रविवार, नवंबर 20, 2011

सारा जगत ओवर फ्लोइंग है आदमी को छोड़कर

अकबर ने एक दिन तानसेन को कहा - तुम्‍हारे संगीत को सुनता हूं । तो मन में ऐसा ख्‍याल उठता है कि तुम जैसा गाने वाला शायद ही इस पृथ्‍वी पर कभी हुआ हो । और न हो सकेगा । क्‍योंकि इससे ऊंचाई और क्‍या हो सकेगी । इसकी धारणा भी नहीं बनती । तुम शिखर हो । लेकिन कल रात जब तुम्‍हें विदा किया था । और सोने लगा । तब अचानक ख्‍याल आया । हो सकता है । तुमने भी किसी से सीखा है । तुम्‍हारा भी कोई गुरू होगा । तो मैं आज तुमसे पूछता हूं । कि तुम्‍हारा कोई गुरू है ? तुमने किसी से सीखा है ?
तो तानसेन ने कहा - मैं कुछ भी नहीं हूं । गुरु के सामने । जिससे सीखा है । उसके चरणों की धूल भी नहीं हूं । इसलिए वह ख्‍याल मन से छोड़ दो । शिखर ? भूमि पर भी नहीं हूं । लेकिन आपने मुझ ही जाना है । इसलिए आपको शिखर मालूम पड़ता हूं । ऊँट जब पहाड़ के करीब आता है । तब उसे पता चलता है । अन्यथा वह पहाड़ होता ही है । पर तानसेन ने कहां कि - मैं गुरु के चरणों में बैठा हूं । मैं कुछ भी नहीं हूं । कभी उनके चरणों में बैठने की योग्‍यता भी हो जाए । तो समझूंगा । बहुत कुछ पा लिया ।
तो अकबर ने कहा - तुम्‍हारे गुरु जीवित हों । तो तत्‍क्षण । अभी और आज उन्‍हें ले आओ । मैं सुनना चाहूंगा । पर तानसेन ने कहा - यही तो कठिनाई है । जीवित वे हैं । लेकिन उन्‍हें लाया नहीं जा सकता है ।
अकबर ने कहा - जो भी भेंट करना हो । तैयारी है । जो भी । जो भी इच्‍छा हो । देंगे । तुम जो कहो । वहीं देंगे । तानसेन ने कहा - वही कठिनाई है । क्‍योंकि उन्‍हें कुछ लेने को राज़ी नहीं किया जा सकता । क्‍योंकि वह कुछ लेने का प्रश्‍न ही नहीं है ।
अकबर ने कहा - कुछ लेने का प्रश्‍न नहीं है । तो क्‍या उपाय किया जाए ? तानसेन ने कहा - कोई उपाय नहीं । आपको ही चलना पड़े । तो उन्‍होंने कहा - मैं अभी चलने को तैयार हूं ।
तानसेन ने कहा - अभी चलने से तो कोई सार नहीं है । क्‍योंकि कहने से वह गायेंगे नहीं । ऐसा नहीं है वे गाते बजाते नहीं है । तब कोई सुन ले । बात और है । तो मैं पता लगाता हूं कि वह कब गाते बजाते है । तब हम चलेंगे ।
पता चला । हरिदास फकीर । उसके गुरू थे । यमुना के किनारे रहते थे । पता चला । रात तीन बजे उठकर वह गाते है । नाचते हैं । तो शायद ही दुनिया के किसी अकबर की हैसियत के सम्राट ने तीन बजे रात चोरी से किसी संगीतज्ञ को सुना हो । अकबर और तानसेन चोरी से झोपड़ी के बाहर ठंडी रात में छिपकर बैठ गये । पूरी रात इंतजार करेने के बाद । सुबह जब बाबा हरिदास ने भक्ति भाव में गीत गाया । और मस्‍त होकर डोलने लगे । तब अकबर की आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे । वह केवल मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे । एक शब्‍द भी नहीं बोले ।
संगीत बंद हुआ । वापस घर जाने लगे । सुबह की लाली आसमान पर फैल रही थी । अकबर शांत मौन चलते रहे । रास्‍ते भर तानसेन से भी नहीं बोले । महल के द्वार पर जाकर तानसेन से केवल इतना कहां - अब तक सोचता था कि तुम जैसा कोई भी नहीं गा बजा सकता है । यह मेरा भृम आज टुट गया । अब सोचता हूं कि तुम हो कहां । लेकिन क्‍या बात है ? तुम अपने गुरु जैसा क्‍यों नहीं गा सकते हो ?
तानसेन न कहा - बात तो बहुत साफ है । मैं कुछ पाने की लिए बजाता हूं । और मेरे गुरु ने कुछ पा लिया है । इसलिए बजाते गाते है । मेरे बजाने के आगे कुछ लक्ष्‍य है । जो मुझे मिला । उसमें मेरे प्राण है । इसलिए बजाने में मेरे प्राण पूरे कभी नहीं हो पाते । बजाते गाते समय में सदा अधूरा रहता हूं । अंश हूं । अगर बिना गाए बजाएं भी मुझे वह मिल जाए । जो गाने से मिलता है । तो गाने बजाने को फेंककर उसे पा लूँगा । गाने मेरे लिए साधन है । साध्‍य नहीं । साध्‍य कहीं और है । भविष्‍य में । धन में । यश में । प्रतिष्‍ठा में । साध्‍य कहीं और है । संगीत सिर्फ साधन है । साधन कभी आत्‍मा नहीं बन सकता । साध्‍य में ही आत्‍मा का वास होता है । अगर साध्य बिना साधन के मिल जाए । तो साध को छोड़ दूँ अभी । लेकिन नहीं मिलता । साधन के बिना । इसलिए साधन को खींचता हूं । लेकिन दृष्‍टि और प्राण और आकांशा ओर सब घूमता है । साध्य के निकट । लेकिन जिनको आप सुनकर आ रहे है । संगीत उनके लिए कुछ पाने का साधन नहीं है । आगे कुछ भी है । जिसे पाने को वह गा बजा रहे हैं । बल्‍कि पीछे कुछ है । वह बह रहा है । जिससे उनका संगीत फूट रहा है । और बज रहा है । कुछ पा लिया है । कुछ भर गया है । वह बह रहा है । कोई अनुभूति । कोई सत्‍य । कोई परमात्‍मा । प्राणों में भर गया है । अब वह बह रहा है । पैमाना छलक रहा है । आनंद का । उत्‍सव का ।
अकबर बारबार पूछने लगा - किस लिये ? किस लिये ?
स्‍वभावत: हम भी पूछते है । किस लिये ? पर तानसेन ने कहा - नदिया किस लिये बह रही है ? फूल किस लिये खिल रहे है? चाँद सूरज किस लिये चमक रहे हैं ? जीवन किस लिये बह रहा है ?
किस लिये मनुष्‍य की बुद्धि ने पैदा किया है । सारा जगत ओवर फ्लोइंग है । आदमी को छोड़कर । सारा जगत आगे के लिए नहीं जी रहा है । सारा जगत भीतर से जी रहा है । फूल खिल रहे । खिलने का आनंद है । सूर्य निकलता है । निकलने में आनंद है । पक्षी गीत गा रहे है । गाने में आनंद है । हवाएँ बह रही है । चाँद । तारे । आकाश गंगाए चमक रही है । चारों तरफ एक उत्सव का माहौल है । पर आदमी इसके बीच कैसा पत्थर और बेजान सा हो गया है । आनंद अभी है । यही है । स्‍वय में विराजने में है । अपने होने में है । अभी और यही । ऐसे थे । फकीर संत । हरीदास । ओशो ।

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