 1 साथ पी लेने वाला कोई व्यक्तित्व ही नहीं है । इसलिये कृष्ण की 1-1 शक्ल को लोगों ने पकड़ लिया है । जो जिसे प्रीतिकर लगी है । उसे छांट लिया है । बाकी शक्ल को उसने इंकार कर दिया है ।
प्रेम अपने ढ़ंग से हिंसा करता है । प्रेम पूर्ण ढंग से हिंसा करता है । पत्नी पति को प्रेम पूर्ण ढ़ंग से सताती है । पति पत्नी को प्रेम पूर्ण ढ़ंग से सताता है । बाप बेटे को प्रेम पूर्ण ढ़ंग से सताता है । और जब सताना प्रेम पूर्ण हो । तो बड़ा सुरक्षित हो जाता है । फिर सताने में बड़ी सुविधा मिल जाती है । क्योंकि हिंसा ने अहिंसा का चेहरा ओढ़ लिया है । teacher विद्यार्थी को सताता है । और कहता है - तुम्हारे हित के लिए ही सता रहा हूं । और जब किसी के हित के लिए सताते है । तब सताना बड़ा आसान है । वह गौरवान्वित पुण्यकारी हो जाता है । इसलिए ध्यान रखना । दूसरे को सताने में हमारे चेहरे सदा साफ होते हैं । जो बड़ी से बड़ी हिंसा चलती है । वह दूसरे साथ नहीं । वह अपनों के साथ चलती है ।
सच तो यह है कि किसी को भी शत्रु बनाने के पहले मित्र बनाना अनिवार्य शर्त है । किसी को मित्र बनाने के लिए शत्रु बनाना । अनिवार्य शर्त नहीं है । शर्त ही नहीं है । असल में शत्रु बनाने के लिए पहले मित्र बनाना जरूरी है । मित्र बनाये बिना । शत्रु नहीं बनाया जा सकता । हां मित्र बनाया जा सकता है । बिना शत्रु बनाये । उसके लिए कोई शर्त नहीं है शत्रुता की । मित्रता से पहले चलती है ।
अपनों के साथ जो हिंसा है । वह अहिंसा का गहरे से गहरा चेहरा है । इसलिए जिस व्यक्ति को हिंसा के प्रति जागना हो । उसे पहले अपनों के प्रति जो हिंसा है । उसके प्रति जागना होगा । लेकिन मैंने कहा कि किसी किसी क्षण में दूसरा अपना मालूम पड़ता है । बहुत निकट हो गये हैं हम । यह निकट होना । दूर होना बहुत तरल है । पूरे वक्त बदलता रहता है ।
इसलिए हम 24 घंटे प्रेम में नहीं होते । किसी के साथ । प्रेम सिर्फ क्षण होते हैं । प्रेम के घंटे नहीं होते है । प्रेम के दिन नहीं होते । प्रेम के वर्ष नहीं होते । moment  only । लेकिन क्षण जब हम क्षणो से स्थायित्व का धोखा देते हैं । तो हिंसा शुरु हो जाती है । अगर मैं किसी को प्रेम करता हूँ । तो यह क्षण की बात है । अगले क्षण भी करूंगा । जरुरी नहीं । कर सकूंगा । जरूरी नहीं । लेकिन अगर मैंने वायदा किया कि अगले क्षण भी प्रेम जारी रखूंगा । तो अगले क्षण जब हम दूर हट गये होंगे । और हिंसा बीच में आ गई होगी । तब हिंसा प्रेम का शक्ल लेगी । इसलिए दुनिया में जितनी अपना बनाने वाली संस्थाएं है । सब हिंसक हैं । परिवार से ज्यादा हिंसा और किसी संस्था ने नहीं की है । लेकिन उसकी हिंसा बड़ी सूक्ष्म है ।
इसलिए अगर संन्यासी को परिवार छोड़ देना पड़ा । तो उसका कारण था । उसका कारण था । सूक्ष्मता हिंसा के बाहर हो जाना । और कोई कारण नहीं था । और कोई भी कारण नहीं था  । सिर्फ़ 1 ही कारण था कि हिंसा का 1 सूक्ष्मतम जाल है । जो अपना कहने  वाला कर रहे हैं । उनसे लड़ना भी मुश्किल है । क्योंकि वे हमारे हित में ही कर रहे हैं । परिवार का ही फैला हुआ बड़ा रूप समाज है । इसलिए समाज ने जितनी हिंसा की है । उसका हिसाब लगाना कठिन है ।
सच तो यह है कि समाज ने करीब करीब व्यक्ति को मार डाला है । इसलिए ध्यान रहे । जब समाज आप समाज के सदस्य की हैसियत से किसी के साथ व्यवहार करने लगते हैं । तब आप हिंसक होते हैं । आप जैन की तरह हैं । तो आप हिंसक हैं । मुसलमान की तरह व्यवहार करते हैं । तो आप हिंसक हैं । क्योंकि अब आप व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं कर रहे । अब आप समाज की तरह व्यवहार कर रहे हैं । और अभी व्यक्ति ही अहिंसक नहीं हो । तो समाज के अहिंसक होने की संभावना तो बहुत दूर है । समाज तो अहिंसक हो ही नहीं सकता । इसलिए दुनिया में जो बड़ी हिंसाएं हैं । वह व्यक्तियों ने नहीं की हैं । वह समाज ने की हैं ।

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